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#पंजाब में कन्वर्जन : सलीब और सवाल

पंजाब में ईसाई मिशनरियों के झांसे और जबरन कन्वर्जन के विरुद्ध जनआक्रोश बढ़ रहा है। आएदिन प्रार्थना और चंगाई सभाओं की आड़ में सांस्कृतिक धोखाधड़ी और कन्वर्जन को लेकर टकराव हो रहा है। राज्य में कन्वर्जन निरोधक कानून बनाने की मांग जोर पकड़ रही है, लेकिन क्या आआपा सरकार पंजाब की अस्मिता को बचाएगी

by नागार्जुन
Sep 12, 2022, 05:05 pm IST
in भारत, विश्लेषण, पंजाब
तरनतारन का वह चर्च जो कन्वर्जन का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है

तरनतारन का वह चर्च जो कन्वर्जन का एक बड़ा केंद्र बना हुआ है

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पंजाब के सीमावर्ती गांवों में ईसाई मिशनरियां सक्रिय हैं और तेजी से जबरन कन्वर्जन करा रही हैं। आलम यह है कि गांवों में घरों में ही ‘चर्च’ खुल गए हैं। विश्व हिंदू परिषद ने लगातार इसके खिलाफ आवाज उठाई। विहिप के पदाधिकारी पंजाब पर आसन्न खतरे को लेकर बार-बार आगाह करते रहे, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

अफ्रीका के विचारक व राजनेता डेसमंड मोपिलो टूटू ने कहा था, ‘‘ईसाई मिशनरियां जब अफ्रीका में आईं तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास जमीन। उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे लिए प्रार्थना करने आए हैं। हमने अपनी आंखें बंद कर लीं और जब खोलीं तो पाया कि हमारे हाथ में बाइबिल थी और उनके हाथ में जमीन।’’ भारत के संदर्भ में भी टूटू के विचार सटीक बैठते हैं। खासकर सीमावर्ती राज्य पंजाब के संदर्भ में। पंजाब के सीमावर्ती गांवों में ईसाई मिशनरियां सक्रिय हैं और तेजी से जबरन कन्वर्जन करा रही हैं। आलम यह है कि गांवों में घरों में ही ‘चर्च’ खुल गए हैं। विश्व हिंदू परिषद ने लगातार इसके खिलाफ आवाज उठाई। विहिप के पदाधिकारी पंजाब पर आसन्न खतरे को लेकर बार-बार आगाह करते रहे, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

बीते साल विहिप ने जब इसके खिलाफ मोर्चा खोला, तब बीबी जागीर कौर और श्रीअकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी कन्वर्जन पर कड़ा रुख अपनाया। राज्यभर में जागरुकता अभियान चलाए गए। नतीजा, लोगों में जागरुकता आई है और ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध हिंदू और सिख समुदाय लामबंद हो गए हैं। उनका आक्रोश फूटने लगा है। राज्य में चंगाई सभाओं के नाम पर होने वाले कन्वर्जन कार्यक्रमों और चर्च का विरोध होने लगा है। कन्वर्जन के बढ़ते मामलों के विरुद्ध सामाजिक टकराव बढ़ रहा है। लुधियाना और तरनतारन की घटनाएं इसका ताजा उदाहरण हैं।

 

