प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिक्षक दिवस के अवसर पर सोमवार को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने वाले शिक्षकों से बात की। उन्होंने एक महत्वपूर्ण घोषणा भी की। प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर जानकारी दी कि देशभर के 14500 स्कूलों को प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया यानी (PM SHRI) योजना के तहत अपग्रेड किया जाएगा। ये मॉडल स्कूल होंगे जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति की पूरी भावना को समाहित किए होंगे।
शिक्षकों से बातचीत के मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि देश आज भारत के पूर्व राष्ट्रपति और शिक्षाविद् डॉक्टर राधाकृष्णन जी को उनके जन्म दिवस पर आदरांजलि दे रहा है और ये हमारा सौभाग्य है कि हमारे वर्तमान राष्ट्रपति भी टीचर हैं। जीवन के प्रारंभिक काल में उन्होंने शिक्षक के रूप में काम किया और वो भी दूर-सुदूर ओडिशा के आंतरिक इलाके में। हमारे लिए सुखद संयोग है और ऐसे टीचर राष्ट्रपति के हाथ से आपका सम्मान हुआ है तो ये और आपके लिए गर्व की बात है।
शिक्षक का सबसे बड़ा बल होता है उसका सकारात्मक होना
प्रधानमंत्री ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद करते हुए कहा कि आज जब देश आज़ादी के अमृतकाल के अपने विराट सपनों को साकार करने में जुट चुका है, तब शिक्षा के क्षेत्र में राधाकृष्णन जी के प्रयास हम सभी को प्रेरित करते हैं। अभी मुझे अनेक शिक्षकों से बातचीत करने का मौका मिला। सब अलग-अलग भाषा बोलने वाले हैं, अलग-अलग प्रयोग करने वाले लोग हैं। भाषा अलग होगी, क्षेत्र अलग होगा, समस्याएं अलग होंगी, लेकिन ये भी है कि इनके बीच में आप कितने ही क्यों न हों, आप सबके बीच में एक समानता है और वो है आपका कर्म, आपका विद्यार्थियों के प्रति समर्पण, और ये समानता आपके अंदर जो सबसे बड़ी बात होती है और आपने देखा होगा जो सफल टीचर रहा होगा वो कभी भी बच्चे को ये नहीं कहता कि चल ये तेरे बस का रोग नहीं है, नहीं कहता है। टीचर की सबसे बड़ी जो स्ट्रेंथ होती है, वो पॉजिटिविटी होती है, सकारात्मकता। कितना ही बच्चा पढ़ने में-लिखने में पूरा हो…अरे करो बेटे हो जाएगा। अरे देखो उसने किया है तुम भी करो, हो जाएगा।
यानी आप देखिए उसको पता भी नहीं है, लेकिन टीचर के गुणों में होता है। वो हर बार पॉजिटिव ही बोलेगा, वो कभी किसी को नेगेटिव कमेंट करके निराश कर देना, हताश करना तो उसके नेचर में नहीं है। और एक टीचर की भूमिका ही है जो व्यक्ति को रोशनी दिखाने का काम करती है। वो सपने बोती है, टीचर जो है ना वो हर बच्चे के अंदर सपने बोता है़ और उसको संकल्प में परिवर्तित करने की ट्रेनिंग देता है कि देख ये सपना पूरा हो सकता है, तुम एक बार संकल्प लो, लग जाओ। आपने देखा होगा कि वो बच्चा सपनों को संकल्प में परिवर्तित कर देता है और टीचर ने जो रास्ता दिखाया है, उसे वो सिद्ध करके रहता है। यानी सपने से सिद्धि तक की ये पूरी यात्रा उसी प्रकाश पुंज के साथ होती है, जो किसी टीचर ने उसकी जिंदगी में सपना बोया था, दीया जलाया था। जो उसको कितनी ही चुनौतियों और अंधेरों के बीच में भी रास्ता दिखाता है।
