पहले तक देश के हर बड़े टीवी चैनल पर अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन का एक विज्ञापन दिखता था। इसमें बच्चे की त्वचा पर मां इस कंपनी द्वारा निर्मित बेबी पाउडर लगाते हुए कहती थी, ‘यह पाउडर आपके बच्चे को रखे फ्रेश और एक्टिव।’ बरसों तक यह कंपनी डाबर, हिंदुस्तान यूनिलीवर और हिमालय जैसे ब्रांड को टक्कर देती रही
कुछ समय पहले तक देश के हर बड़े टीवी चैनल पर अमेरिकी कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन का एक विज्ञापन दिखता था। इसमें बच्चे की त्वचा पर मां इस कंपनी द्वारा निर्मित बेबी पाउडर लगाते हुए कहती थी, ‘यह पाउडर आपके बच्चे को रखे फ्रेश और एक्टिव।’ बरसों तक यह कंपनी डाबर, हिंदुस्तान यूनिलीवर और हिमालय जैसे ब्रांड को टक्कर देती रही और भारतीय उपभोक्ता भी इस पाउडर को सिर्फ इसकी विशेष खुशबू के लिए खरीदते रहे। लेकिन अब यह विज्ञापन टीवी पर दिखना बंद हो गया है। अगले साल से कंपनी ने बेबी पाउडर का उत्पादन बंद करने की घोषणा की है। पाउडर में कैंसर कारक तत्व मिलने के बाद अमेरिका और कनाडा ने 2020 से ही जॉनसन बेबी पाउडर की ब्रिकी पर प्रतिबंध लगा रखा है। हालांकि कंपनी हमेशा पाउडर को सुरक्षित बताकर दुनियाभर में बेचती रही है।
बिक्री बढ़ाने के लिए विज्ञापन पर बेतहाशा खर्च
दरअसल, कैंसर की आशंका वाली रिपोर्ट आने के बाद बेबी पाउडर की बिक्री में भारी गिरावट आई है। कंपनी पर हजारों मामले तो दर्ज हुए ही हैं, इसे अरबों रुपये मुआवजे के तौर पर भी देने पड़े हैं। कंपनी 1894 से बेबी पाउडर बेच रही है और इसके लिए हर साल हजारों करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च करती है। जब कोरोना के कारण दुनियाभर के काम-धंधे ठप हो गए थे, तब कंपनी ने 2020 में विज्ञापन पर 334 करोड़ रुपये, जबकि 2019 में 434 करोड़ रुपये खर्च किए थे। दुनियाभर में कंपनी हर साल 2 अरब रुपये से अधिक के विज्ञापन देती है ताकि इस उत्पाद की बिक्री बढ़े। भारत में दस सबसे अधिक विज्ञापन दाता कंपनियों में जॉनसन एंड जॉनसन शामिल है। कंपनी के विज्ञापनों में ‘बेबी उत्पाद’ के विज्ञापन ही प्रमुख हैं। भारत में भी यह ‘बेबी उत्पाद’ धड़ल्ले से बेच रही है। यहां तक कि एलोपैथी डॉक्टर भी बच्चों को यही पाउडर लगाने के लिए कहते थे।
‘जॉनसन बेबी पाउडर’ का कैंसर से नाता
कंपनी के बेबी पाउडर में एस्बेस्टस मिला हुआ है, जो टैल्क यानी अभ्रक की खदान के पास ही मिलता है। इसे कैंसर का कारक माना जाता है। ऐसा नहीं है कि कंपनी को इस बारे में पहले से पता नहीं था, लेकिन कंपनी इस तथ्य को छिपाती रही। दुनियाभर में कंपनी के उत्पाद से महिलाओं को गर्भाशय का कैंसर होने के दावे किए जाते रहे। अमेरिकी नियामक ने भी बेबी पाउडर में कैंसर कारक तत्व पाए जाने की बात कही थी। 2018 में न्यूज एजेंसी रायटर्स ने इस पर एक रिपोर्ट लिखी, जिसमें कहा गया कि बेबी पाउडर में कासीनजन (एक ऐसा उत्पाद जो ऊतकों में कैंसर पैदा करता है) है। इसे लेकर कंपनी पर अमेरिका में कई मुकदमे भी भी हुए, पर कंपनी ने इस उत्पाद को बेचना बंद नहीं किया है, सिर्फ घोषणा की है कि वह 2023 के बाद इसे बेचना बंद कर देगी। साथ में यह भी कहा है कि उसका ‘यह उत्पाद सुरक्षित है’।
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जॉनसन कंपनी के बेबी पाउडर में एस्बेस्टस मिला हुआ है। माना जा रहा है कि एस्बेस्टस में टैल्क मिलने की वजह से जॉनसन बेबी पाउडर शरीर में कैंसर को जन्म देता है। कंपनी को यह पता था, लेकिन फिर भी उसने यह तथ्य छिपाया और अपना उत्पाद बेचकर नवजात बच्चों की सेहत से खिलवाड़ करती रही।
