रामप्रकाश बाठला
लायलपुर, पाकिस्तान
हमने बंटवारे के समय यह सोचा भी नहीं था कि अपने खेत-खलिहानों को छोड़कर जाना होगा और ऐसे शिविरों में रहना पड़ेगा। धीरे-धीरे माहौल बदलता गया। आसपास के गांवों के लोग गांव छोड़कर जाने लगे। एक दिन हमारे गांव के कुछ लोग आठ बसों में सवार होकर निकले।
रास्ते में उन सबको मार दिया गया। हमने अगले दिन काफिले के साथ पैदल चलने का फैसला किया। उस भयानक दौर में कट्टर मुसलमानों के भय से हम गांव के सभी लोग एक काफिला बनाकर हिंदुस्थान की ओर चल पड़े। करीब दस मील लंबा होगा हमारा काफिला।
हमारे काफिले पर भी कई स्थानों पर मुसलमानों ने आक्रमण किए, लेकिन काफिले के लोग उनका कड़ा मुकाबला करते थे। हम सुरक्षित अमृतसर पहुंच गए, लेकिन रास्ते में जो भयंकर मंजर देखे, वे शब्दों में बताए नहीं जा सकते। लाशों के अंबार लगे थे। जमकर मार-काट हुई थी।
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