वजीत चंद्र भाटिया
नवाबपुर, मुल्तान, पाकिस्तान
मेरा घर मुल्तान के नवाबपुर में था। उस समय मुल्तान में 6 तहसीलें थीं। 1947 की बात है। मैं एक हकीम के क्लीनिक पर काम करता था। एक दिन शाम को पता चला कि मुसलमान कुल्हाड़ियां, चाकू-छुरी और तलवारें मंगवा रहे हैं। उनकी योजना इलाके के हिंदुओं को मार डालने की थी। मुल्तान में एक लाहौरी दरवाजा था, मुसलमानों ने उसमें आग लगा दी।
हमारे गांव में 300 घर थे। एक दिन मुसलमानों ने रात को ही गांव पर हमला कर दिया। आसपास के केवल एक-दो मुसलमान ही बचाने वाले थे, बाकी सब के सब मारने वाले थे। हम सब घर के दरवाजे बंद कर छत पर चले गए। मुसलमानों के हमले होते तो अक्सर हम यही किया करते। साथ ही, अपने बचाव के लिए डिब्बों में मिर्ची पाउडर भरकर रखते थे।
इस तरह हमने दहशत भरे दो दिन जैसे-तैसे काटे। तीसरे दिन हमें बचाने वाले मुसलमानों ने कहा कि यहां से जितनी जल्दी हो सके चले जाओ, नहीं तो दंगाई मार डालेंगे। हिंदुओं ने ट्रक का इंतजाम किया और फटाफट बिना कुछ लिए उसमें सवार हो गए। रास्ते में पानी तक नहीं मिलता था।
हमारे पास मश्क में जो पानी था, उसी से बूंद-बूंद पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते थे। दो दिन तक हम बिना खाए-पिए यात्रा करते रहे। ट्रेन कहीं रुकती थी हम दौड़कर पानी लेने के लिए भागते थे, पर मुसलमान हमारे बर्तन फेंक देते थे और मार-पीट करते थे।
जब ट्रेन पटियाला पहुंची तो मुसलमानों ने महिलाओंं-बेटियों को ट्रेन से उतार लिया। मुसलमानों ने महिलाओं की आबरू लूटी, उन पर अत्याचार किए। जबकि भारत के हिंदुओं ने उन्हें सकुशल जाने दिया।
टिप्पणियाँ