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बेशक, कंपनी अपने उत्पाद को सुरक्षित बता रही हो, लेकिन अमेरिका में इस पाउडर को लेकर बहुत सी महिलाओं ने अदालत में मुकदमा किया है। इनमें से ज्य़ादातर महिलाओं को गर्भाशय का कैंसर हुआ है। इसके लिए उन्होंने जॉनसन बेबी पाउडर को जिम्मेदार बताया है। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के अनुसार, टैल्क में अगर एस्बेस्टस की मिलावट से गर्भाशय के कैंसर से लेकर अन्य कई प्रकार के कैंसर हो सकते हैं।
आरोपों की शुरुआत
दरअसल, जॉनसन एंड जॉनसन पर 1990 के दशक के आखिरी सालों में आरोप लगने शुरू हुए थे। डारलिन चोकर नामक एक महिला ने आरोप लगाया था कि इस पाउडर के कारण उसे और उसके बच्चे को मेसोथेलियोमा रोग हो गया, जो एक तरह का कैंसर है, जिसकी वजह से ऊतकों को नुकसान होता है। हालांकि इस मुकदमे के बाद अदालती कार्रवाई के दौरान कंपनी ने न तो बेबी पाउडर की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की और न ही कंपनी का आंतरिक रिकॉर्ड ही सामने आया। अलबत्ता, कंपनी ने बाद में डारलिन पर दबाव डालकर इस मुकदमे को वापस करा दिया। उसके बाद से केवल अमेरिका में ही कंपनी पर अब तक 40 हजार से अधिक मुकदमे दर्ज हुए हैं। इनमें कंपनी को 3.5 अरब डॉलर यानी 28,000 करोड़ रुपये का जुर्माना भी भरना पड़ा है।
एपी की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी को 2018 में अमेरिका की एक अदालत ने 22 महिलाओं को 4.7 अरब डॉलर का जुर्माना देने का आदेश सुनाया था। अदालत ने माना था कि जॉनसन के पाउडर से ही इन महिलाओं को गर्भाशय का कैंसर हुआ है। जॉनसन ने इस फैसले के खिलाफ वहां के सर्वोच्च न्यायालय में भी गुहार लगाई थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस फैसले को नहीं पलटा।
कंपनी ने छिपाई जानकारी
2018 में रॉयटर्स और न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक जांच की थी। इसमें पाया गया कि 1970 में ही कंपनी को यह पता चल गया था कि उसके पाउडर में कुछ मात्रा में एस्बेस्टस मिला हुआ है। लेकिन लोगों के डर और बिक्री घटने के डर से कंपनी ने इस जानकारी को दबाकर रखा। हालांकि कंपनी लगातार इस बात को कहती रही है कि उसके उत्पाद ‘एस्बेस्टस फ्री’ हैं।
इसके बाद अमेरिकी एफडीए को 2019 में कंपनी के टेलकम पाउडर में एस्बेस्टॉस मिला था, इससे घबराकर कंपनी ने 33,000 बेबी टेलकम पाउडर के डिब्बे वापस लौटा लिए थे। इतना सब होने के बाद भी कंपनी ने कभी ये नहीं माना कि उसके बेबी पाउडर में एस्बेस्टॉस की मिलावट पाई गई है। हालांकि लगातार दबाव के बाद कंपनी ने मई 2020 में अमेरिका और कनाडा में इस पाउडर की बिक्री रोक दी थी। आरोपों के बीच 2019 में कंपनी को भारत में अपना उत्पादन बंद भी करना पड़ा था।
लाखों लोगों को हो रहे गर्भाशय कैंसर के बाद दबावों से बचने के लिए जॉनसन एंड जॉनसन ने एलटीएल मैनेजमेंट नाम से एक सहायक कंपनी खड़ी की, जिसको बेबी पाउडर संबंधी मुकदमों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया और इस कंपनी ने दिवालिया होने की घोषणा कर दी। मामला अदालत में चला गया। इसके बाद जॉनसन के बेबी पाउडर के खिलाफ सभी सुनवाई रोक दी गईं। इतना होने के बाद भी विकासशील देशों में कंपनी ने अपने बेबी पाउडर की बिक्री पर रोक नहीं लगाई थी। लेकिन अब सोशल मीडिया और सरकार के दबाव में कंपनी ने उत्पादों की बिक्री पर रोक की हामी भरी है।
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