इन राज्यों में कन्वर्जन रोधी कानून

  • ओडिशा (1967) – 1 साल कैद, “5,000 जुर्माना। एससी-एसटी मामले में 2 साल कैद, “10,000 जुर्माना।
  • अरुणाचल प्रदेश (1978) – 2 साल की सजा, “1,0000 जुर्माना। एससी-एसटी मामले में 2 कैद, “10,000 जुर्माना।
  • झारखंड (2017) – 3 साल कैद, “50,000 जुर्माना। एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा ,”1,00,000 जुर्माना।
  • उत्तराखंड (2018) – 1-5 साल कैद, एससी-एसटी मामले में 2-7 साल कैद। संशोधित विधेयक विधानसभा में पेश।
  • उत्तर प्रदेश (2020)- 5 साल कैद, न्यूनतम “15,000 जुर्माना। एससी/एसटी व सामूहिक कन्वर्जन पर 3-10 साल कैद और ” 50,000 जुर्माना।
  •  छत्तीसगढ़ (2006) – कानून के उल्लंघन पर 3 साल कैद, “20,000 जुर्माना। एससी-एसटी मामले में 4 साल कैद, “20,000 जुर्माना।
  •  मध्य प्रदेश (2020) – कानून के उल्लंघन पर अधिकतम 10 साल कैद और “50,000 तक जुर्माना।
  • गुजरात (2021) – कानून के उल्लंघन पर 5 साल कैद और दो लाख रुपये तक जुर्माना।
  •  हरियाणा (2022) – जबरन कन्वर्जन पर एक से 5 साल तक कैद और कम से कम एक लाख रुपये तक जुर्माना।
  • हिमाचल प्रदेश (2022) – सामूहिक कन्वर्जन पर 10 साल तक जेल और 2 लाख रुपये जुर्माना।
  •  कर्नाटक (2022) – 3-5 साल कैद, “25,000 जुर्माना। एससी-एसटी मामले में 10 साल कैद, एक लाख रुपये तक जुर्माना।
    तमिलनाडु में 2002 में कन्वर्जन रोधी कानून पारित किया गया, पर ईसाई मिशनरियों के विरोध के बाद 2006 में वापस ले लिया गया।राजस्थान में 2008 में विधेयक पारित हुआ, लेकिन केंद्र ने कुछ स्पष्टीकरण के लिए इसे वापस भेज दिया। कानून लागू नहीं हुआ।

    संसद में नाकाम कोशिश

    1954 में पहली बार संसद में भारतीय कन्वर्जन विनियमन एवं पंजीकरण विधेयक पेश किया गया, पर यह पारित नहीं हो सका। इसके बाद 1960 और 1979 में इसे पारित करने के प्रयास हुए, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2015 में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रीय स्तर पर कन्वर्जन निरोधक कानून बनाने पर जोर दिया था। 

 

‘खतरे में पंजाब, लगातार
इसे तोड़ने के हो रहे प्रयास’

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने ईसाई मिशनरियों द्वारा किए जा रहे कन्वर्जन और राज्य में मुसलमानों की बढ़ती आबादी को बड़ा खतरा बताया है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान 1980 से लगातार पंजाब को तोड़ने और सिख समुदाय को बांटने के प्रयासों में लगा हुआ है। लेकिन पंजाब का ऐसा कोई सिख नहीं है, जो यह चाहता हो कि उसकी आने वाली पीढ़ी बर्बाद हो। पाञ्चजन्य संवाददाता राज चावला ने कई मुद्दों पर मनजिंदर सिंह सिरसा से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के अंश-

भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा

पिछले कुछ वर्षों से पंजाब में जबरन कन्वर्जन के मामलों में तेजी आई है। राज्य में कन्वर्जन का सिलसिला कब शुरू हुआ? आप इसे कितना खतरनाक मानते हैं?
यह बहुत डराने वाली बात है। मैं खासतौर से अपने सिख भाइयों से यह बात जरूर कहना चाहूंगा कि कोई आपके परिवारों को रोज खा रहा है। वैसे तो कन्वर्जन का सिलसिला 18वीं सदी में शुरू हो गया था। जब हम महाराजा रणजीत सिंह का साम्राज्य वापस छीन नहीं पाए, ईसाई तभी समझ गए थे कि हमें कैसे कमजोर किया जा सकता है। इसलिए उन्होंने कन्वर्जन की मुहिम चलाई। उस समय यहां से ब्रिटेन में रानी के नाम एक चिट्ठी भेजी गई थी। इसमें कहा गया था कि यहां सिखों का विश्वास गुरुगोविंद सिंह और गुरुग्रंथ साहिब से नहीं तोड़ा गया तो भविष्य में हमारे लिए यहां शासन करना मुश्किल हो जाएगा। उसी समय से गुरुद्वारों को बदनाम करने का काम शुरू किया गया। अंग्रेजों ने गुरुद्वारों पर पादरियों का कब्जा करा दिया ताकि वे वहां पर दुराचार करें और सिख अपने पंथ से दूर हो जाएं। इस तरह राज्य में ईसाई मिशनरी को फैलाया गया और बड़े-बड़े चर्च बनाए गए। सिख सभा ने इसे रोकने के लिए अभियान भी चलाया। लेकिन आज गुरदासपुर में बहुतायत सिख कन्वर्ट होकर ईसाई बन गए हैं। सिखों को डरा कर और लालच देकर बड़े पैमाने पर कन्वर्जन किया जा रहा है। हैरानी की बात है कि पुलिस और प्रशासन भी इस मामले में दखल देने को तैयार नहीं है। राज्य में 500 करोड़ रुपये की लागत से चर्च बन रहे हैं। सवाल है कि इतना पैसा कहां से आ रहा है? यह एक तरह से पंजाब पर हमला है। दूसरी ओर, राज्य में मुसलमान 38 लाख हो गए हैं। उनसे भी पंजाब को बहुत खतरा है।

 

राज्य में खालिस्तानी ताकतें सिर उठा रही हैं। क्रिकेटर अर्शदीप को खालिस्तानी बताया गया। इसके पीछे कौन सी मानसिकता काम कर रही है?
दरअसल, यह केवल अर्शदीप का मामला नहीं है, बल्कि पूरे सिख समुदाय पर हमला है। सिख समुदाय को बांटने की यह पाकिस्तान की पुरानी रणनीति है। बार-बार इस तरह के प्रयोग किए जाते रहे हैं। पाकिस्तान 1980 के दशक से लगातार यही रह रहा है। इसके लिए वह पन्नू जैसे खालिस्तानी आतंकियों को धन मुहैया कराता है, जो भारत के खिलाफ बोलते हैं। ऐसा करके दुनियाभर में यह प्रचारित करने का प्रयास किया जाता है कि ‘सिख भारत के खिलाफ हैं’ जिससे लोगों में सिखों के प्रति नकारात्मक नजरिया पैदा हो।
अर्शदीप के मामले में भी यही हुआ। सब कुछ एक सोची-समझी साजिश के तहत किया गया। इसमें भारत में कुछ लोग भी शामिल हैं, जिन्हें भले ही पाकिस्तान से सीधे तौर पर पैसे न मिलते हों, पर विदेशों से धन मिलता है। कुछ लोग देश का माहौल बिगाड़ना चाहते हैं। वे सरकार के खिलाफ माहौल बना कर अपनी पसंदीदा पार्टी को लाभ पहुंचाना चाहते हैं। इसलिए अर्शदीप मामले में मैंने आल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबेर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है। जुबेर ने एक कोलाज बनाकर ट्वीट किया है, जिसमें सारे ट्वीट पाकिस्तान, वहां के पत्रकारों के वेरिफाइड अकाउंट से किए गए थे। इसमें वैसे ट्वीट भी थे, जो अर्शदीप के पक्ष में थे और जिसमें लोगों ने पूछा था कि क्रिकेटर को खालिस्तानी क्यों कहा गया। अधिकांश ट्विटर अकाउंट भातीय नाम से हैं, जिनके न तो फॉलोअर हैं और न ही वे किसी को फॉलो करते हैं। मुझे हैरानी है कि मोहम्मद जुबैर के पास सारे ट्वीट महज 4 मिनट के अंदर कैसे पहुंच गए? इसका मतलब है कि किसी ने ये ट्वीट जुबेर से साझा किए। इसलिए मैंने यह मामला उठाया ताकि सच्चाई सामने आ सके।

