मनोहर लाल बुद्धिराजा
मांगनी, सरगोधा, पाकिस्तान
सरगोधा जिले का मांगनी गांव एक नहर के किनारे बसा हुआ है। वही मेरी जन्मभूमि है। मैं लगभग 10 साल का था, तभी गांव में उन्माद की गंध महसूस होने लगी। एक दिन मेरे घर वाले गांव से निकले और सरगोधा में बने शिविर में चले गए। कुछ दिन बाद ही हमें एक रेलगाड़ी में जानवरों की तरह ठूंस-ठूंस कर चढ़ाया गया।
लाहौर रेलवे स्टेशन पर गाड़ी खड़ी हुई तो वहां पास में ही बह रही नदी को देखकर लोग पानी लेने के लिए उतरने लगे। मैं भी एक बर्तन लेकर गया। वहां देखा कि पानी बिल्कुल लाल है। पता चला कि लाहौर में जितने हिंदू मारे जा रहे हैं, उन्हें इसी नदी में फेंका जा रहा है और उनके खून से पानी लाल हो गया है।
गाड़ी को उन्मादी मुसलमानों ने घेर रखा था, उनको हटाने के बाद गाड़ी चली। इसके बाद हम लोग अटारी पहुंचे। वहां लोग लस्सी लेकर खड़े थे। वहीं हम लोग तीन दिन सड़क पर पड़े रहे। फिर हम लोगों को कपूरथला भेज दिया गया। हमारी माताएं, बहनें और हम सभी मात्र तीन कपड़ों में भारत आए।
किसी के पास चप्पल-जूते भी नहीं थे। फिर हमें जालंधर और कुछ दिन बाद दिल्ली भेज दिया गया। यहां मालवीय नगर में रहने की जगह मिली। वहां कोई काम नहीं मिला तो मोतीनगर में 5 रुपए प्रतिमाह पर एक कमरा किराए पर लिया। उसी में माता-पिता के साथ रहे। घर का खर्च चलाने के लिए सिनेमा हॉल के बाहर पापड़ बेचे। इन सबके बीच मैं पढ़ाई भी करता रहा और 1954 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। फिर डीसीएम कंपनी में 55 रु प्रतिमाह पर नौकरी करने लगा। जब आर्थिक स्थिति कुछ ठीक हुई तो अपना ही कारोबार शुरू किया और आज उसी से गुजारा हो रहा है।
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