उद्धव वरियानी
तंडू अल्लाह यार खां, सिंध, पाकिस्तान
विभाजन के समय मैं 11 साल का था और छठी कक्षा में पढ़ता था। हम सिंध के तंडू अल्लाह यार खां में रहते थे। हालांकि मेरा जन्म नसरपुर गांव में हुआ था, जो झूलेलाल का जन्म स्थान है। शुरुआती पढ़ाई नसरपुर में ही हुई। तंडू अल्लाह यार खां में दोनों समुदायों की आबादी लगभग 20-20 लाख की थी। हिंदुओं और मुसलमानों के मुहल्ले अलग-अलग थे।
मुझे याद है, 14 अगस्त 1947 को जब पाकिस्तान अलग हुआ था, उस दिन स्कूल में मिठाई बांटी गई थी। तब तक वहां का माहौल शांत था। पाकिस्तान बनने के 3 महीने बाद बड़े भाई हमें लेकर भारत आए, क्योंकि तब हालात बिगड़ने लगे थे। पाकिस्तान में हमारी दुकान थी और एक भाई वहीं थे।
पाकिस्तान बनने के 3 महीने बाद बड़े भाई हमें लेकर भारत आए। चूंकि वहां दुकान थी और एक भाई वहीं थे। इसलिए बड़े भाई लौट गए, पर लेकिन कुछ दिन बाद ही दोनों भाई दुकान बेचकर अजमेर आ गए। हम तंडू अल्लाह यार खां से सारा सामान लेकर रेलवे स्टेशन आए थे, लेकिन जिस ट्रेन से हमें जाना था, वह आई ही नहीं। इसलिए सामान के साथ हम स्टेशन पर ही पड़े रहे।
ट्रेन दूसरे दिन आई, लेकिन हमें सामान ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। इसलिए भारी सामान वहीं छोड़कर केवल कपड़े और खाने-पीने का सामान लेकर ट्रेन में चढ़े। ट्रेन में बैठते ही सारी खिड़कियां व दरवाजे बंद करा दिए गए।
फौज के जवानों के सख्त निर्देश थे कि रास्ते में कहीं भी दरवाजे-खिड़कियां न खोलें। जब तक हम भारत की सीमा में प्रवेश नहीं कर गए, भय का माहौल बना रहा। पता चला कि ट्रेन भारत में प्रवेश कर गई है, तब जाकर हमने खिड़कियां खोलीं।
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