सरस्वती और लक्ष्मी की समान रूप से आराधना करने वाला भारत एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में जाने जाने की क्षमता रखता है। बेईमानी का प्रतिफल भ्रष्टाचार है और हमें इसकी कीमत भेदभाव के साथ अक्षमता के रूप में चुकानी पड़ती है। ऐसे में भारत और विदेशों में नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक मानव संसाधन के लिए कौशल के साथ गुणवत्ता, सामर्थ्य और आवश्यकतापरक शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नवाचारी समाधानों की आवश्यकता है।
भारत में आवश्यकतापरक शिक्षा के लिए हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) को प्रज्ञावान भारतीयों के सामूहिक ज्ञान से उत्पन्न नवाचार के रूप में लेना होगा और उस पर निश्चित भाव से नवाचार के रूप में काम करना होगा। इसका अर्थ है कि हमें सभी प्रकार की चुनौतियों को स्वीकार करते हुए हस्तक्षेपों को लागू करना होगा। उद्योग सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक मानव संसाधन के लिए कौशल के साथ गुणवत्ता, सामर्थ्य और आवश्यकतापरक शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नवाचारी समाधानों की आवश्यकता है।
गुणवत्ता और मात्रा के बीच 36 का आंकड़ा होता है। आवश्यकता परक गुणवत्ता के लिए, हमें मात्रा का त्याग करना होगा। लेकिन, लोकतांत्रिक भारत की मजबूरी है कि वह सकल नामांकन अनुपात को बढ़ाने के साथ-साथ गुणवत्ता सुनिश्चित करे। यह एनईपी 2020 के कार्यान्वयन में एक चुनौती है।
उत्तर प्रदेश के सभी सरकारी एवं निजी विश्वविद्यालयों में संचालित तीन विषय वाले सभी 3 वर्षीय पाठ्यक्रमों में सत्र 2021-22 से ही नई शिक्षा नीति 2020 लागू कर दी जाएगी।
उत्तर प्रदेश में 4 वर्षीय स्नातक सहित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में सीबीसीएस आधारित नया पाठ्यक्रम भी नए सत्र से लागू कर दिया जाएगा।
हम में से बहुत से लोग निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों में नियोजन की दृष्टि से लापरवाह और अनुपयोगी हैं। असल चुनौती यह है कि कैसे लापरवाह और अनुपयोगी लोगों को वर्तमान सेवा बाजार में नियोक्ताओं की आवश्यकता के अनुरूप सतर्क एवं उपयोगी मानव संसाधन में परिवर्तित किया जाए।
सरस्वती और लक्ष्मी की समान रूप से आराधना करने वाला भारत एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में जाने जाने की क्षमता रखता है। बेईमानी का प्रतिफल भ्रष्टाचार है और हमें इसकी कीमत भेदभाव के साथ अक्षमता के रूप में चुकानी पड़ती है। ऐसे में भारत और विदेशों में नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक मानव संसाधन के लिए कौशल के साथ गुणवत्ता, सामर्थ्य और आवश्यकतापरक शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नवाचारी समाधानों की आवश्यकता है।
प्रशिक्षण की चुनौती
विदेशी विश्वविद्यालयों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए हमें शिक्षकों के आध्यात्मिक प्रशिक्षण की चुनौती को स्वीकार करना होगा। संस्थानों में शिक्षण और सीखने के परिणामों में सुधार के लिए, हमें गीता, अणु-गीता और रामायण जैसे महाकाव्यों में निर्दिष्ट मस्तिष्क और हृदय के गुणों, मानवीय मूल्यों और नैतिकता युक्त सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों को नियुक्त करने की आवश्यकता है।
वर्तमान में देखें तो रोजगार के अधिकतम अवसर विपणन में उपलब्ध हैं क्योंकि बाजार वस्तुओं से भरा है और वास्तविक चुनौती इन उत्पादों को बेचना है। इसके लिए संचार कौशल की आवश्यकता होती है जिसके बिना कोई भी जीवित नहीं रह सकता और न ही किसी भी उत्पाद या सेवा के आवश्यकतापरक विपणन में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है।
भारतीय संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सामर्थ्य तथा पहुंच के बीच के द्वैत को समाप्त करने के लिए, हमें शैक्षिक उत्पादों के विपणन के लिए एनएडब्ल्यू (आवश्यकता, सामर्थ्य और मूल्यवत्ता) दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कोई शैक्षिक उत्पाद तभी लोकप्रिय होगा जब वह छात्रों की जरूरी आवश्यकताओं को पूरा करे, रोजगार के अवसर प्रदान करे और उपयोगितावादी हो।
स्किल इंडिया कार्यक्रम के तहत आवश्यकतापरक रोजगार और आवश्यकतापरक उद्यमिता के लिए हमें जीवन कौशल, पढ़ने का कौशल, लेखन कौशल, विपणन कौशल, व्यावसायिक कौशल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के विश्लेषण का कौशल और सबसे ऊपर मौखिक संचार कौशल की आवश्यकता है। भारतीय युवाओं के समृद्ध और प्रगतिशील भविष्य के लिए हमें पूरे भारत में व्यक्तियों और समुदायों को कुशल बनाने की आवश्यकता है। ‘मेक इन इंडिया’ के लिए विकास रणनीति के रूप में ‘स्किल इंडिया’ के तहत कौशल विकास के प्रयास आवश्यक हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं।
