रामलाल
कोटली, पाकिस्तान
बात 1946 की है। मैं कोटली में रहता था और मेरी उम्र करीब 22 साल थी। उन दिनों उर्दू का अखबार ‘प्रताप’ में लेख छपते थे कि पुलिस विभाग में अधिकतर मुसलमान हैं। हिंदू युवाओं को भी पुलिस में भर्ती होना चाहिए। दिसंबर 1946 में पुलिस में भर्ती हो गया। प्रशिक्षण के लिए पहले मुल्तान गया और कुछ दिन बाद लाहौर। लाहौर में प्रशिक्षण लेते हुए कुछ ही दिन हुए थे कि एक रात मुस्लिम-हिंदू पुलिसकर्मियों में झगड़ा हो गया।
कुछ हिंदू पुलिसकर्मियों की पिटाई कर दी गई। चूंकि विभाग में मुसलमानों का ही दबदबा था, इसलिए मुसलमान अधिकारियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद सभी हिंदू पुलिसकर्मियों ने लाहौर में प्रशिक्षण लेने से मना कर दिया। साथ ही हिंदू पुलिसकर्मियों ने बड़े अधिकारियों से प्रशिक्षण के लिए अमृतसर भेजने का आग्रह किया। रायफल साथ रखने की इजाजत मांगी। पर उन्होंने साफ मना कर दिया। अंत में अधिकारियों ने सबको 15 दिन की छुट्टी दे दी। सभी अपने-अपने घर चले गए। मैं भी कोटली आ गया।
कुछ दिन बाद पास के रामपुर कस्बे में एक रात बलवा हो गया। मुसलमानों ने एक जगह आग लगा रखी थी और जो भी हिंदू मिलता था जिंदा या मरा, उसे आग में डाल देते थे। पुलिस हिंदुओं की सुनती ही नहीं थी। इस कारण हिंदू पलायन कर भारत आने लगे। मैंने भी घर के सारे लोगों को भारत भेज दिया। मुझे वर्दी लाहौर में वापस करनी थी इसलिए परिवार के साथ भारत नहीं आया। एक दिन मैं वर्दी लौटाने के लिए लाहौर पुलिस लाइन जा रहा था, तभी पुलिस लाइन का रसोइया मिला। उसने कहा कि अंदर बिल्कुल मत जाना। हिंदू पुलिसकर्मियों को मारा जा रहा है। इसके बाद मैं वर्दी लौटाए बिना वापस हो गया। ल्ल
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