कृषि सुधार कानून को लेकर जो कथित आंदोलन हुआ, क्या उसमें भी पाकिस्तान या खालिस्तानियों का हाथ था?
देखिए, पाकिस्तान खुद को भारत का दुश्मन मानता है। वह भारत को अस्थिर करने की हर संभव कोशिश करता है। पाकिस्तान केवल उन्हीं मुद्दों को तूल देता है, जो विवादित हैं। इनमें एक मुद्दा कैलेंडर को लेकर है, जो गुरुगोविंद सिंह जी के समय से चला आ रहा है। पाकिस्तान चाहता है कि सिख नए अंग्रेजी कैलेंडर को मानें। एक बार जब हम पाकिस्तान गए तो हमसे कहा गया कि आप पुराने कैलेंडर को क्यों मानते हैं? उस कैलेंडर को मानें, जिसे पाकिस्तान मानता है। इस कारण हम लोग कार्यक्रम बीच में ही छोड़ कर आ गए। भारत के सिखों ने हमेशा ही पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया है। लेकिन समस्या तब आती है, जब विदेशों में बैठा कोई व्यक्ति कुछ बेतुका बोलता है। तब लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि वे असली सिख हैं भी या नहीं। इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है।

इस तरह की देश विरोधी गतिविधियों का पंजाब के युवाओं पर कैसा असर पड़ रहा है?
बेअंत सिंह के शासनकाल में पंजाब में लगभग एक लाख नौजवान मारे गए। 22-23 हजार नौजवान तो ऐसे थे, जिनकी लाश का भी पता नहीं चला। 1984 में पूरे देश में सिखों का कत्लेआम किया गया। आज पंजाब का कोई भी सिख नहीं चाहता कि राज्य में अस्थिरता फैले। कोई नहीं चाहता कि उसके बच्चे जेल जाएं। सिख जज्बाती होते हैं, इसलिए जब उन्हें बहकाया गया कि उन पर ज्यादतियां हुर्इं तो उन्होंने हथियार उठा लिए। लेकिन इसका खामियाजा कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ा। आज भी बहुत से लोग जेलों में हैं। जो छूट गए, वे पैसे-पैसे को मोहताज हैं। आज पंजाब का कोई सिख यह नहीं चाहता कि उसकी आने वाली पीढ़ी विदेश में बैठे किसी व्यक्ति के इशारे चलकर जेलों में बर्बाद हो।

क्या हुआ तरनतारन में?
30 अगस्त की रात पंजाब के तरनतारन में कस्बा पट्टी के गांव ठकरपुर में जबरन कन्वर्जन से नाराज कुछ लोगों ने चर्च में तोड़फोड़ की और पादरी की गाड़ी को आग के सुपुर्द कर दिया। पुलिस के अनुसार, सीसीटीवी की जद में चार नकाबपोश आरोपी आए हैं। चौकीदार के सिर पर पिस्तौल तानकर उसका हाथ बांधने के बाद चारों नकाबपोश युवक चर्च में घुसे और पहली मंजिल पर तोड़फोड़ की। जाते समय उन्होंने चर्च परिसर में खड़ी कार को भी आग लगा दी। इसके कारण कई दिन तक इलाके में तनाव की स्थिति रही। घटना के बाद ईसाइयों ने पट्टी-खेमका राजमार्ग जाम कर दिया था।

इस घटना से दो दिन पहले यानी 28 अगस्त को अमृतसर के गांव डडुआना में ईसाइयों और निहंगों के बीच झड़प हुई थी। निहंगों ने ईसाइयों द्वारा आयोजित कार्यक्रम को रुकवा दिया था और वहां तोड़फोड़ भी की थी। इस मामले में पुलिस ने 150 निहंगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। सिखों की सर्वोच्च संस्था श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इसका विरोध भी किया था। उनका कहना था कि पादरी पाखंड करके हिंदू और सिखों को बरगला रहे हैं और उनका कन्वर्जन करा रहे हैं। निहंगों ने कई बार इसकी शिकायत भी की, लेकिन सरकार ने इसे अनसुना कर दिया। इसके बाद विवाद और भड़क गया था।