और अब देश भी आज नए सपने, नए संकल्प ले करके एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है कि आज जो पीढ़ी है, जो विद्यार्थी अवस्था में है, 2047 में हिन्दुस्तान कैसा बनेगा, ये उन्हीं पर तय होने वाला है। और उनका जीवन आपके हाथ में है। इसका मतलब हुआ कि 2047 को देश गढ़ने का काम आज जो वर्तमान में टीचर हैं, जो आने वाले 10 साल, 20 साल सेवाएं देने वाले हैं, उनके हाथ में 2047 का भविष्य तय होने वाला है।
और इसीलिए आप एक स्कूल में नौकरी करते हैं, ऐसा नहीं है, आप एक क्लासरूम में बच्चों को पढ़ाते हैं, ऐसा नहीं है, आप एक सिलेबस को अटेंड करते हैं, ऐसा नहीं है। आप उसके साथ जुड़ करके, उसकी जिंदगी बनाने का काम और उसकी जिंदगी के माध्यम से देश बनाने का सपना ले करके चलते हैं। जो टीचर का सपना खुद का ही छोटा होता है, उसके दिमाग में 10 से 5 का ही भरा रहता है, आज चार पीरियड लेने हैं, वही रहता है। तो वो, उसके लिए वो भले तनख्वाह लेता है, एक तारीख का वो इंतजार करता है, लेकिन उसको आनंद नहीं आता है, उसको वो चीजें बोझ लगती हैं। लेकिन जब उसके सपनों से वो जुड़ जाता है, तब ये कोई चीज उसको बोझ नहीं लगती है। उसको लगता है कि अरे! मेरे इस काम से तो मैं देश का इतना बड़ा योगदान करूंगा। अगर मैं खेल के मैदान में एक खिलाड़ी तैयार करूं और मैं सपना संजोऊं कि कभी न कभी मैं उसको दुनिया में कहीं न कहीं तिरंगे झंडे के सामने खड़ा हुआ देखना चाहता हूं। आप कल्पना कर सकते हैं, आपको उस काम का आनंद कितना आएगा। आपको रात-रात जागने का कितना आनंद आएगा।
और इसलिए टीचर के मन में सिर्फ वो क्लासरूम, वो अपना पीरियड, चार लेने हैं, पांच लेने हैं, वो आज आया नहीं तो उसके बदले में भी मुझे जाना पड़ रहा है, ये सारे बोझ से मुक्त हो करके। मैं आपकी कठिनाइयां जानता हूं, इसलिए बोल रहा हूं। उस बोझ से मुक्त हो करके अगर हम इन बच्चों के साथ, उनकी जिंदगी के साथ जुड़ जाते हैं।
हमें बच्चे का जीवन बनाना है
अंततोगत्वा हमें बच्चे को पढ़ाना तो है ही है, ज्ञान तो देना है, लेकिन हमें उसका जीवन बनाना है। देखिए, आइसोलेशन में, साइलोज में जीवन नहीं बनते। क्लासरूम में वो एक देख लें, स्कूल परिसर में कुछ और देखें, घर परिवेश में कुछ और देखें तो बच्चा विरोधाभास में फंस जाता है। उसको लगता है, मां तो ये कह रही थी और टीचर तो ये कह रहे थे और क्लास में बाकी जो लोग थे, वो तो ऐसा बोल रहे थे। उस बच्चे को दुविधा की जिंदगी से बाहर निकालना ही हमारा काम है। लेकिन उसका कोई इंजेक्शन नहीं होता है कि चलो आज ये इंजेक्शन ले लो, तुम दुविधा से बाहर। टीका लगा दो, दुविधा से बाहर, ऐसा तो नहीं है। और इसके लिए टीचर के लिए बहुत जरूरी है कि कोई एकीकृत दृष्टिकोण हो उसका।
घर के लोगों के अंदर भी सपना बोते हैं
कितने टीचर हैं, जो स्टूडेंट्स के परिवार को जानते हैं, कभी परिवार को मिले हैं, कभी उनसे पूछा है कि घर आकर क्या करता है, कैसा करता है, आपको क्या लगता है। और कभी ये बताया कि देखिए भाई, मेरी क्लास में आपका बच्चा आता है, इसमें ये बहुत बढ़िया ताकत है। आप थोड़ा इसको घर में भी जरा देखिए, बहुत आगे निकल जाएगा। मैं तो हूं ही हूं, टीचर के नाते मैं कोई कमी नहीं रखूंगा, लेकिन आप थोड़ी मेरी मदद कीजिए। तो उन घर के लोगों के अंदर भी एक सपना बो करके आप आ जाते हैं और वो आपके सहयात्री बन जाते हैं। फिर घर भी अपने-आप