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विभाजन : ‘आज भी याद हैं भय से भरे चेहरे’

by पाञ्चजन्य वेब डेस्क
Aug 25, 2022, 05:25 pm IST
in भारत
कृष्णलाल कोहली

कृष्णलाल कोहली

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कृष्णलाल कोहली

मुगलपुरा, लाहौर, पाकिस्तान

 

बंटवारे के दिनों को याद कर अब भी विचलित हो जाता हूं। इंसानियत तो कुछ बची ही नहीं थी। उन दिनों मेरा परिवार मुगलपुरा (लाहौर) में रहता था। मुगलपुरा में ही मेरा दफ्तर था।

1947 में मैं रेलवे में लिपिक था और संघ का स्वयंसेवक भी। उन दिनों जींद के एक गुरुद्वारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण शिविर लगा था।

शिविर में भाग लेने के लिए मैं जींद गया और उधर मार-काट शुरू हो गई। मेरे मुहल्ले मुगलपुरा में भी हिंदुओं को काटा-मारा गया।

शिविर में श्रीगुरुजी भी आए हुए थे। माहौल खराब होने की खबर सुनकर उन्होंने सभी स्वयंसेवकों को कहा कि सभी अपने-अपने घर जाओ और परिवार के साथ-साथ अन्य लोगों की मदद करो।

हम लोग जैसे-तैसे लाहौर पहुंचे। चारों तरफ अफरा-तफरी थी। इस कारण उस दिन घर नहीं जा पाया। डी.ए.वी. कॉलेज में शरणार्थी शिविर लगा था। रात में वहीं रहा। शिविर में सैकड़ों हिंदू थे।

सभी दहशत में थे। माहौल खराब होने के कारण कहीं से खाना नहीं आ पाया और सभी लोग भूखे ही बैठे रहे। सुबह एक तांगे वाले ने मुझे घर छोड़ दिया। कुछ देर बाद एक सरदार जी, जो सेना में काम करते थे, आए और कहने लगे कि जल्दी करो, अमृतसर से एक ट्रक आया है, उसी से हम सभी अमृतसर चले चलते हैं।

मैंने अपनी पत्नी और बच्चों को उसी ट्रक से अमृतसर भेज दिया और खुद डी.ए.वी. कॉलेज चला गया। वहां से हिंदुओं को भारत भेजने का काम करने लगा।

साथ में कुछ और स्वयंसेवक थे। कुछ दिन बाद मैं भी अमृतसर आ गया। वहां से मुजफ्फरनगर अपने साले के घर आ गया। इसके बाद फिरोजपुर गया, जहां मेरे बड़े भाई रेलवे में नौकरी करते थे।

Topics: संघ का स्वयंसेवकहिंदुओं को भारत भेजने का कामडी.ए.वी. कॉलेजPartition: 'Even today I remember the faces full of fear'
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