इसी तरह, इससे कुछ दिन पहले लुधियाना में मुल्लांपुर के पास गांव बलीपुर खुर्द में एक घर में चल रहे चर्च को लेकर तनाव हुआ था। गांव के सरपंच जागीर सिंह व अन्य लोगों का कहना है कि बीरबल सिंह ने अपने घर में 8-10 साल पहले चर्च की स्थापना की थी। वहां हर रविवार को प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है। आरोप है कि प्रार्थना सभा की आड़ में प्रलोभन देकर लोगों का कन्वर्जन किया जाता है। यही नहीं, पादरी गुरुद्वारा साहिब के खिलाफ प्रचार भी करते हैं। सिखों के घरों में लगी गुरुओं की तस्वीरें तक उतरवाई जा रही हैं। लेकिन पुलिस और प्रशासन ने कभी कोई कार्रवाई नहीं की। ग्रामीणों ने प्रार्थना सभा के विरुद्ध कई बार धरना भी दिया, लेकिन न तो कन्वर्जन रुका और न ही कोई कार्रवाई की गई। उलटे पादरी की शिकायत पर पुलिस ने 9 लोगों पर हत्या के प्रयास सहित विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया।

अर्शदीप के बहाने सिखों को बांटने की कुचेष्टा

4 सितंबर को दुबई में भारत-पाकिस्तान के बीच एशिया कप सुपर-4 के एक रोचक मुकाबले में भारतीय गेंदबाज अर्शदीप सिंह से पाकिस्तानी बल्लेबाज आसिफ अली का कैच छूट गया। नतीजा, भारतीय टीम 5 विकेट से मैच हार गई। इसके बाद अर्शदीप सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स के निशाने पर आ गए। उनके विकीपीडिया पर छेड़छाड़ कर बार-बार उन्हें खालिस्तानी बताया गया।

अर्शदीप का देश ‘खालिस्तान पंजाब’ बताते हुए उनका नाम मेजर ‘अर्शदीप सिंह लांगड़ा’ और मेजर ‘अर्शदीप सिंह बाजवा’ लिखा गया। यह भी लिखा गया कि उन्हें ‘खालिस्तानी राष्ट्रीय क्रिकेट टीम’ के लिए खेलने को चुना गया था। हालांकि, विकिपीडिया ने थोड़ी ही देर में इस ‘गड़बड़ी’ को ठीक कर लिया, पर भारत सरकार ने अर्शदीप के बहाने सिख समुदाय को बांटने के कुत्सित प्रयास पर नाराजगी जताई। सरकार ने नोटिस जारी कर विकीपीडिया से पूछा है कि उसके पेज पर गलत जानकारी कैसे प्रकाशित हुई। इस मामले में पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई की संलिप्तता सामने आई है। जिस आईपी एड्रेस से अर्शदीप के विकीपीडिया पेज से छेड़छाड़ की गई, उसी से 2014 में यूएई विकीपीडिया पेज को संपादित किया गया था। इसमें पाकिस्तानी फौज और पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां थीं। पहली बार पेज से छेड़छाड़ करने वाला पाकिस्तान की सरकारी टेलीकॉम कंपनी पाकिस्तान टेलिकम्युनिकेशन के नेटवर्क का प्रयोग कर रहा था। भारतीय क्रिकेटर के पेज से छेड़छाड़ से कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका थी, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता था।  केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने ट्वीट इस पर नाराजगी जताते हुए लिखा, ‘‘भारत में संचालित कोई भी इन्टरमीडियरी (मध्यवर्ती) इस तरह की गलत सूचना फैलाने, भड़काने और उपयोगकर्ता को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं दे सकती, जो हमारी सरकार की सुरक्षित और विश्वसनीय इंटरनेट की अपेक्षाओं का उल्लंघन करता है।

