चुन्नीलाल मदान
डेरा गाजीखान
भारत विभाजन से पहले मेरे पिताजी बलूचिस्तान में सरकारी नौकरी करते थे। एक बार वे आए तो माताजी और मुझे साथ ले गए। अभी बलूचिस्तान गए कुछ ही दिन हुए थे कि पिताजी कहने लगे कि बेवजह घर से मत निकलना, बाहर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा।
जब वहां का माहौल बिगड़ गया तो पिताजी मुझे और मां को लेकर गांव आ गए। फिर कभी बलूचिस्तान नहीं लौट पाए। गांव आने के बाद देखा कि मुसलमान हिंदुओं के घरों को लूट रहे थे, उनके साथ मार-पीट कर रहे थे।
हालात ऐसे बने कि एक दिन हमें गांव, घर और जमीन-जायदाद छोड़कर पलायन करना पड़ा। रास्ते में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने हिंदुओं की मदद की। भारत में उन दिनों बहुत मुश्किल से समय बीता।
सरकार ने रहने के लिए तंबू की व्यवस्था की थी। बाद में लोगों ने अपनी व्यवस्था कर ली।
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