स्ट्रीट स्मार्ट बनने की जरूरत
आवश्यकता परक रोजगार और आवश्यकता परक उद्यमिता के लिए, हमें ‘स्ट्रीट स्मार्ट’ (सरल, नैतिक, क्रिया-उन्मुख, उत्तरदायी और पारदर्शी) बनने की आवश्यकता है। इसके लिए सादा जीवन और विचारमुक्त जीवन की जरूरत है। यहां विचारमुक्त होने का मतलब यह नहीं है कि हमें विचार ही नहीं करना चाहिए। हमें कर्मों के बारे में विचार करना चाहिए न कि परिणाम के बारे में, जैसा कि गीता में प्रमाणित है। भारतीय शिक्षा प्रणाली में मानव संसाधन विकास (एचआरडी) हेतु व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए एचआरडी के एसआईएमपीएलई (सिम्पल) मॉडल को समझना आवश्यक है जिसमें छह मानव विकास गतिविधियां, (एस) आध्यात्मिक लब्धि (एसक्यू) विकास, (आई) अंतर्ज्ञान विकास, (एम) मानसिक स्तर का विकास, (पी) शारीरिक विकास, (एल) खुद से प्रेम करने के रवैये का विकास और (ई) भावनात्मक लब्धि (ईक्यू) का विकास सम्मिलित है। मानव संसाधन विकास के इन छह पहलुओं का तालमेल वांछनीय पेशेवरों की एक अनिवार्य आवश्यकता है।
आवश्यकतापरक कौशल
स्किल इंडिया कार्यक्रम के तहत आवश्यकतापरक रोजगार और आवश्यकतापरक उद्यमिता के लिए हमें जीवन कौशल, पढ़ने का कौशल, लेखन कौशल, विपणन कौशल, व्यावसायिक कौशल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के विश्लेषण का कौशल और सबसे ऊपर मौखिक संचार कौशल की आवश्यकता है। भारतीय युवाओं के समृद्ध और प्रगतिशील भविष्य के लिए हमें पूरे भारत में व्यक्तियों और समुदायों को कुशल बनाने की आवश्यकता है। ‘मेक इन इंडिया’ के लिए विकास रणनीति के रूप में ‘स्किल इंडिया’ के तहत कौशल विकास के प्रयास आवश्यक हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं। उन्हें पर्याप्त और दीर्घकालिक बनाने के लिए हमें प्रशिक्षण निवेश पर लाभ (आरओटीआई) बढ़ाने की जरूरत है जो आध्यात्मिक आदान (इनपुट) और समय प्रबंधन के साथ संचार कौशल की मांग करता है। अधिक जवाबदेही, पारदर्शिता और नैतिकता (एटीएम) के साथ मूलभूत परिवर्तन सुनिश्चित करने वाले सुधारों की शृंखला के साथ प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किए जाने की तत्काल आवश्यकता है। हमें वास्तविक समय के आधार पर कौशल की मांग और आपूर्ति प्राप्त करने के लिए श्रम बाजार प्रणाली को गतिशील बनाने की भी आवश्यकता है।
दिमाग और दिल की क्षमताएं, कौशल और ज्ञान (एएसके) आर्थिक विकास और मानव संसाधन विकास (एचआरडी) के इंजन हैं। एएसके के उच्च और बेहतर स्तर वाले देश प्रतिस्पर्धा की चुनौतियों और अवसरों के बारे में अधिक प्रभावी और त्वरित प्रतिक्रिया करते हैं।
ज्ञानार्जन को और अधिक समावेशी बनाने के लिए कक्षाओं के बाहर छाया प्रशिक्षकों/शिक्षकों का उपयोग करने के पक्ष में भी मजबूत तर्क है। हमें भारत में परिवर्तन को स्थायी बनाने के लिए संचार कौशल, कंप्यूटर साक्षरता, अंग्रेजी भाषा में दक्षता, गुणवत्ता प्रबंधन उपकरणों, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, तथा उद्यमशीलता विकास कौशल आदि मृदु कौशलों की आवश्यकता है।
लेखन कौशल एक कला है जिसे बहुत सारा पढ़ने के माध्यम से निश्चित रूप से विकसित किया जा सकता है। बोलने से ज्यादा मौन के संचार कौशल को साबित करने के लिए भगवद्गीता के अध्याय 17 के श्लोक संख्या 15 का उल्लेख समीचीन होगा। दोषारोपण और शब्द-युद्धों से बचने के लिए बोलना चांदी है, तो मौन सोना। और, इसे साबित करने के लिए हमें जिह्वा-ध्यान करने की जरूरत है। संक्षेप में, हमें निर्णय लेने के मृदु कौशल के साथ आवश्यकता परक शिक्षा विकसित करने की वैसे ही जरूरत है जैसे सूचना प्रौद्योगिकी में सॉफ्टवेयर, जो हार्डवेयर से अधिक महत्वपूर्ण नहीं तो उसके बराबर ही महत्वपूर्ण होता है। निर्णय प्रक्रिया में देरी खत्म करने के लिए, हमें दक्षिण कोरिया की ‘पल्ली-पल्ली’ (हिंदी में जल्दी-जल्दी) संस्कृति से सीखना होगा। आवश्यकतापरक रोजगार और आवश्यकतापरक उद्यमिता के लिए हमें भारत में आवश्यकतापरक शिक्षा के साथ ‘स्ट्रीट स्मार्ट’ (सरल, नैतिक, क्रिया-उन्मुख, उत्तरदायी और पारदर्शी) बनने की आवश्यकता है। हमें वास्तविक शिक्षा की आवश्यकता है जो हाथों, मस्तिष्क और हृदय (3एच) के उचित, उत्पादक और व्यावहारिक (3पी) उपयोग सिखाए। इसके लिए निश्चित रूप से नवीन समाधानों की आवश्यकता होगी।
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