भगवान दास मेहता
डेरागाजी खान, पाकिस्तान
वर्ष 1947 में भारत विभाजन के बाद भी हम लोग तीन महीने पाकिस्तान में रहे। उस समय मैं 12 साल का था। हमारा परिवार डेरा गाजीखान जिले के चारू गांव में रहता था। मुझे खूब याद है कि विभाजन से दो-तीन साल पहले ही मेरे पिताजी ने चार मंजिल का बहुत सुन्दर मकान बनवाया था। सभी सुखपूर्वक रह रहे थे। किसी तरह का अभाव नहीं।
दुर्भाग्यवश भारत का बंटवारा हो गया और इसके साथ ही पाकिस्तानी हिस्से में रहने वाले हिंदुओं के दुर्दिन शुरू हो गए। अगस्त का महीना रहा होगा। एक रात हमारे गांव पर मुसलमानों ने हमला कर दिया। इसके बाद हम सभी हिंदू गांव में दिन-रात पहरा देने लगे। इससे भी मुसलमान चिढ़ गए और वे कहने लगे कि तुम लोग गांव से चले जाओ।
उस समय बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं था। इसके बाद गांव के सभी हिंदुओं ने बाहर निकलना ही ठीक समझा। एक बस मंगाई गई। कुछ कपड़े और खाने-पीने की चीजों के साथ हम लोग बस में चढ़े। बस ठसाठस भर गई। लोग बस की छत पर भी बैठे। उस वक्त हम सभी रो रहे थे। सभी ने अपने-अपने घरों को प्रणाम किया और भारी मन से बस में बैठ गए।
गांव से हम लोग डेरा गाजीखान आए। वहां एक शिविर लगा था। इसमें डेरा गाजीखान के अनेक गांवों के हिंदू रह रहे थे। हम लोग भी उसी शिविर में रहे। कभी खाना मिलता, तो कभी नहीं। कई-कई दिन बाद नहाने के लिए पानी मिलता।
कह सकते हैं कि वह शिविर किसी जेल से कम नहीं था। जेल तो सुरक्षित होती है, पर वहां हम लोग असुरक्षित थे। हमले का डर बना रहता। उसी डर के माहौल में वहां तीन महीने रहे। वे तीन महीने 30 वर्ष से कम नहीं थे।
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