में पाठशाला संस्कार की बन जाती है। जो सपने आप क्लासरूम में बोते हैं, वो सपने उस घर के अंदर फुलवारी बन करके पुलकित होने की शुरूआत कर देते हैं। और इसलिए क्या हमारी कोशिश है क्या, और आपने देखा होगा एकाध स्टूडेंट आपको बड़ा ही परेशान करने वाला दिखता है, ये ऐसा ही है, समय खराब कर देता है, क्लास में आते ही पहली नजर वहीं जाती है तो आधा दिमाग वहीं खराब हो जाता है। मैं आपके भीतर से बोल रहा हूं। और वो भी वैसा होता है कि पहली बेंच पर ही बैठेगा, उसको भी लगता है कि ये टीचर मुझे पसंद नहीं करते हैं तो पहले सामने आएगा वो। और आपका आधा समय वो ही खा जाता है।
ऐसे में उन बाकी बच्चों पर अन्याय हो जाए, कारण क्या है, मेरी पसंद-नापसंद। सफल टीचर वो होता है, जिसकी बच्चों के संबंध में, स्टूडेंट्स के संबंध में न कोई पसंद होती है, न कोई नापसंद होती है। उसके लिए वो सबके सब बराबर होते हैं। मैंने ऐसे टीचर देखे हैं, जिनकी अपनी संतान भी उसी क्लासरूम में है। लेकिन वे टीचर क्लासरूम में खुद की संतान को भी वही ट्रीटमेंट देते हैं, जो सब स्टूडेंट्स को देते हैं।
घर वाला रिश्ता यहां आना चाहिए
अगर चार लोगों को पूछना है, उसकी बारी आई तो उसको पूछते हैं, विशेष रूप से उसको कभी नहीं कहते कि तुम ये बताओ, तुम ये करो, कभी नहीं। क्योंकि उनको मालूम है कि उसको एक अच्छी मां की जरूरत है, एक अच्छे पिता की जरूरत है, लेकिन अच्छे टीचर की भी जरूरत है। तो वो भी कोशिश करते हैं कि घर में मैं मां-बाप का रोल पूरा करूंगा, लेकिन क्लास में तो मुसझे उसको टीचर-स्टूडेंट का ही मेरा नाता रहना चाहिए, वो घर वाला रिश्ता यहां आना नहीं चाहिए।
ये शिक्षक का बहुत बड़ा त्याग होता है, तब संभव होता है जी। ये अपने-आपको संभाल करके इस प्रकार से काम करना, ये तब संभव होता है। और इसलिए हमारी जो शिक्षा व्यवस्था है, भारत की जो परंपरा रही है वो किताबों तक सीमित कभी नहीं रही है, कभी नहीं रही है। वो तो एक प्रकार से एक सहारा है हमारे लिए। हम बहुत सी चीजों और आज टेक्नोलॉजी के कारण ये बहुत संभव हुआ है। और मैं देख रहा हूं कि टेक्नोलॉजी के कारण बहुत बड़ी मात्रा में हमारे गांव के टीचर भी जो स्वयं टेक्नोलॉजी में उनकी पढ़ाई नहीं हुई है, लेकिन करते-करते वो सीख गए। और उन्होंने भी सोचा कि भई, क्योंकि उसके दिमाग में स्टूडेंट भरा पड़ा है, उसके दिमाग में सिलेबस भरा पड़ा है, तो वो चीजें, प्रॉडक्ट तैयार करता है जो उस बच्चे के काम आती हैं।
शिक्षक के दिमाग में विद्यार्थियों का जीवन रहता है
यहां सरकार में बैठे हुए लोगों के दिमाग में क्या रहता है, आंकड़े रहते हैं कि भई कितने शिक्षक भर्ती करना बाकी है, कितने छात्रों का ड्रॉप आउट हो गया, बच्चियों का एनरोलमेंट हुआ कि नहीं हुआ, उनके दिमाग में वो रहता है, लेकिन टीचर के दिमाग में उसकी जिंदगी रहती है, बहुत बड़ा फर्क होता है। और इसलिए अगर टीचर इन सारी जिम्मेदारियों को ढंग से उठा लेता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने में शिक्षकों की बड़ी भूमिका
