भारत का पहला स्वदेशी और अब तक का सबसे बड़ा अत्याधुनिक स्वचालित यंत्रों से युक्त एयरक्राफ्ट कैरियर ‘आईएनएस विक्रांत’ प्रधानमंत्री द्वारा जलावतरण किए जाने के बाद भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल हो गया है और इस विमानवाहक युद्धपोत के निर्माण के साथ ही अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और इंग्लैंड के बाद भारत विश्व का छठा ऐसा देश बन गया है, जो 40 हजार टन का भारी-भरकम और विशालकाय एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की क्षमता रखता है। वैसे तो भारत के पास पहले भी एयरक्राफ्ट कैरियर रहे हैं लेकिन वे ब्रिटिश या रूसी ही थे। देश के इतिहास में यह पहली बार है, जब भारत तमाम अत्याधुनिक तकनीकों, स्वचालित यंत्रों और सुविधाओं से सम्पन्न अपना खुद का विमानवाहक पोत बनाने में सफल हुआ है। भारत ने दो विमानवाहक पोत ‘एचएमएस हरक्यूलीस’ (आईएनएस विक्रांत-1) तथा ‘एचएमएस हर्मीस’ (आईएनएस विराट) ब्रिटेन से खरीदे थे जबकि रूस से सोवियत काल का युद्धपोत ‘एडमिरल गोर्शकोव’ (आईएनएस विक्रमादित्य) खरीदा था, जो अभी भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े का हिस्सा है।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक भारत द्वारा अब स्वयं का एयरक्राफ्ट कैरियर बनाना नौसैनिक क्षेत्र में उसकी क्षमताओं को स्पष्ट परिलक्षित करता है। हालांकि आईएनएस विक्रांत के लिए कुछ कलपुर्जे विदेशों से भी मंगाए गए लेकिन नौसेना के मुताबिक इसका करीब 76 फीसदी हिस्सा देश में मौजूद संसाधनों से ही निर्मित हुआ है और यह भारत में बना सबसे बड़ा युद्धपोत है। कम्युनिकेशन सिस्टम, नेटवर्क सिस्टम, शिप डाटा नेटवर्क, गन्स, कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम इसमें ये सब स्वदेशी ही हैं।
आदर्श वाक्य ‘जयेम सम युधि स्पृधा’ ऋग्वेद से लिया गया
भारतीय नौसेना के संगठन ‘युद्धपोत डिजाइन ब्यूरो’ (डब्ल्यूडीबी) द्वारा डिजाइन किए गए और बंदरगाह, जहाजरानी एवं जलमार्ग मंत्रालय के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्ड ‘कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड’ द्वारा निर्मित आईएनएस विक्रांत युद्धपोत के निर्माण में इस्तेमाल 23 हजार टन स्पेशल वारशिप ग्रेड स्टील, 2500 किलोमीटर इलेक्ट्रिक केबल, 150 किलोमीटर के बराबर पाइप, 2000 वाल्व, एयरक्राफ्ट कैरियर में शामिल हल बोट्स, एयर कंडीशनिंग से लेकर रेफ्रिजरेशन प्लांट्स और स्टेयरिंग से जुड़े कलपुर्जे देश में ही बने हैं। भारतीय नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) की मदद से युद्धपोत स्तर का स्टील ‘सेल’ (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया) द्वारा तैयार किया गया। 13 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद करीब 20 हजार करोड़ रुपये की लागत से निर्मित इस युद्धपोत के निर्माण के दौरान प्रतिदिन दो हजार लोगों को सीधे तौर पर जबकि 40 हजार अन्य को परोक्ष रूप से रोजगार मिला। भारत इलैक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स लिमिटेड, किर्लाेस्कर, एलएंडटी, केल्ट्रॉन, जीआरएसई, वार्टसिला इंडिया तथा कई अन्य बड़े औद्योगिक निर्माता इस एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण कार्य से जुड़े रहे और सौ से भी ज्यादा मध्यम और लघु उद्योगों ने भी इस पोत पर लगे स्वदेशी उपकरणों तथा मशीनरी के निर्माण में मदद की। आईएनएस विक्रांत का आदर्श वाक्य ‘जयेम सम युधि स्पृधा’ ऋग्वेद से लिया गया है, जिसका अर्थ है, यदि कोई मुझसे लड़ने आया तो मैं उसे परास्त करके रहूंगा।
