जितेंद्र कुमार मल्होत्रा
गुजरांवाला,पाकिस्तान
पाकिस्तान में हमारे पिताजी और दादाजी का बहुत बड़ा कारोबार हुआ करता था। हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने बड़े उद्योगपति घराने से संबंध रखने वाले इस परिवार को जान बचाने के लिए अपना सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ जाएगा।
1947 में विभाजन के समय हुए कत्लेआम, आगजनी और लूटपाट को मैंने अपनी आंखों से देखा है। हफीजाबाद में मकान आपस में सटे हुए थे।
एक दिन मुसलमानों ने हमारे मकान के निचले हिस्से में आग लगा दी। परिवार के सभी लोग छत के रास्ते भाग कर दूसरे मकान में चले गए। वहां हम छत पर ही छिपे रहे।
बाद में हालात और बिगड़ते चले गए। दंगे के माहौल में ही हम शिविर में चले गए, लेकिन दादाजी और पिताजी फैक्ट्री में ही छूट गए। उन्मादी मुसलमानों ने फैक्ट्री में लूटपाट की और दोनों को बंदी बना लिया। फिरौती देकर उन्हें छुड़ाया गया। ल्ल
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