अब हमारी जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है, इसकी इतनी तारीफ हो रही है, इतनी तारीफ हो रही है, क्यों हो रही है, उसमें कुछ कमियां नहीं होंगी, ऐसा तो मैं दावा नहीं कर सकता हूं, कोई नहीं दावा कर सकता है। लेकिन जो लोगों के मन में पड़ा था, उनको लगा यार, ये कुछ रास्ता दिख रहा है, ये कुछ सही दिशा में जा रहे हैं। चलिए, इस रास्ते पर हम चलते हैं। हमें पुरानी आदतें इतनी घर कर गई हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को एक बार पढ़ने-सुनने से बात बनने वाली नहीं है जी। महात्मा गांधी जी को कभी एक बार किसी ने पूछा था कि भई आपको कुछ मन में संशय हो, समस्याएं हों तो क्या करते हैं। तो उन्होंने कहा, मुझे भागवत गीता से बहुत कुछ मिल जाता है। इसका मतलब वो बार-बार उसको पढ़ते हैं, बार-बार उसके अर्थ बदलते हैं, बार-बार नए अर्थ दिखते हैं, बार-बार नया प्रकाशवान पुंज सामने खड़ा हो जाता है।
ये राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी, जब तक शिक्षा जगत के लोग उससे हर समस्या का समाधान उसमें है क्या, दस बार पढ़ें, 12 बार पढ़ें, 15 बार पढ़ें, सॉल्यूशन इसमें है क्या। उसको उस रूप में हम देखेंगे। एक बार आया है, चलो सर्कुलर आता है, वैसे देख लिया तो नहीं होगा। उसको हमें हमारी रगों में उतारना पड़ेगा, हमारे जेहन में उतारना पड़ेगा। अगर ये प्रयास होता है तो मुझे पक्का विश्वास है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने में हमारे देश के शिक्षकों का बहुत बड़ा रोल रहा है। लाखों की तादाद में शिक्षकों ने योगदान दिया है, इसको बनाने में।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चा करें बच्चे
पहली बार देश में इतना बड़ा मंथन हुआ है। जिन शिक्षकों ने इसे बनाया है, उनका काम है कि सरकारी भाषा वगैरह बच्चों के लिए काम नहीं आती है, आपको माध्यम होना होगा कि ये जो सरकारी डॉक्यूमेंट हैं, वो उनके जीवन का आधार कैसे बनें। मुझे उसको अनुवाद करना है, मुझे उसको फुलस्टॉप, कॉमा के साथ पकड़ते हुए भी उसको सहज, सरल रूप में उसको समझाना है। और मैं मानता हूं कि जैसे कुछ नाट्य प्रयोग होते हैं, कुछ आशु लेखन होता है, कुछ व्यक्तित्व स्पर्धाएं होती हैं, बच्चों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर चर्चाएं करनी चाहिए। क्योंकिं टीचर उनको तैयार करेगा, जब वो बोलेंगे तो एकाध चीज नई भी उभर करके आएगी। तो ये एक प्रयास करना चाहिए।
पंच प्रण की क्लासरूम में हो चर्चा
15 अगस्त को आजादी के 75 साल का मेरा भाषण था, उसका एक अपना अलग मेरा मिजाज भी था। मैंने 2047 को ध्यान में रख करके बातें कीं। और उसमें मैंने आग्रह किया कि पंच प्रण की चर्चा की। क्या उन पंच प्रण, हमारे क्लासरूम में इसकी चर्चा हो सकती है क्या। असेम्बली जब होती हैं, चलिए भई आज कोई विद्यार्थी और कोई टीचर पहले प्रण पर बोलेंगे, मंगल को दूसरे प्रण पर, बुधवार को तीसरे प्रण पर, शुक्रवार को पांचवें प्रण पर और फिर अगले सप्ताह फिर पहले प्रण पर ये शिक्षक-ये शिक्षक। यानी सालभर, उसका अर्थ क्या है, हमें क्या करना है, ये पंच प्रण हमारे, हमारा भी तो प्रण तत्व होना चाहिए, हर नागरिक का होना चाहिए। इस प्रकार से अगर हम कर सकते हैं तो मैं समझता हूं उसकी सराहना हो रही है, सब लोग कह रहे हैं हां भई, ये पांच प्रण ऐसे हैं कि हमारे आगे जाने का रास्ता बना देते हैं। तो ये पांच प्रण उन बच्चों तक कैसे पहुंचें, उनके जीवन में कैसे आएं, इसको जोड़ने का काम कैसे करें।
हर बच्चा देखे 2047 का सपना
