चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर परियोजना यानी ‘सीपैक’ खटाई में पड़ती दिखाई दे रही है। इससे पाकिस्तान को ‘अरबों डालर की कमाई’ के कयासों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। पीओजेके में सीपैक परियोजनाओं को लेकर आक्रोश, चीनी इंजिनियरों और नागरिकों पर जानलेवा हमलों, अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान से नाराज चीन और पिछले लंबे वक्त से परियोजनाओं के लिए चीन की तरफ से रत्तीभर पैसा न पहुंचने के कारण अब ‘सीपैक’ के अमल में आने को लेकर छाया धुंधलका बढ़ता जा रहा है।
ऐसे में कंगाल पाकिस्तान को एक नई जुगत सूझी है। उसने एक प्रस्ताव तैयार किया है जो उनकी मंशा के हिसाब से उनके रीतते जा रहे विदेषी मुद्रा भंडार को कुछ राहत दे सकता है। लेकिन सवाल है कि क्या चीन इस प्रस्ताव को मानने के लिए राजी होगा? क्या बीजिंग कट्टर इस्लामवादी जिहादी तत्वों के प्रभाव से ग्रस्त पाकिस्तान की एक कमजोर सरकार के साथ आगे बढ़ना चाहेगा?
इस्लामाबाद से मिले ताजा समाचार के अनुसार, पाकिस्तान अब चीन की कंपनियों की मिजाजपुर्सी में जुटने की तैयारी कर रहा है। दुनिया के सामने पैसे के लिए हाथ फैलाए पड़ोसी इस्लामी देश इस हालत में पहुंच चुका है कि चीन को खुश करने के लिए वह अपने कानून तक में परिवर्तन का प्रस्ताव पेष करने वाला है। वह जानता है कि कोई यूएई सहित इस्लामी देश उसे ‘कर्जा’ देने को तैयार नहीं है। कोई उसका ‘दोस्त देश’ उस जर्जरहाल मुल्क को सहारा देने को तैयार नहीं है। ऐसे में उसे बीजिंग की याद आनी स्वाभाविक ही है क्योंकि वह भारत का पड़ोसी है जहां चीन उसके कंधे पर बंदूक रखे निशाने साधने के प्रपंच रच रहा है।
बहरहाल, पाकिस्तान सरकार के इस नए प्रस्ताव को देखें तो इसमें एक षर्त जोड़ी गई है कि परियोजनाओं में कार्यरत चीन की कंपनियां परियोजना की कुल लागत की 20 प्रतिशत राशि अमेरिकी डॉलरों में पाकिस्तान के सेंट्रल बैंक में एक खास खाते में जमा कराएं।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की सरकार इस नए प्रस्ताव को लेकर गंभीर मानी जा रही है, लेकिन यह गंभीरता फिलहाल उसकी तरफ से ही है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के रणनीतिकार चीन ने अभी इस पर कोई हरकत नहीं दिखाई है। लेकिन पाकिस्तान को लगता है कि परियोजनाओं की 20 प्रतिषत लागत डॉलर के तौर पर उसके बैंक में जमा होने से उसकी विदेशी मुद्रा की बदहाली को फिलहाल कुछ और दिन तक टाला जा सकेगा, क्योंकि अब उसका यह खजाना लगभग खाली हो चुका है और इसमें महज 8 अरब डॉलर ही बचे हैं।
पाकिस्तानी अंग्रेजी दैनिक द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट बताती है कि इस संबंध में शाहबाज शरीफ अपनी तरफ से विचार कर चुके हैं। अखबार ने पाकिस्तान के एक कैबिनेट मंत्री को उद्धृत करते हुए छापा है कि प्रस्ताव पर चर्चा हो चुकी है और इसे अंतिम रूप देने की तैयारी चल रही है। अगर यह प्रस्ताव चीन स्वीकार कर लेता है तो इससे परियोजनाओं के कुल सात अरब डॉलर में से एक से चार अरब डॉलर तक पाकिस्तान के बैंक में आएंगे। पाकिस्तान के अफसरों का तर्क है कि ऐसा होने से थम चुकीं ‘सीपैक’ परियोजनाएं तेजी से हरकत में आएंगी। उनकी बेहतर सुरक्षा हो पाएगी।
पाकिस्तान को इस वक्त जिस एक अंतरराष्ट्रीय संस्था से उम्मीद बची है वह है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जिसे उसे एक-दो अरब डॉलर कर्जा मिल सकता है। लेकिन आईएमएफ इस मुद्दे पर अपनी 29 अगस्त की बैठक में ही विचार करेगी। शाहबाज सरकार को लगता तो है कि उस बैठक में उसके कर्जे की अर्जी मंजूर हो जाएगी और उसे पैसा मिल जाएगा। लेकिन विशेषज्ञ यह भी मान रहे हैं कि हो सकता है चीन से पैसा लेने की पाकिस्तान की ताजा हरकत आईएमएफ को नाराज कर दे। बताते हैं वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल ने इस बारे में सरकार को चेताया भी है।
इसमें एक पेंच और फंसा है कि चीन चाहता है, पाकिस्तान उसके नागरिकों और परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए चीनी सैनिकों को तैनात करने की सहूलियत दे। फिलहाल पाकिस्तान और साथ ही अफगानिस्तान के तालिबान इस मसले पर चुप्पी ओढ़े हुए हैं।
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