उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भगवान शिव के 12वें गण लखिया के जयकारों से बुधवार को सोरघाटी गूंज उठी। ढोल, नगाड़ों और लाल-पीले झंडों के साथ कोट की परिक्रमा के बाद जैसे ही लखिया मुख्य मैदान की ओर निकला, वहां मौजूद लोगों ने लखिया पर पुष्प वर्षा शुरू कर दी। लखिया की एक झलक पाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ जुटी। लोगों का बुधवार दोपहर बाद बड़ी संख्या में कुमौड़ पहुंचना शुरू हो गया था। शाम तीन बजे तक पूरा मैदान और आसपास मौजूद घरों की छतों पर लोग पहुंच गए।
हिलजात्रा का शुभारंभ पारंपरिक तरीके से हाथों में काला चंवर, काली वेशभूषा, गले में रुद्राक्ष की माला, कमर में रस्सियों से बंधा, चंदन के त्रिपुंड लखिया को अवतरित किया गया। इसके बाद ढोल दमाऊं, शंख घंटे की ध्वनि के साथ ढोल दमाऊं वादक ने एक लखिया पारी को मालिक शिवजी को गण जाग लखिया जाग के बोलों के साथ अवतरित किया। इसके बाद लखिया ने अवतरित होकर लोगों को आशीर्वाद दिया। लखिया अवतरित होने के बाद जैसे ही मुख्य मैदान में पहुंचा। पूरा मैदान लखिया के जयकारों से गूंज उठा। लोगों ने आशीर्वाद मांगकर सुख, शांति की कामना की। लखिया के दर्शन को लोग उत्साहित रहे।
महर भाइयों को है हिलजात्रा लाने का श्रेय
पिथौरागढ़ में कुमौड़ की हिलजात्रा के पीछे छिपी कहानी सोर की पहचान बन चुकी है। हिलजात्रा को लाने का मुख्य श्रेय चार वीर महर भाइयों को जाता है। कहा जाता है कि जब वह इंद्रजात्रा के समय नेपाल गए थे। यहां कार्यक्रम में भैंसों की बलि दी जाती थी। मान्यता थी कि एक बार में भैंस की बलि दी जानी थी, लेकिन ऐसा करने की हिम्मत किसी के पास नहीं थी। महर भाइयों ने राजा से अनुमति मांगी। राजा ने उन्हें अनुमति दे दी। एक भाई ने ऊंचे स्थान पर चढ़कर भैंस को घास दिखाई। जैसे ही भैंस ने घास खाने के लिए मुंह ऊपर किया तो दूसरे भाई ने नीचे की तरफ से खुकरी से भैंस पर वार कर गर्दन अलग कर दी। कहा जाता है तब राजा ने प्रसन्न होकर महर भाइयों को यह उत्सव पुरस्कार में दिया था।
सालभर रहता है लोकपर्व का इंतजार
कुमौड़ की प्रसिद्ध हिलजात्रा के मुख्य किरदार लखिया का अभिनय करने वाले निखिल महर का कहना है कि उन्हें सालभर हिलजात्रा पर्व का इंतजार रहता है। मुखौटा नृत्य पर आधारित कुमौड़ की प्रसिद्ध हिलजात्रा को देखने के लिए देश के कई हिस्सों से लोग यहां पहुंचते हैं। उत्सव को देखने के लिए नई पीढ़ी के युवाओं में गजब का उत्साह नजर आता है। युवा मुखौटा नृत्य के मुख्य कलाकारों की भूमिका ऐसी होती है कि लोग रोमांच से भर जाते हैं। लखिया के गण का किरदार निखिल के चचेरे भाई पवन सिंह महर और बलराज सिंह महर पिछले सात से आठ सालों से निभा रहे हैं। लखिया के पुजारी की भूमिका नकुज महर ने निभाई। इसके अलावा पारंपरिक परिधानों में सजी छोटी बच्चियां गरिमा, ईशी, उन्नति सहित कई अन्य बालिकाओं और युवाओं ने गल्या बल्द, बैलों की जोड़ी, खेती करते महिला पुरुष आदि की भूमिका निभाई।
खेती-किसानी से जुड़ी गतिविधियों को किया जाता है पेश
कुमौड़ का हिलजात्रा पर्व राज्य का प्रमुख मुखौटा नृत्य है, जिसमें कलाकार खेती-किसानी से जुड़ी गतिविधियों को विभिन्न तरह के मुखौटे पहनकर मनोरंजक तरीके से पेश करते हैं। हिलजात्रा का मुख्य आकर्षण भगवान शिव का 12वां गण लखियाभूत है। सातूं-आठूं पर्व के समाप्त होने के बाद इसका आयोजन किया जाता है। हिलजात्रा में विशिष्ट लोक नाट्य शैली के दर्शन होते हैं। विशेष तरीके से लकड़ी से निर्मित मुखौटों को पहनकर कलाकार कृषि और लोक जीवन से जुड़ा अभिनय करते हैं, जिसमें आस्था के साथ हास्य भी है।
यह भी जानें-
– 30 से अधिक गांवों में मनाई जाती है हिलजात्रा।
– भारत और नेपाल की संस्कृति का प्रतीक है हिलजात्रा।
– दो से तीन घंटे तक चलते हैं हिलजात्रा में कार्यक्रम, शिवमय हो जाता है माहौल।
इन गांवों में होती है हिलजात्रा
कुमौड़, बजेटी, भुरमुनी, बलकोट, मेल्टा, खतीगांव, बोक्टा, थरकोट जाख-पुरान, हिमतड़, चमाली, जजुराली, गनगाड़ा, बस्ते, भैस्यूड़ी, लोहाकोट, सेरा, पाली, डुंगरी, अलगड़ा, रसैपाटा, सिरौली, सुरौण, देवलथल, सिनखोली, पनखोली, कनालीछीना।
कुमौड़ में लगा रहा जाम
कुमौड़ में हिलजात्रा देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। इस कारण कुमौड़, कैंट रोड पर वाहनों का जाम रहा।
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