दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे कन्वर्जन और राज्य में मुसलमानों की बढ़ती आबादी को बड़ा खतरा बताया है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान 1980 से लगातार पंजाब को तोड़ने और सिख समुदाय को बांटने के प्रयासों में लगा हुआ है। लेकिन पंजाब का ऐसा कोई सिख नहीं है, जो यह चाहता हो कि उसकी आने वाली पीढ़ी बर्बाद हो। पाञ्चजन्य संवाददाता राज चावला ने कई मुद्दों पर मनजिंदर सिंह सिरसा से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश-
पिछले कुछ वर्षों से पंजाब में जबरन कन्वर्जन के मामलों में तेजी आई है। राज्य में कन्वर्जन का सिलसिला कब शुरू हुआ? आप इसे कितना खतरनाक मानते हैं?
यह बहुत डराने वाली बात है। मैं खासतौर से अपने सिख भाइयों से यह बात जरूर कहना चाहूंगा कि कोई आपके परिवारों को रोज खा रहा है। वैसे तो कन्वर्जन का सिलसिला 18वीं सदी में शुरू हो गया था। जब हम महाराजा रणजीत सिंह का साम्राज्य वापस छीन नहीं पाए, ईसाई तभी समझ गए थे कि हमें कैसे कमजोर किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने कन्वर्जन की मुहिम चलाई। उस समय यहां से ब्रिटेन में रानी के नाम एक चिट्ठी भेजी गई थी। इसमें कहा गया था कि यहां सिखों का विश्वास गुरुगोविंद सिंह और गुरुग्रंथ साहिब से नहीं तोड़ा गया तो भविष्य में हमारे लिए यहां शासन करना मुश्किल हो जाएगा। उसी समय से गुरुद्वारों को बदनाम करने का काम शुरू किया गया। अंग्रेजों ने गुरुद्वारों पर पादरियों का कब्जा करा दिया ताकि वे वहां पर दुराचार करें और सिख अपने पंथ से दूर हो जाएं। इस तरह राज्य में ईसाई मिशनरी को फैलाया गया और बड़े-बड़े चर्च बनाए गए। सिख सभा ने इसे रोकने के लिए अभियान भी चलाया। लेकिन आज गुरदासपुर में बहुतायत सिख कन्वर्ट होकर ईसाई बन गए हैं। सिखों को डरा कर और लालच देकर बड़े पैमाने पर कन्वर्जन किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि पुलिस और प्रशासन भी इस मामले में दखल देने को तैयार नहीं है। राज्य में 500 करोड़ रुपये की लागत से चर्च बन रहे हैं। सवाल है कि इतना पैसा कहां से आ रहा है? यह एक तरह से पंजाब पर हमला है। दूसरी ओर, राज्य में मुसलमान 38 लाख हो गए हैं। उनसे भी पंजाब को बहुत खतरा है।
राज्य में खालिस्तानी ताकतें सिर उठा रही हैं। क्रिकेटर अर्शदीप को खालिस्तानी बताया गया। इसके पीछे कौन सी मानसिकता काम कर रही है?
