वीरभान खेरा
गदाई, डेरा गाजीखान, पाकिस्तान
अन्य हिंदुओं की तरह हमारा परिवार भी पाकिस्तान से जान बचाकर भारत आया था। हम पंजाब प्रांत के डेरा गाजीखान जिले के गदाई गांव में रहते थे। विभाजन के समय चारों ओर से यही सुनने को मिलने लगा कि मुसलमानों ने मार-काट शुरू कर दी है। गदाई से कोई हिंदू कहीं जाता तो मुसलमान उसकी हत्या कर देते थे।
एक दिन हमें गांव छोड़ने का आदेश दिया गया। हमें गांव से दो मील दूर डेरा गाजी खान जाना था। हमारे पास गदहा था। पिताजी गदहे पर सामान लाद कर गांवों में बेचने जाते थे। हम बच्चों को गदहे पर बैठा दिया और माता-पिता पीछे-पीछे पैदल चल पड़े। हम डेरा गाजीखान पहुंचे। एक रात वहीं रुके। दूसरे दिन सेना के ट्रक में बैठा दिया गया।
सारा सामान वहीं रह गया। डेरा गाजीखान में ही हमें पता चला कि मुसलमानों ने हमारे मौसा की हत्या कर दी। बहरहाल, हम सेना के ट्रक से दरिया सिंध के किनारे पहुंचे तो युवकों को नीचे उतार दिया गया। गाड़ियों में केवल बच्चे और महिलाएं बैठी रहीं।
दरिया बांध दो मील लंबा था। बांध खत्म होने के बाद हमें फिर से ट्रकों में बैठाया गया। हम मुजफ्फरगढ़ पहुंचे। यहां विभिन्न इलाकों से हिंदू शिविरों इकट्ठे हो रहे थे। कुछ दिन हम वहीं रहे। उस वक्त को याद करके आज भी सिहरन होती है। हमने जो समय देखा है, भगवान किसी दुश्मन को भी वह समय न दिखाए।
हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। रविवार को मैं दिल्ली में कुतुबमीनार के पास रेहड़ी-पटरी वाले के पास काम करता था व जूठे बर्तन मांजता था। पूरे दिन काम करने की एवज में दो आने मजदूरी मिलती थी। मेरे लिए वो सबसे बुरे दिन थे।
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