कांग्रेस का खुला समर्थन


राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने मिशनरियों को पूरा समर्थन दिया। नवजोत सिंह सिद्धू सिख हैं, लेकिन उन्होंने ईसाइयों का खुलकर समर्थन किया। इस साल पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने अमृतसर में कहा था, ‘‘जब तक जिंदा हूं, तब तक कोई भी ईसाई मत पर बुरी नजर नहीं डाल सकता।’’ सिद्धू पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं। यही नहीं, पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी कन्वर्जन को जायज ठहरा चुके हैं। 4 फरवरी, 2022 को चन्नी ने कहा था, ‘‘ईसाई मत में मेरी आस्था है। पैदा सिख हुआ हूं, लेकिन यह भी है कि मैं प्रभु ईसा मसीह को प्रेम करता हूं।’’ क्रिसमस के मौके पर ‘वॉयस आॅफ पीस मिनिस्ट्री’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने यह बात कही थी। उस समय दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने विधानसभा चुनाव के दौरान चन्नी पर ईसाई मत अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि पंजाब के सिखों के लिए इससे अधिक दुखदायी और शर्मनाक बात क्या होगी कि उनका अपना सिख मुख्यमंत्री कन्वर्जन को सही ठहरा रहा है।

पंजाब में कन्वर्जन के सूत्रधार

अंकुर नरूला जालंधर में सबसे बड़े चर्च का निर्माण करा रहा है। वह ‘अंकुर नरूला मिनिस्ट्री’ नाम से चर्च का संचालन करता है। 2008 में उसके महज 3-4 अनुयायी थे, पर 2018 में यह संख्या 1.3 लाख हो गई। अब उसके अनुयायियों की संख्या लगभग 4 लाख हो गई है। इसके अलावा गुरशरण कौर देओल, बजिंदर सिंह, कंचन मित्तल, डॉ. हरप्रीत सिंह देओल जैसे कई स्वयंभू पादरी अपने-अपने नाम से ईसाई मिनिस्ट्री चला रहे हैं। जैसे- प्रॉफेट जिंदर सिंह मिनिस्ट्रीज, अपोस्टल अंकुर योसेफ नरूला मिनिस्ट्रीज, पास्टर हरप्रीत देओल खोजेवाला मिनिस्ट्रीज, पास्टर अमृत संधू मिनिस्ट्रीज, पास्टर हरजीत सिंह मिनिस्ट्रीज, पास्टर मनीष गिल मिनिस्ट्रीज, पास्टर कंचन मित्तल मिनिस्ट्रीज, पास्टर दविंदर सिंह मिनिस्ट्रीज, पास्टर रमन हंस मिनिस्ट्रीज आदि। ये तेज गति से कन्वर्जन की गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। बजिंदर सिंह पर तो बलात्कार के आरोप हैं। धर्म जागरण विभाग के एक पदाधिकारी के अनुसार, तीन साल पहले उन्होंने एक पादरी के लैपटॉप पर राज्य में सक्रिय 700 पादरियों की सूची देखी थी। अब इस संख्या में और वृद्धि हो गई है।

 

कई जिलों में कन्वर्जन
पूर्वोत्तर के अधिकतर राज्यों में हिंदू पहले ही अल्पसंख्यक हो चुके हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में भी ईसाई मिशनरियां जनजातीय बहुल इलाकों में अपनी पैठ बना चुकी हैं। इन इलाकों में ईसाई मिशनरियां अभी भी चोरी-छिपे ही कन्वर्जन की गतिविधियां चला रही हैं। लेकिन पंजाब में ऐसा नहीं है। यहां खुलेआम कन्वर्जन को अंजाम दिया जा रहा है। वैसे तो पंजाब में बीते दो दशकों से कन्वर्जन कराया जा रहा है। लेकिन हाल के वर्षों में इसमें तेजी आई है। मिशनरियों ने देखते-देखते अमृतसर, जालंधर, गुरदासपुर, बटाला, मजीठा, डेरा बाबा नानक, लुधियाना, फतेहगढ़ चूड़ियां और अजनाला के ग्रामीण इलाकों में अपनी जड़ें जमा लीं। कन्वर्ट होने वालों में अधिकांश वंचित और जाट सिख समुदाय के लोग हैं। आलम यह है कि पंजाब की आर्थिक राजधानी जालंधर और कपूरथला जिले ईसाइयत के केंद्र बन गए हैं। जालंधर के खांबड़ा गांव में करोड़ों रुपये की लागत से एशिया का सबसे बड़ा और दुनिया का चौथा सबसे बड़ा चर्च बन रहा है।

