ओमप्रकाश त्रेहन
मुजफ्फराबाद, पीओजेके
वह तारीख थी 22 अक्तूबर और वर्ष था 1947। नवरात्र की अष्टमी थी और उस दिन हिंदुओं के घरों में कन्या-पूजन हो रहा था। एक घर में पूजा होने के बाद कन्याएं दूसरे घर जाने के लिए निकलीं ही थीं कि हल्ला मचा-भागो, भागो कबाइली आ रहे हैं!
हल्ला मचाने वाला एक ट्रक चालक था। मेरा गांव चिनारी मुजफ्फराबाद से 51 किलोमीटर और श्रीनगर से 125 किलोमीटर की दूरी पर है। गांव के पास ही राजमार्ग के किनारे एक ढाबा जैसा था, जहां ट्रक चालक आराम करते रहते थे।
उस वक्त एक चालक वहां बैठा था, तभी रावलपिंडी की ओर से आने वाले एक ट्रक चालक ने उसे बताया कि रास्ते में कबाइली हैं और वे चिनारी के हिंदुओं पर हमला करने की योजना बना रहे हैं। चालक पूरी बात समझ गया और हमारे गांव आ गया। उसने हिंदुओं से कहा कि वक्त बहुत ही कम है, जैसे हो, वैसे ही ट्रक पर चढ़ो और यहां से भागो।
गांव में हिंदुओं के केवल 16 घर थे, बाकी मुसलमान। हिंदुओं के सभी घर एक ही जगह थे। इसलिए तुरंत सब तक सूचना पहुंच गई और उस समय जो लोग वहां थे, आधे घंटे के अंदर इकट्ठे भी हो गए। पर कुछ लोग छूट गए।
जल्दबाजी में जो जितना सामान ले सका, लिया और ट्रक में बैठ गए। दुर्भाग्य से ट्रक में डीजल बहुत कम था। चालक ने हमसे मिट्टी का तेल मांगा और टंकी में डाल दिया। ट्रक श्रीनगर की ओर बढ़ा, पर करीब 10 किमी बाद ही डीजल खत्म हो गया। इसके बाद हम पैदल ही आगे बढ़ने लगे। क
रीब 30-35 घंटे पैदल चलने के बाद हम श्रीनगर पहुंचे। रास्ते में पता चला कि हमारे घर लूट लिए गए। जो हिंदू रह गए थे, उन्हें मार दिया गया। श्रीनगर से हम लोग जम्मू और फिर दिल्ली पहुंचे। मैं उस समय दो साल का था। ये बातें मां ने मुझे बतार्इं।
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