स्वदेश पाल
मीरपुर, पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर
विभाजन के समय मेरी आयु 7 वर्ष थी। मैं मीरपुर में रहता था। 15 अगस्त, 1947 को जब विभाजन के कारण पाकिस्तान से हिन्दू भारत आ रहे थे, उस समय मीरपुर के लोगों को आशा थी कि जम्मू-कश्मीर राज्य के राजा हरि सिंह का क्षेत्र होने के कारण इसका भारत में ही विलय होगा। मुजफ्फराबाद या आस-पास के क्षेत्रों से जो पलायन हो रहा था, मीरपुर के हिन्दुओं ने उन्हें अपने में ही बसा लिया और वे 7-8 हजार लोग इन हिन्दू परिवारों में ही समा गए।
इस प्रकार मीरपुर की आबादी जो कि 10-12 हजार थी वह 15-20 हजार के बीच हो गई। लेकिन कुछ ही समय बाद पाकिस्तानी कबाइलियों ने मीरपुर पर स्थानीय मुसलमानों को साथ लेकर आक्रमण किया। मुझे याद है कि कबाइलियों ने 5-6 दिन पूरे इलाके को घेर कर रुक-रुक कर फायरिंग की। इससे समाज में दहशत फैल गई। इस हालत में महाराजा हरि सिंह ने एक अधिकारी के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी मीरपुर की सुरक्षा के लिए भेजी। लेकिन कम संख्या के कारण वह ज्यादा समय नहीं रुक सकी। उन दिनों मीरपुर में अच्छी शाखा लगती थी।
स्वयंसेवकों ने संगठित होकर सेना के साथ मोर्चा संभाला। लेकिन हमारी संख्या कम थी, इसलिए हमें पीछे हटना पड़ा। यह देख मीरपुर के निवासियों का मनोबल टूट गया। धीरे- धीरे लोग मीरपुर छोड़ने लगे। इस माहौल को देखकर यह तय हुआ कि एक गुरुद्वारे में सभी एकत्र होंगे और आगे क्या करना है, इस पर विचार करेंगे।लेकिन भगदड़ के कारण कम ही लोग वहां पहुंचे, क्योंकि लोग अपनी जान बचाने के लिए जम्मू या अन्य क्षेत्रों की ओर भाग रहे थे। वह बहुत ही बुरा समय था। अब मीरपुर में हिंदू नहीं रहते हैं।
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