इसलिए विक्रांत नाम रखा
विक्रांत का अर्थ है विजयी एवं वीर और भारत में बने पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत का नाम ‘आईएनएस विक्रांत’ ही इसीलिए रखा गया है क्योंकि इससे पहले ब्रिटेन से खरीदे गए भारत के पहले विमानवाहक पोत ‘एचएमएस हरक्यूलीस’ का नाम ‘आईएनएस विक्रांत’ ही रखा गया था, जिसने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर विजय में अहम भूमिका के अलावा 1997 में सेवा से बाहर किए जाने से पहले विभिन्न अवसरों पर पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय नौसेना को मजबूत रखने में अहम भूमिका निभाई थी। उसी के प्रति प्यार और गौरव की भावना प्रदर्शित करने के लिए स्वदेशी विमानवाहक पोत का नाम ‘आईएनएस विक्रांत’ रखा गया है। आईएनएस विक्रांत की अधिकतम गति 28 नॉट्स (51 किलोमीटर प्रतिघंटा) तक है, जो समुद्र में उसकी असली ताकत है जबकि इसकी सामान्य गति 18 नॉट्स यानी करीब 33 किलोमीटर प्रतिघंटा है। एक बार में यह युद्धपोत 7500 नॉटिकल मील यानी 13 हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूरी तय कर सकता है अर्थात् एक बार में भारत से निकलकर यह ब्राजील तक पहुंच सकता है और इस पर तैनात फाइटर जेट्स भी एक से दो हजार मील की दूरी तय कर सकते हैं। यह युद्धपोत एक बार में 30 एयरक्राफ्ट को ले जा सकता है, जिनमें मिग-29के फाइटर जेट्स के अलावा कामोव-31 अर्ली वॉर्निंग हेलीकॉप्टर, एमएच-60आर सीहॉक मल्टीरोल हेलीकॉप्टर तथा एचएएल द्वारा निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं। नौसेना के लिए भारत में ही निर्मित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ‘एलसीए तेजस’ भी इस विमानवाहक युद्धपोत से आसानी से उड़ान भर सकते हैं। आईएनएस विक्रांत की विमानों को ले जाने की क्षमता और इसमें लगे अत्याधुनिक और खतरनाक हथियार इसे दुनिया के कुछ खतरनाक पोतों में शामिल करते हैं। यही कारण है कि आईएनएस विक्रांत को भारतीय सेना की शान और नए भारत का अभिमान माना जा रहा है।
ये है खासियत
विमानवाहक युद्धपोत समुद्र में एक चलते-फिरते किले अथवा तैरते हुए हवाई क्षेत्र (फ्लोटिंग एयरफील्ड) के तौर पर कार्य करता है और किसी भी विमानवाहक युद्धपोत की असली ताकत उस पर तैनात किए जाने वाले लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर ही होते हैं, जो सैकड़ों किलोमीटर दूर तक समुद्र की निगरानी तथा सुरक्षा करते हैं। उस पर तैनात खतरनाक एयरक्राफ्ट के कारण ही दुश्मन के किसी भी युद्धपोत या पनडुब्बी में उसके आसपास फटकने की हिम्मत नहीं होती। विमानवाहक पोत एक प्रकार से उस पर तैनात तमाम लड़ाकू जहाजों और विध्वंसक पोतों के लिए छतरी की भांति काम करते हैं ताकि ये लड़ाकू विमान अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकें। आईएनएस विक्रांत पर 20 लड़ाकू विमान होंगे और 10 हेलीकॉप्टर तैनात किए जाएंगे। फिलहाल नवम्बर माह से इस पर मिग-29के फाइटर जेट तैनात होने शुरू हो जाएंगे और उसके बाद डीआरडीओ तथा एचएएल द्वारा तैयार किए जा रहे टीईडीबीएफ (टूइन इंजन डेक बेस्ड फाइटर जेट) की तैनाती होगी, जिसे तैयार होने में अभी कुछ साल लग सकते हैं। राफेल या अमेरिका के एफ-18ए सुपर होरनेट की भी आईएनएस विक्रांत पर तैनाती हो सकती है, जिनके ट्रायल शुरू हो चुके हैं और ट्रायल के बाद ही यह सुनिश्चित होगा कि इनमें से कौनसा लड़ाकू विमान आईएनएस विक्रांत पर तैनात किया जाएगा। विदेश में बने बोइंग और लॉकहीड मार्टिन के एयरक्राफ्ट्स की लैंडिंग और टेकऑफ को लेकर भी विक्रांत पर परीक्षण किए जाएंगे। दुश्मन की पनडुब्बियों पर खास नजर रखने के लिए विक्रांत पर छह एंटी-सबमरीन हेलीकॉप्टर तैनात होंगे। तैनात किए जाने वाले कुल 30 एयरक्राफ्ट्स में से 10 एक समय में फ्लाईट-डेक पर होंगे और शेष 20 एयरक्राफ्ट्स विक्रांत के अंदर बने एक बड़े से हैंगर में होंगे। फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टरों को इस हैंगर से फ्लाईट-डेक तक लाने के लिए दो विशालनुमा लिफ्ट बनाई गई हैं। विक्रांत पर 32 मीडियम रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल (एमआरएसएएम) तथा एके630 गन (तोप) भी तैनात होंगी।
इसमें वैज्ञानिक प्रयोगशाला भी
कोचिन शिपयार्ड में बने करीब 40 हजार टन वजनी, 262 मीटर लंबे, 62 मीटर चौड़े, 59 मीटर ऊंचे, 62 मीटर की बीम वाले आईएनएस विक्रांत युद्धपोत में 14 डेक तथा 1700 से ज्यादा क्रू को रखने के लिए 2300 कंपार्टमेंट्स हैं। इसमें वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं से लेकर आईसीयू सहित चिकित्सा से जुड़ी सभी आवश्यक सेवाएं उपलब्ध हैं। आसपास आने वाले किसी भी खतरे से निपटने में सक्षम बनाने के लिए इसमें एंटी सबमरीन वॉरफेयर से लेकर एंटी सर्फेस, एंटी एयर वॉरफेयर तथा अत्याधुनिक वार्निंग सिस्टम लगा है। फ्लाई-डेक (रनवे) किसी भी एयरक्राफ्ट कैरियर की महत्वपूर्ण ताकत होता है और आईएनएस विक्रांत का फ्लाई-डेक दो फुटबॉल मैदानों से भी बड़ा करीब 262 मीटर लंबा है, जिस पर ओलंपिक के 10 स्विमिंग-पूल बनाए जा सकते हैं। इस फ्लाई-डेक को स्कीइंग तकनीक पर तैयार किया गया है, जिसे ‘शॉर्ट टेकऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी’ (स्टोबार) भी कहा जाता है अर्थात् छोटे रनवे से स्कीइंग के जरिए टेकऑफ। इस पर अरेस्टेड रिकवरी तकनीक से फाइटर जेट्स को लैंड कराया जाएगा।
ऊंचाई 15 मंजिला इमारत के बराबर
आईएनएस विक्रांत की प्रमुख विशेषताओं पर नजर डालें तो करीब 53 एकड़ में फैले इस विशालकाय विमानवाहक युद्धपोत की ऊंचाई 15 मंजिला इमारत के बराबर है। इस स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर में इतनी सारी इलैक्ट्रिक केबिल लगी हैं कि यदि इसमें लगी केबिल को सड़क पर बिछाया जाए तो वह कोच्चि से दिल्ली तक पहुंच सकती है। इसमें 150 किलोमीटर लंबे पाइप और 2000 वॉल्व लगे हैं। आईएनएस विक्रांत के कुल तीन रसोईघरों में एक दिन में 4800 लोगों का खाना तैयार किया जा सकता है