देश के द्वितीय राष्ट्रपति और महान भारतीय दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि ‘अगर हम दुनिया के इतिहास को देखें, तो पाएंगे कि सभ्यता का निर्माण उन महान ऋषियों और वैज्ञानिकों के हाथों से हुआ है, जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं, जो देश और काल की गहराइयों में प्रवेश करते हैं, उनके रहस्यों का पता लगाते हैं और इस तरह से प्राप्त ज्ञान का उपयोग विश्व श्रेय या लोककल्याण के लिए करते हैं।’
भारतीय परंपरा में शिक्षा का क्या अर्थ है? हम डिग्री नहीं, ज्ञान की बात करते हैं। ज्ञान व्यक्ति में विचार का प्रस्फुटन करता है। ज्ञान भावी चुनौतियों से निबटने की मानसिकता तैयार करता है। ज्ञान व्यक्ति में रचनात्मकता लाता है, मनुष्य के संपूर्ण व्यवहार को बदल देता है। तब यह ज्ञान लोककल्याण के उपयोग में आता है।
देश के द्वितीय राष्ट्रपति और महान भारतीय दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि ‘अगर हम दुनिया के इतिहास को देखें, तो पाएंगे कि सभ्यता का निर्माण उन महान ऋषियों और वैज्ञानिकों के हाथों से हुआ है, जो स्वयं विचार करने की सामर्थ्य रखते हैं, जो देश और काल की गहराइयों में प्रवेश करते हैं, उनके रहस्यों का पता लगाते हैं और इस तरह से प्राप्त ज्ञान का उपयोग विश्व श्रेय या लोककल्याण के लिए करते हैं।’
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम कहते थे कि ‘शिक्षा अपने वास्तविक अर्थों में सत्य की खोज है। शिक्षा ज्ञान की यात्रा है, इसलिए क्षुद्रता, वैमनस्य, ईर्ष्या, घृणा या शत्रुता की कोई गुंजाइश नहीं है। शिक्षा मनुष्य के संपूर्ण व्यवहार को बदल देती है। एक महान आत्मा और ब्रह्माण्ड के लिए एक संपत्ति शिक्षा ही है। शिक्षा सुंदर दिमाग बनाने के बारे में है जो रचनात्मक है।’
ज्ञान समुचित कौशल की ओर उन्मुख करता है। कौशल ज्ञान का उपयोग, उसे व्यवहार में लाना सिखाता है। ज्ञान के साथ कौशल को जोड़ना भारतीय परंपरा रही है। शिक्षा ज्ञान के अनुरूप कौशल गढ़ती है।
व्यक्ति की पात्रता (योग्यता) राष्ट्र के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। ज्ञान व्यक्ति के साथ ही देश की पात्रता में भी वृद्धि करता है। इससे व्यक्ति का बहुमुखी विकास होगा। किसी राष्ट्र का मानव संसाधन यदि श्रेष्ठतर है तो उस राष्ट्र की भी उन्नति होगी
परंतु यह ज्ञान शिखर तक कब ले जाता है? जब प्राप्त ज्ञान रुचि के अनुरूप होता है तो ज्ञान बढ़ता है। विद्यार्थी की जिस विषय में रुचि न हो, यदि वह उस विषय का ज्ञान प्राप्त करने का यत्न करे तो क्या होगा? ज्ञान प्राप्ति में अधिक समय, अधिक परिश्रम लगेगा और प्राप्त ज्ञान पर्याप्त कौशलों से नहीं जुड़ पाएगा। फलत: न ज्ञान का समुचित व्यावहारिक उपयोग हो सकेगा और न ही ऐसा ज्ञान दीर्घकाल तक व्यक्ति को जोड़े रखेगा।
जब ज्ञान और कौशल रुचि आधारित होगा तो वह ज्ञान व्यक्ति को शिखर तक ले जाएगा। रुचि व्यक्ति के गुणधर्म, स्वभाव के अनुरूप होती है। इसलिए रुचि पर आधारित विषय से अरुचि नहीं होती। व्यक्ति में भटकाव नहीं आता। रुचिकर विषय में पैठने पर रुचि का विस्तार होता है। रुचि के विषय का पीछा करने से मध्य आयु में होने वाले मोहभंग, अवसाद, इनके परिणामों से परिवार में टूटन जैसी बातों से व्यक्ति मुक्त रहता है।
निश्चित रूप से रुचि आधारित विषय क्षेत्र में आगे बढ़ने पर व्यक्ति का करियर बनेगा। आपका ध्यान आपकी रुचि पर केंद्रित रहेगा। व्यक्ति अपने कार्य में अनुशासित रहेगा। इससे आपको उस कार्य में आनंद आएगा। आंकड़े, पैसा आपका ध्यान नहीं भटका पाएंगे। बल्कि आनंदपूर्वक उस कार्य को करने से आंकड़े, पैसे अपने-आप आएंगे।
व्यक्ति की पात्रता (योग्यता) राष्ट्र के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। ज्ञान व्यक्ति के साथ ही देश की पात्रता में भी वृद्धि करता है। इससे व्यक्ति का बहुमुखी विकास होगा। किसी राष्ट्र का मानव संसाधन यदि श्रेष्ठतर है तो उस राष्ट्र की भी उन्नति होगी।
ज्ञान और उसके व्यावहारिक पक्ष को देखने की हमारी परंपरा रही है। ज्ञान से अनुशासन की हमारी परंपरा रही है। ज्ञान के जरिए जीवन मूल्यों को आत्मसात करने की हमारी परंपरा रही है। हमारी यह परंपरा हमें प्रगति के पथ पर भी ले जाएगी। परंपरा का अर्थ प्राचीनता या पिछड़ापन नहीं होता। परंपरा का अर्थ प्रगति भी है। इसी की तैयारी कर रहा है भारत। इसी ज्ञान, कौशल के परिप्रेक्ष्य में शिक्षक दिवस पर नई शिक्षा नीति, ज्ञान एवं कौशल चयन के आधार, रोजगार विकल्पों और अनूठे शिक्षकों की कथाएं समेटे पाञ्चजन्य का विशेष आयोजन।
@hiteshshankar
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