दरअसल, यह केवल अर्शदीप का मामला नहीं है, बल्कि पूरे सिख समुदाय पर हमला है। सिख समुदाय को बांटने की यह पाकिस्तान की पुरानी रणनीति है। बार-बार इस तरह के प्रयोग किए जाते रहे हैं। पाकिस्तान 1980 के दशक से लगातार यही रह रहा है। इसके लिए वह पन्नू जैसे खालिस्तानी आतंकियों को धन मुहैया कराता है, जो भारत के खिलाफ बोलते हैं। ऐसा करके दुनियाभर में यह प्रचारित करने का प्रयास किया जाता है कि ‘सिख भारत के खिलाफ हैं’ जिससे लोगों में सिखों के प्रति नकारात्मक नजरिया पैदा हो।
अर्शदीप के मामले में भी यही हुआ। सब कुछ एक सोची-समझी साजिश के तहत किया गया। इसमें भारत में कुछ लोग भी शामिल हैं, जिन्हें भले ही पाकिस्तान से सीधे तौर पर पैसे न मिलते हों, पर विदेशों से धन मिलता है। कुछ लोग देश का माहौल बिगाड़ना चाहते हैं। वे सरकार के खिलाफ माहौल बना कर अपनी पसंदीदा पार्टी को लाभ पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए अर्शदीप मामले में मैंने आल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबेर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है। जुबेर ने एक कोलाज बनाकर ट्वीट किया है, जिसमें सारे ट्वीट पाकिस्तान, वहां के पत्रकारों के वेरिफाइड अकाउंट से किए गए थे। इसमें वैसे ट्वीट भी थे, जो अर्शदीप के पक्ष में थे और जिसमें लोगों ने पूछा था कि क्रिकेटर को खालिस्तानी क्यों कहा गया। अधिकांश ट्विटर अकाउंट भातीय नाम से हैं, जिनके न तो फॉलोअर हैं और न ही वे किसी को फॉलो करते हैं। मुझे हैरानी है कि मोहम्मद जुबैर के पास सारे ट्वीट महज 4 मिनट के अंदर कैसे पहुंच गए? इसका मतलब है कि किसी ने ये ट्वीट जुबेर से साझा किए। इसलिए मैंने यह मामला उठाया ताकि सच्चाई सामने आ सके।
कृषि सुधार कानून को लेकर जो कथित आंदोलन हुआ, क्या उसमें भी पाकिस्तान या खालिस्तानियों का हाथ था?
देखिए, पाकिस्तान खुद को भारत का दुश्मन मानता है। वह भारत को अस्थिर करने की हर संभव कोशिश करता है। पाकिस्तान केवल उन्हीं मुद्दों को तूल देता है, जो विवादित हैं। इनमें एक मुद्दा कैलेंडर को लेकर है, जो गुरुगोविंद सिंह जी के समय से चला आ रहा है। पाकिस्तान चाहता है कि सिख नए अंग्रेजी कैलेंडर को मानें। एक बार जब हम पाकिस्तान गए तो हमसे कहा गया कि आप पुराने कैलेंडर को क्यों मानते हैं? उस कैलेंडर को मानें, जिसे पाकिस्तान मानता है। इस कारण हम लोग कार्यक्रम बीच में ही छोड़ कर आ गए। भारत के सिखों ने हमेशा ही पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया है। लेकिन समस्या तब आती है, जब विदेशों में बैठा कोई व्यक्ति कुछ बेतुका बोलता है। तब लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि वे असली सिख हैं भी या नहीं। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है।
इस तरह की देश विरोधी गतिविधियों का पंजाब के युवाओं पर कैसा असर पड़ रहा है?
बेअंत सिंह के शासनकाल में पंजाब में लगभग एक लाख नौजवान मारे गए। 22-23 हजार नौजवान तो ऐसे थे, जिनकी लाश का भी पता नहीं चला। 1984 में पूरे देश में सिखों का कत्लेआम किया गया। आज पंजाब का कोई भी सिख नहीं चाहता कि राज्य में अस्थिरता फैले। कोई नहीं चाहता कि उसके बच्चे जेल जाएं। सिख जज्बाती होते हैं, इसलिए जब उन्हें बहकाया गया कि उन पर ज्यादतियां हुर्इं तो उन्होंने हथियार उठा लिए। लेकिन इसका खामियाजा कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा। आज भी बहुत से लोग जेलों में हैं। जो छूट गए, वे पैसे-पैसे को मोहताज हैं। आज पंजाब का कोई सिख यह नहीं चाहता कि उसकी आने वाली पीढ़ी विदेश में बैठे किसी व्यक्ति के इशारे चलकर जेलों में बर्बाद हो।
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