समाज कार्य विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पुस्तक प्रकाशित करने वाले पहले भारतीय शिक्षाविद बने डॉ. विष्णु मोहन दाश

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जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, प्रतिष्ठित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के एक शिक्षाविद ने समाज कार्य के क्षेत्र में देश का गौरव बढ़ाने का कार्य किया है.

डॉ. बिष्णु मोहन दाश, (Dr. Bishnu Mohan Dash) सह-आचार्य (Associate Professor) और पाठ्यक्रम समन्वयक, ग्रामीण विकास विभाग, इग्नू के रूप में कार्यरत है. हाल ही में डॉ. दाश की एक पुष्तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रकाशक SAGE India प्रकाशन (नई दिल्ली, कैलिफ़ोर्निया, लंदन, सिंगापुर) द्वारा “INTRODUCTION TO SOCIAL WORK” इंट्रोडक्शन टू सोशल वर्क नाम से प्रकाशित हुई है.

विदित हो कि पिछले आठ दशकों में SAGE India द्वारा प्रकाशित किसी भारतीय शिक्षाविद द्वारा समाज कार्य पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की यह पहली पाठ्यपुस्तक है। एक विषय के रूप में समाज कार्य का प्रारम्भ 1936 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS), मुंबई द्वारा किया गया था। १९३६ से लेकर अब तक भारतीय छात्र और शोधकर्ता वैश्विक स्तर की पाठ्यपुस्तकों के लिए पूरी तरह से यूरोपीय और अमेरिकी विद्वानों द्वारा लिखी गयी पुस्तकों पर निर्भर थे।

डॉ. दाश की पुस्तक को 26 अध्यायों से युक्त चार खंडों में विभाजित किया गया है। भारत और नाइजीरिया (अफ्रीका) के विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों/संस्थानों के अत्यंत अनुभवी समाज कार्य शिक्षाविदों ने विभिन्न अध्यायों को लिखा है।

डॉ. दाश ने बताया कि यूरोपीय और अमेरिकी शिक्षाविदों द्वारा लिखी गई पुस्तकें पश्चिमी समाज की आवश्यकताओं और प्रयोगों पर आधारित हैं। उनमें समाज कार्य के क्षेत्र में भारतीय अनुभवों और प्रयोगों के लिए लगभग कोई जगह नहीं है। डॉ. दाश के अनुसार, “जो छात्र उन पुस्तकों को अपनी अध्ययन सामग्री के रूप में संदर्भित करते हैं, वे समाज कार्य के पश्चिमी दृष्टिकोण से अच्छी तरह परिचित हो जाते हैं, लेकिन भारतीय जड़ों से कट जाते हैं. वो विद्यार्थी और शोधार्थी आगे चलकर यूरोसेंट्रिक विद्वान बन जाते हैं और अंततः भारतीय ज्ञान व्यवस्था के घोर विरोधी बन जाते हैं”। उन्होंने स्पष्ट किया है की यह पुस्तक विभिन्न समाज कार्य सिद्धांतों और प्रयोगों के वैश्विक महत्व को रखने के साथ साथ भारतीय समाज कार्य विचारकों, सिद्धांतों और प्रयोगों को भी शामिल करती है ताकि इसे भारतीय परिवेश के लिए प्रासंगिक बनाया जा सके। इस प्रकार यह भारतीय ज्ञान व्यवस्था के युगानुकूलन का एक बौद्धिक प्रयास है. समाज कार्य के स्नातक एवं परास्नातक छात्रों के अलावा यह पुस्तक सिविल सेवा के अभ्यर्थियों के लिए भी बेहद उपयोगी होगी।

प्रकाशन के कुछ ही सप्ताह के भीतर इस पुस्तक को भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों से अपार प्रशंसा मिल रही है. 18 अगस्त को, राजीव गांधी राष्ट्रीय युवा विकास संस्थान, खेल और युवा मंत्रालय, भारत सरकार ने कुछ अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को आमंत्रित करके एक “पैनल डिस्कशन” (बौद्धिक परिचर्चा) का आयोजन किया। एक और “पैनल डिस्कशन” आगामी 29 अगस्त को भोपाल स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, भोपाल में निर्धारित है। “अकादमिक क्षेत्र की प्रतिक्रिया अत्यधिक सकारात्मक एवं उत्साहजनक है। डॉ. दाश ने आशा व्यक्त की कि पैनल डिस्कशन की मेजबानी के लिए कई अनुरोध आए हैं। बौद्धिक परिचर्चा से हम युवाओं में यह विश्वास जगाने में सक्षम होंगे कि भारतीय शिक्षक बौद्धिक क्षमता में किसी भी अन्य देश के शिक्षक से कमतर नहीं हैं.

अंतरराष्ट्रीय प्रकाशकों द्वारा डॉ. दास की यह तीसरी पुस्तक है। इससे पहले, उन्होंने Routledge -Taylor and Francis, (न्यूयॉर्क) द्वारा ऐतिहासिक “इंडियन सोशल वर्क” और “फील्ड वर्क ट्रेनिंग इन सोशल वर्क” प्रकाशित किया, जिसे भारतीय समाज कार्य शिक्षा में महान योगदान माना जाता है। इसके अलावा, उन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय प्रकाशकों द्वारा सामाजिक कार्य पर कई अन्य पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं।

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