झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 35 किलोमीटर दूर है खूंटी। छोटा-सा यह शहर खूंटी जिले का मुख्यालय भी है। खूंटी से बाहर निकलते ही आपको पता चल जाएगा कि यह जिला कितना पिछड़ा हुआ है। दूर-दूर में बसे गांवों के अधिकतर मकान मिट्टी के हैं। हां, सरकारी योजनाओं से जरूर कुछ पक्के मकान बने हैं। पथरीली जमीन है। खेती पूरी तरह बरसात पर निर्भर है। जिस वर्ष अच्छी बारिश हो जाती है, तो किसान के अांगन तक कुछ अनाज पहुंच जाता है। नहीं तो ठन-ठन गोपाल!
इस स्थिति का पूरा लाभ राष्ट्र-विरोधी तत्व उठा रहे हैं। नक्सली, जिहादी और चर्च से जुड़े लोग युवाओं को भटका कर गलत काम की ओर ले जा रहे हैं। यही कारण है कि यह जिला आज भी नक्सल प्रभावित है। चर्च के लोग लोभ-लालच से हिंदुओं का कन्वर्जन कर रहे हैं और जिहादी तत्व अपनी गतिविधियां बढ़ा रहे हैं। ये तत्व अपने सारे कार्य के लिए के लिए पैसे का इंतजाम खूंटी जिले से ही करते हैं। ये लोग खूंटी जिले के अनेक हिस्सों में अफीम की खेती करते हैं। खेती करने से लेकर खेप चहुंचाने तक का काम स्थानीय युवा करते हैं। हालत यह है कि खूंटी जिले के हजारों युवा नशे के आदी हो चुके हैं। ऐसे युवा राष्ट्र-विरोधी तत्वों के इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। इस कारण इस जिले में अनेक प्रकार की नई-नई समस्याएं पैदा हो रही हैं। इन समस्याओं को लेकर जिले के अनेक बुद्धिजीवी, सरकारी अधिकारी और यहां तक कि न्यायाधीश भी चिन्तित हैं।
हाल ही में खूंटी के प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सत्यप्रकाश त्रिपाठी ने भी इस समस्या पर चिन्ता व्यक्त की है। उन्होंने जो कहा है उसका अर्थ यह निकलता है कि भगवान बिरसा मुंडा की इस धरती को जहरीला बनाने का प्रयास हो रहा है। उन्होंने कहा है कि जिले में नशे का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। उनका मानना है कि पहले अफीम की ऽेती बंद की जाए और युवाओं को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़कर रोजगार दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा है कि नाबालिग हो या बालिग जल्दी पैसा कमाने के चक्कर में नशे के कारोबार से जुड़ रहे हैं। जिले में अफीम के साथ-साथ मानव तस्करी भी चरम पर है।
वहीं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ- निर्मल सिंह कहते हैं कि अब तो यहां से अफीम की खेप बांग्लादेश और अफगानिस्तान तक जाने लगी है। उन्होंने यह भी बताया कि पत्थलगड़ी करने वाले हों या या अन्य भारत विरोधी तत्व सभी को इसी अफीम की खेती से पैसा मिल रहा है। उन्होंने बताया कि 5.34 लाख आबादी वाले खूंटी जिले में औसतन 30 आदमी पर पेट्रोल या डीजल वाला एक वाहन है। हर गांव में 5-10 मोटरसाइकिल है। अगर एक वाहन में प्रतिदिन 100 रु का तेल जलता होगा तो इसकी कीमत 3,500000 रु होगी। यानी एक महीने में खूंटी जैसे गरीब और पिछड़े जिले में 9 करोड़ रु का इंर्धन फूंका जाता है। इतना पैसा कहां से आता है!
उनका इशारा है कि यह सब अफीम की खेती और उसकी तस्करी का कमाल है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि खूंटी के ज्यादातर लोग श्रम करने वाले हैं। अपनी मेहनत से रोजी-रोटी कमा रहे हैं, लेकिन कुछ लोग गलत धंधे में हैं और दुर्भाग्य से यह धंधा फल-फूल भी रहा है।
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