40 एकड़ में फैले इस चर्च का निर्माण अंकित नरूला करा रहा है। इसके लिए वह विदेशों से भी चंदा इकट्ठा कर रहा है। यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के अनुसार, पंजाब के 12,000 से अधिक गांवों में से 8,000 गांवों में ईसाई मत की समितियां बन चुकी हैं। पाकिस्तान की सीमा से सटे अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में चार ईसाई समुदायों के 600-700 चर्च हैं। इनमें से 60-70 प्रतिशत चर्च तो बीते पांच साल में ही अस्तित्व में आए हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) को राज्य के कई इलाकों से कन्वर्जन की खबरें मिली हैं। 2016-17 में ईसाई नेता ईमैनुअल रहमत मसीह ने स्वीकार किया था कि पंजाब में ईसाई दो प्रतिशत से भी कम हैं, जबकि इनकी वास्तविक संख्या 7 से 10 प्रतिशत हो चुकी है। रहमत मसीह के दावे के अनुसार आज पंजाब में 30 से 35 लाख ईसाई रह रहे हैं।

कन्वर्जन के खिलाफ कानून की मांग
पंजाब में बढ़ते कन्वर्जन के खिलाफ कानून बनाने की मांग उठने लगी है। एसजीपीसी के अलावा, श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, दमदमी टकसाल के मुखिया बाबा हरनाम सिंह धुम्मा भी केंद्र और राज्य सरकार से कन्वर्जन विरोधी कानून बनाने और इसे सख्ती से लागू करने की मांग कर चुके हैं। एसजीपीसी के महासचिव करनैल सिंह पंजोली ने स्वीकार किया कि राज्य के युवाओं में विदेश जाने की बढ़ती ललक, नशा, कैंसर जैसी बीमारियों के प्रकोप, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और अच्छी शिक्षा के नाम पर ईसाई मिशनरियों ने अपना प्रभाव बढ़ाया है। इसके अलावा, चंगाई सभाओं में प्रार्थना से इलाज के नाम पर बरगला कर लोगों को चर्च तक खींच रहे हैं। इन चर्चों में भीड़ लगातार बढ़ रही है।

इस बाबत एसजीपीसी के पदाधिकारियों ने बीते दिनों राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष इकबाल सिंह लालपुरा से भी मुलाकात की और इस समस्या पर उनका ध्यान आकर्षित किया। अकाल तख्त के जत्थेदार का कहना है कि तथाकथित ईसाई मिशनरी कपटपूर्ण प्रथाओं के जरिए सिखों का जबरन कन्वर्जन कर रही हैं। यह ठीक सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तब पंजाब चुनाव प्रचार के दौरान तो बड़ी-बड़ी बातें की थीं, प्रलोभन देकर या जबरन कन्वर्जन को गलत बताते हुए कन्वर्जन रोधी कानून बनाने की वकालत की थी। आज प्रदेश में उनकी पार्टी की सरकार है, लेकिन कन्वर्जन के खिलाफ कानून बनाने की उठ रही मांग पर वह चुप्पी साधे बैठी है।

ईसाई मिशनरियों द्वारा आयोजित की जाने वाली चंगाई सभाओं में कैंसर और शारीरिक अपंगता तक दूर करने के झूठे दावे किए जाते है

