सतीश दुरेजा
नवांशहर, मुल्तान, पाकिस्तान
हम लोग मुल्तान शहर से करीब 2 किलोमीटर दूर नवांशहर की एक बस्ती में रहते थे। नवांशहर में हमारा चार मंजिला मकान हुआ करता था। यहां हर तबके के थोक व्यापारियों का आना—जाना लगा रहता था। मुझे खूब याद है तब मैं करीब 7 साल का था।
मुल्तान में भी उन दिनों बंटवारे के खूब चर्चे चला करते थे। फिर आखिरकार बंटवारे का फैसला हुआ।
हमारे चार मंजिला घर में चूंकि जगह बहुत थी तो जब बंटवारे का शोरगुल बढ़ने लगा तब आसपास के करीब 100 घरों के हिन्दू हमारे घर आ गए। महिलाओं और बच्चों को छत पर चढ़ा दिया गया।
नौजवान लोग नीचे के तलों पर रहे। शाम होते ही अल्लाह-हो-अकबर के नारे लगाते मजहबी उन्मादी हमारे घर को घेर लेते थे। तब हम छत से पतीलों में गर्म किया पानी, उन पर फेंकते जिससे उन्मादी भाग खड़े होते। जैसे-तैसे हमने कुछ दिन खुद को उन उन्मादियों से बचाए रखा। नवांशहर के सभी हिन्दू मुल्तान के उस किले में इकट्ठे हो गए। वहां सबका पंजीकरण हुआ। फिर खुली, बिना शौचालय वाली मालगाड़ियों से ही हिन्दुओं को भारत भेजा जाने लगा। खाने को कुछ पास नहीं था। रास्ते में एक जगह गाड़ी रुकी तो हमारे डिब्बे से एक आदमी लघुशंका करने को उतरा।
मैं डिब्बे की एक दरार से बाहर उसकी तरफ देख रहा था। तभी तलवार लिए दो—तीन मुसलमान आए और मेरी आंखों के सामने उसकी गर्दन उतार दी। मालगाड़ी के चालकों ने शुरू में ही मुल्तान स्टेशन से गाड़ी आगे बढ़ाने को मना कर दिया, तब रा.स्व.संघ के स्वयंसेवकों ने आगे आकर कहा, हम चलाएंगे गाड़ी। इतना ही नहीं, रास्ते भर संघ स्वयंसेवकों ने हमें सुरक्षा प्रदान की।
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