और एक दिन में 10 हजार तक रोटियां सेंकी जा सकती हैं। युद्धपोत पर कम से कम तीन महीने का दवाईयों और सर्जरी में उपयोग आने वाले उपकरणों का स्टॉक सदैव उपलब्ध रहेगा। विक्रांत में नवीनतम चिकित्सा उपकरण सुविधाओं से लैस एक पूर्ण अत्याधुनिक चिकित्सा परिसर है, जिसमें प्रमुख मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर, आपातकालीन मॉड्यूलर ओटी, फिजियोथेरेपी क्लीनिक, आईसीयू, प्रयोगशालाएं, सीटी स्कैनर, एक्स-रे मशीन, दंत चिकित्सा परिसर, आइसोलेशन वार्ड और टेलीमेडिसिन जैसी तमाम सुविधाएं शामिल हैं।
पड़ेगा ये असर
स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत के नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल हो जाने के बाद भारत की नौसैनिक क्षमताओं में फर्क आने के बारे में नौसेना का कहना है कि इससे इंडो-पैसेफिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने में बड़ी मदद मिलेगी। हाल ही में भारत के ‘आईएनएस विराट’ के रिटायर हो जाने के बाद भारत को आईएनएस विक्रांत जैसे अत्याधुनिक विमानवाहक पोत की सख्त जरूरत थी। दरअसल भारत की करीब सात हजार किलोमीटर लंबी समुद्री सीमाएं एक ओर पूर्व में बंगाल की खाड़ी से और दूसरी तरफ पश्चिम में अरब सागर से सटी है, इसलिए भारत को दो अलग-अलग मोर्चों पर दो विमानवाहक युद्धपोतों की जरूरत है। हिन्द महासागर में भी भारत का करीब 23 लाख वर्ग मील का स्पेशल इकोनोमिक जोन है, उसकी सुरक्षा करने के लिए भी भारत को कम से कम दो एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है और नौसेना के जंगी बेड़े में आईएनएस विक्रांत के शामिल हो जाने के भारत के पास अब दो एयरक्राफ्ट कैरियर हो गए हैं। इससे पहले भारत ने रूस की नौसेना का हिस्सा रहे आईएनएस विक्रमादित्य एयरक्राफ्ट कैरियर को रूस से खरीदा था।
दुश्मनों पर लगेगी लगाम
हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन के युद्धपोतों और पनडुब्बियों की बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर दुश्मनों की गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए भी भारत को आईएनएस विक्रांत जैसे स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर की सख्त जरूरत थी। चीन ने दिबूती में एक नेवल आउटपोस्ट बना ली है और पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट के विकास पर भी वह काफी खर्च कर रहा है। भारतीय नौसेना के वाइस चीफ एडमिरल एस एन घोरमडे के अनुसार आईएनएस विक्रांत हिन्द प्रशांत और हिन्द महासागर क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान देगा। उनके मुताबिक आईएनएस विक्रांत पर विमान उतारने का परीक्षण नवंबर में शुरू होगा, जो 2023 के मध्य तक पूरा हो जाएगा। बहरहाल, स्वदेशी आईएनएस विक्रांत का नौसेना के जंगी बेड़े का अभिन्न अंग बनना रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है। फिलहाल देश के अलग-अलग शिपयार्ड में 39 वॉरशिप बन रहे हैं और जल्द ही 43 शिप तथा सबमरीन पर भी कार्य शुरू होना है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामरिक मामलों के विश्लेषक हैं)
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