इलाज के नाम पर ‘चंगाई झांसा’
ईसाई मिशनरियां प्रार्थना से हर तरह की बीमारी ठीक करने का दावा करती हैं। ये शारीरिक अपंगता से लेकर कैंसर तक ठीक करने का दावा करती हैं। इसके लिए चंगाई सभाएं आयोजित की जाती हैं। यहां तक कि ईसाई सरकारी अस्पतालों में मरीजों को सुगंधित तेल लगाकर इसे ‘यीशु का आशीर्वाद’ बताते हैं और कहते हैं कि इससे उनकी बीमारी ठीक हो जाएगी। कोरोना काल के बाद इस तरह की गतिविधियों में बढ़ोतरी हुई है। बीते साल 13 अप्रैल को इसी तरह की एक ठगी का मामला सामने आया। मुंबई के एक कैंसर मरीज ने जालंधर के एक पादरी पर इलाज के नाम पर 80 हजार रुपये ठगने और परिवार को कन्वर्ट करने का आरोप लगाया। बाद में हिंदू संगठनों ने न सिर्फ उसकी सहायता की, बल्कि उसकी घर वापसी भी कराई।

मिशनरियां यह दावा करती हैं कि यीशु शैतान के कामों को नष्ट करने के लिए आया था और उसमें बीमारियां भी शामिल थीं। यही नहीं, प्रार्थना सभाओं में पादरी नाटकीय ढंग से अपंग को भी चंगा कर देते हैं। वे पूछते हैं, ‘‘क्या तुम्हें यकीन है कि तुम यहां चंगे हो जाओगे?’’ जब वह हां में जवाब देता है तो पादरी वहां मौजूद लोगों से कहता है, ‘‘अपना हाथ उठाओ और पवित्र आत्मा को अपना काम करने दो।’’ इसके बाद वह मरीज पर जैसे कोई मंत्र फूंकता है और अपंग या मरीज से चिल्लाकर उठने को कहता है और वह उठ जाता है।

आर्यसमाजी नेता रणजीत आर्य बताते हैं कि जिस तरह 1980 के दशक में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में मिशनरियों ने अपना प्रभाव बढ़ा कर कन्वर्जन का प्रपंच रचा, आज पंजाब भी उसी रास्ते पर चलता दिख रहा है। राज्य में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अब सामाजिक ही नहीं, सरकारी स्तर पर भी अधिक सक्रियता महसूस की जाने लगी है। उनका कहना है कि जब तक मिशनरियों के विदेशी वित्तपोषण पर सख्ती से रोक नहीं लगेगी, तब यह मामला सुलझने वाला नहीं है।

राज्य में चलाए जा रहे घर वापसी अभियान को सफलता मिल रही है

घर वापसी अभियान
दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने पंजाब में कन्वर्जन के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। सिखों की घर वापसी के लिए उसने पंजाब के कई जिलों में कन्वर्टेड सिखों के बीच जनजागरण करते हुए स्वधर्म में लौटने का आह्वान किया है। उसके इस धर्म जागरूकता अभियान को काफी सफलता मिल रही है, कन्वर्जन में लगी ईसाई मिशनरियां हतोत्साहित हो रही हैं। डीएसजीपीसी ने ईसाई मिशनरियों के प्रपंच को रोकने के लिए राज्य में अपने कार्यकर्ता तैनात किए हैं। उसके इस अभियान के तहत अब तक कई सिख परिवारों ने पुन: सिख धर्म में वापसी की है। इन परिवारों को लालच दिया गया था कि यदि वे ईसाई मत स्वीकार करते हैं तो उन्हें स्वास्थ्य लाभ के साथ आर्थिक लाभ दिया जाएगा। ईसाई मिशनियां अमेरिका और कनाडा का वीजा देने का लालच देकर भी कन्वर्जन कर रही हैं। डीएसजीपीसी के घर वापसी अभियान को हिंदू संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है।

(साथ में पंजाब से राकेश सैन)

Topics: कन्वर्जनमनजिंदर सिंह सिरसासलीब और सवालईसाई मिशनरियांचंगाई झांसाघर वापसी अभियानपंजाब में कन्वर्जन : सलीब और सवाल
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