भगत राम भसीन
गांव-जंड, जिला-कैमलपुर
उन दिनों हमारे गांव में बराबर शोर मचता था कि आज पठान आ रहे हैं और वे हिंदुओं को मार देंगे, उनके घरों को लूट लेंगे। इस कारण गांव के हिंदू दहशत में रहने लगे थे। कुछ दिन दहशत में ही गुजरे। फिर गांव के सभी हिंदुओं ने भारत जाने का फैसला लिया। सभी साथ निकले और एक रेलवे स्टेशन (नाम याद नहीं) पर पहुंचे। वहां से ट्रेन से अमृतसर आ गए।
रास्ते में रा. स्व. संघ के स्वयंसेवकों ने बड़ी मदद की। अमृतसर से अंबाला, फिर अंबाला से जिला लखीमपुर खीरी के एक गांव में पहुंचे। हमारे गांव के सभी लोगों को उसी गांव में रहने के लिए जगह और खेती के लिए जमीन मिली।
विभाजन के समय चौथी कक्षा में पढ़ता था। आज भी हम अपने गांव को नहीं भूल पाते। जब मैं केवल दो-ढाई साल का था, तभी पिताजी संन्यासी बन गए थे। बड़ा परिवार था। मेरे और मेरे सबसे बड़े भाई की उम्र में बहुत फर्क था।
मेरे बड़े भाई बैंक में नौकरी करते थे और उन्हें 10 रु. मासिक वेतन मिलता था। उन्हीं के पैसे से परिवार चलता था। हालांकि खेत और खेती भी थी। एक बड़ा बगीचा भी था। उससे भी कुछ आमदनी हो जाती थी। यानी हमारे परिवार के पास गुजारा करने के लिए सारे साधन थे। पूरा परिवार खुशहाल था।
इसी बीच जब पता चला कि अब घर-द्वार और खेत-खलिहान छोड़कर एक अनिश्चित भविष्य की ओर जाना है, तब बहुत ही बुरा लगा। मैं बहुत छोटा था। मगर उस विभाजन के बारे में कह सकता हूं इसने हजारों-लाखों परिवारों की जिंदगी पटरी से उतार दी।
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