आज भाद्रपद पूर्णिमा को बिहार के गयाजी में पितृपक्ष मेला शुरू हो गया। बता दें कि कोरोना के कारण दो साल तक यह मेला बंद रहा था। दो साल बाद लगने वाले इस मेले में भारतभर से लोग गयाजी पहुंच रहे हैं। गया के एक कर्मकांड मर्मज्ञ सुबोध पाठक के अनुसार आज सुबह से गयाजी में पिंडदानियों की भारी भीड़ है। लोग अपने पितरों के लिए पिंडदान कर रहे हैं। ऐसे लोगों में वे लोग भी हैं, जिन्होंने कोरोना काल में अपने लोगों को खोया है।
इस समाचार के लिखे जाने तक लगभग 20,000 पिंडदानी गया पहुंच चुके थे। इनमें अधिकांश राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों के हैं।
पुराणों के अनुसार पितराें के लिए विशेष मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितराें को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। पितृ श्रेणी में मृत पूर्वजों माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी सहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं। मृत गुरु और आचार्य भी पितृ की श्रेणी में ही आते हैं।
गयाजी में कुल 54 स्थान हैं, जहां पिंडदान किया जाता है। इनमें विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अतिरिक्त प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामशिला, रामकुंड, कागबलि तीर्थ, सीताकुंड, रामगया और बैतरणी सरोवर आदि भी पिंडदान के प्रमुख स्थान हैं। यही कारण है कि गयाजी को पिंडदान करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। इसलिए देशभर के श्रद्धालु पितृ पक्ष में गया पहुंचते हैं और अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं। ऐसे गयाजी सहित देश में 55 ऐसे स्थान हैं, जहां लोग अपने पितरों के लिए तर्पण करते हैं।
बता दें कि सनातन धर्म में माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। पितृ पक्ष में हर सनातनी अपने पूर्वजों को याद कर उनके प्रति आभार व्यक्त करता है, उन्हें सम्मान प्रदान करता है।
गयाजी में पितृ पक्ष में एक दिवसीय, तीन दिवसीय, पांच दिवसीय, सात दिवसीय, 15 दिवसीय, 17 दिवसीय और 18 दिवसीय कर्मकांड करने का विधान है। लोग अपने समय को देखते हुए इनमें कोई एक कर्मकांड करवाते हैं।
पंडा समिति के अध्यक्ष सुदामा मिश्र के अनुसार पुनपुन में प्रथम पिंडदान करने का विशेष महत्व है। यह स्थान पटना-गया मार्ग पर पुनपुन नदी के किनारे है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने भी अपने पिताश्री राजा दशरथ का प्रथम पिंडदान पुनपुन में किया था।
मालवा की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने अपने पितरों का पिंडदान गयाजी में किया था।
उल्लेखनीय है कि गयाजी फल्गु नदी के किनारे बसा है। कई वर्ष से फल्गु नदी में पानी नहीं रहने से श्रद्धालुओं को बड़ी कठिनाई होती थी। इस बार फल्गु नदी में पर्याप्त पानी की व्यवस्था की गई है।
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