हिन्दुस्तान में अब कोई स्कूल में बच्चा ऐसा नहीं होना चाहिए, जिसके दिमाग में 2047 का सपना न हो। उसको कहना चाहिए, बताओ भई तुम, 2047 में तुम्हारी उम्र क्या होगी, उसको पूछना चाहिए। हिसाब लगाओ, तुम्हारे पास इतने साल हैं, तुम बताओ इतने सालों में तुम तुम्हारे लिए क्या करोगे और देश के लिए क्या करोगे। हिसाब लगाओ, 2047 के पहले तुम्हारे पास कितने साल हैं, कितने महीने हैं, कितने दिन हैं, कितने घंटे हैं, तुम एक-एक घंटे को जोड़ करके बताओ, तुम क्या करोगे। तुरंत इसका एक पूरा कैनवास तैयार हो जाएगा कि हां, आज एक घंटा चला गया, मेरा 2047 तो पास आ गया। आज दो घंटे चले गए, मेरा 2047 पास आ गया। मुझे 2047 में ऐसे जाना है, ऐसे करना है। अगर ये भाव हम बच्चों के मन-मंदिर में भर देते हैं, एक नई ऊर्जा के साथ, एक नई उमंग के साथ, तो बच्चे लग जाएंगे इसके पीछे। और दुनिया में, प्रगति उन्हीं की होती है जो बड़े सपने देखते हैं, बड़े संकल्प लेते हैं और दूर की सोच करके जीवन को खपा देने के लिए तैयार रहते हैं।
आजादी जैसा भाव पैदा करना होगा
हिन्दुस्तान में 1947 के पहले एक प्रकार से दांडी यात्रा-1930 और 1942, अंग्रेजो भारत छोड़ो, ये जो 12 साल…आप देखिए, पूरा हिन्दुस्तान उछल पड़ा था, सिवाय आजादी कोई मंत्र नहीं था। जीवन के हर काम में आजादी, स्वतंत्रता, ऐसा एक मिजाज बन गया था। वैसा ही मिजाज, सुराज, राष्ट्र का गौरव, मेरा देश मुझे यहां पर, ये समय है हमें ये पैदा करने का।
और मेरा भरोसा हमारे शिक्षक बंधुओं पर ज्यादा है, शिक्षा जगत पर ज्यादा है। अगर आप इस प्रयास में जुट जाएं, मुझे पक्का विश्वास है हम उन सपनों को पार कर सकते हैं और आवाज गांव-गांव से उठने वाली है जी। अब देश रुकना नहीं चाहता है। अब देखिए दो दिन पहले- 250 साल तक जो हम पर राज करके गए थे, 250 साल तक उनको पीछे छोड़ करके हम दुनिया की इकोनॉमी में आगे निकल गए। 6 नंबर से 5 नंबर पर आने का जो आनंद होता है, उससे ज्यादा आनंद इसमें हुआ, क्यों। 6 से 5 होते तो होता थोड़ा आनंद, लेकिन ये 5 स्पेशल है। क्योंकि हमने उनको पीछे छोड़ा है, हमारे दिमाग में वो भाव भरा है, वो तिरंगे वाला, 15 अगस्त का।
ये मिजाज बहुत जरूरी है
15 अगस्त के तिरंगे का जो आंदोलन था, उसके प्रकाश में ये 5वां नंबर आया है और इसलिए उसके अंदर वो जिद भर गई है कि देखा, मेरा तिरंगा और फहरा रहा है। ये मिजाज बहुत आवश्यक है और इसलिए 1930 से 1942 तक देश का जो मूड था, देश के लिए जीने का, देश के लिए जूझने का, और जरूरत पड़ी तो देश के लिए मरने का, आज वो मिजाज चाहिए। मैं मेरे देश को पीछे नहीं रहने दूंगा। हजारों साल की गुलामी से बाहर निकले हैं, अब मौका है, हम रुकेंगे नहीं, हम चल पड़ेंगे। ये मिजाज पहुंचाने का काम, सभी हमारे शिक्षक वर्ग के द्वारा हो तो ताकत अनेक गुना बढ़ जाएगी, अनेक गुना बढ़ जाएगी। प्रधानमंत्री ने शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं फिर एक बार, आप इतना काम कर-करके अवार्ड प्राप्त किए हैं, इसलिए मैं ज्यादा काम दे रहा हूं। जो काम करता है, उसी को काम देने का मन करता है, जो नहीं करता है, उसको कौन देता है। और शिक्षक का मेरा भरोसा रहा है कि वो जिम्मा लेता है तो पूरा करता है। तो इसलिए मैं आप लोगों को कहता हूं।
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