कहा जाता है कि कभी कभी किसी की चुप्पी, कुछ बोलने से ज्यादा खतरनाक हो जाती है। झारखंड में इन दिनों यही देखने को मिल रहा है । एक तरफ पूरे प्रदेश में यह कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता कभी भी रद्द हो सकती है और सरकार भी खतरे में है। इसे लेकर चुनाव आयोग से लेकर राजभवन तक की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। अब जहां राजभवन की ओर से निर्णय सुनाने का समय आया तो राजभवन ने इसके लिए कुछ समय मांगा है। इसका मतलब यह हुआ कि राजभवन ने चुप्पी साधी हुई है और यह चुप्पी सत्ताधारी दलों के लिए कष्ट का कारण बन रही है।
मामला यह है कि राजभवन की ओर से गलत तरीके से खनन पट्टा अपने नाम आवंटित करने और ‘लाभ के पद’ मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री की सदस्यता को लेकर सुनवाई होना है। इसमें उम्मीद जताई जा रही है कि हेमंत सोरेन की सदस्यता कभी भी रद्द हो सकती है, लेकिन राजभवन की चुप्पी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और गठबंधन के कुछ नेताओं की बेचैनी बढ़ा रखी है। बेचैनी का कारण यह माना जा रहा है कि सत्ता पक्ष के लिए अपने विधायकों को एकजुट करना काफी मुश्किल साबित हो रहा है। इसे लेकर 28 अगस्त को मुख्यमंत्री आवास में हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में सत्ता पक्ष के मंत्री और विधायक दल की बैठक हुई। इसमे निर्णय लिया गया कि राजभवन की ओर से जल्द निर्णय नहीं आता है तो राजभवन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया जाएगा।
हालांकि यह भी पता चला है कि राजभवन की ओर से इस मामले पर निर्णय आने में 2 से 3 दिन लगेंगे।
इस तरह की खबरों के बाद पूरे प्रदेश में भी और संशय की स्थिति बनी हुई है। लोग कई तरह की बातें कर रहे हैं। बात-बात में सत्ताधारी दलों के नेताओं के भटकने की खबरें तो आती ही रही हैं। विधायक भटक ना जाएं इसके लिए हर दिन बैठकों का दौर जारी है तो कभी खुद हेमंत सोरेन सभी नेताओं को पिकनिक पर ले जाकर उनका मनोरंजन करवाने की कोशिश कर रहे हैं। यह सब सिर्फ इसलिए कि सभी विधायकों की एकजुटता दिखती रहे। इधर राजभवन की चुप्पी पर सब्र का बांध टूटने के बाद बड़े-बड़े नेताओं की बयान बाजी शुरू हो चुकी है।
कांग्रेस नेता और झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि राज्यपाल अपना निर्णय सामने रखे, अगर ऐसा नहीं होता है तो 24 घंटे के अंदर हम आने वाले निर्णय के खिलाफ खड़े होंगे।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने इसे लोकतंत्र और राज्य की जनता का अपमान बताया है । उन्होंने कहा कि एक जनजाति मुख्यमंत्री भाजपा को पच नहीं रहा है। उन्होंने राज्यपाल से कहा कि संशय की स्थिति को समाप्त करते हुए चुनाव आयोग के निर्णय से अवगत कराएं।
राजभवन की चुप्पी के पीछे कांग्रेस नेताओं ने तो भाजपा को ही घेरना शुरू कर दिया है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा कि भाजपा सत्ताधारी दलों को डराने की कोशिश कर रही है लेकिन सत्ताधारी गठबंधन झुकने वालों में से नहीं है।
इन सब में अब यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि यदि गठबंधन के पास 50 विधायकों का आंकड़ा पहले से मौजूद है, तो ऐसे में राजभवन का निर्णय अगर देर से भी आता है तो क्या फर्क पड़ेगा?
इस सवाल का जवाब गठबंधन की बेचैनी खुद ही दे रही है। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में कांग्रेस के तीन विधायकों (इरफान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन विक्सल कोंगाडी) को ले सकते हैं।आपको बटा दें कि कांग्रेस ने इन तीनों विधायकों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। कुछ दिन पहले ही कोलकाता में इन तीनों से 49 लाख रुपये मिले थे। इसके बाद इन तीनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। हालांकि कुछ दिन पहले ही ये तीनों जमानत पर बाहर हुए हैं । इस मामले पर झारखंड कांग्रेस पार्टी के नेता आपस में ही ‘तू तू मैं मैं’ कर रहे हैं। कोई इनपर गंभीर आरोप लगा रहा है तो कोई इनके पक्ष में भी खड़ा है। यानी झारखंड कांग्रेस आपस में ही बिखरी हुई है, जिसका असर राज्य सरकार पर पड़ सकता है। सरकार की बेचैनी का एक बहुत बड़ा कारण यह प्रकरण भी है।
इधर एक और मामला पर संशय बरकरार है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द होने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा किसे मुख्यमंत्री पद सौंपेगी। इसे लेकर भी गठबंधन के नेताओं में अंदर ही अंदर फूट दिखाई दे रही है। सूत्रों के अनुसार एक दर्जन से भी अधिक विधायकों ने बिरसा कांग्रेस के नाम से अलग पार्टी गठित करने का भी मन बना लिया है। कुल मिलाकर गठबंधन की सरकार को अपने ही नेताओं को एकजुट करने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। और अपनी गलतियों को छुपाने के लिए राजभवन पर दबाव की राजनीति की जा रही है।
इस पर भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन पर तंज कसते हुए कहा कि जिस वक्त राजभवन की ओर से कार्रवाई चल रही थी उस वक्त तो हेमंत सोरेन की ओर से बार-बार बीमारी से लेकर तमाम तरह के बहाने बनाए जा रहे थे। लेकिन अब ऐसा क्या हो गया कि अचानक चुनाव आयोग और राजभवन के निर्णय को जल्द से जल्द सुनाने का दबाव बनाया जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि सोरेन अपने विधायकों संभाल नहीं पा रहे हैं।
बीमारी से लेकर तमाम तरह के बहाने बनाकर संवैधानिक संस्थाओं से बार-बार समय माँगने वाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अब इतनी जल्दबाज़ी है कि चुनाव आयोग/महामहिम राज्यपाल तक पर निर्णय तुरंत करने का दवाब बना रहे है।
लगता है अविश्वास ऐसा कि इनसे साथ के विधायक दो दिन भी नहीं संभल रहे?
— Babulal Marandi (@yourBabulal) August 28, 2022
उन्होंने आगे कहा कि महागठबंधन के नेता संवैधानिक संस्थाओं को निष्पक्ष काम करने दें। झारखंड में मुख्यमंत्री से जुड़े मामले में चुनाव आयोग या राज्यपाल की भूमिका पर जबरन सवाल उठाकर निष्पक्ष संस्थाओं को घेरने का काम किया जा रहा है। बेहतर होता कि महागठबंधन के नेता पहले आयोग के फैसले का विधिवत इंतजार करते।
अब देखना यह है कि बाबूलाल मरांडी जो कह रहे हैं उसमें कितनी सच्चाई है? आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी रहती है या जाती है? अगर हेमंत सोरेन की कुर्सी जाती भी है तो क्या इस महागठबंधन में जहां सभी नेता एक दूसरे से भिन्न विचारधारा रखते हैं, उन्हें कब तक एकजुट कर रख पाते हैं?
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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