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विभाजन: खून के आंसू

विभाजन काल की परिस्थिति, साम्राज्यवादी शक्तियों के हित और राजनीतिक हसरतों की कहानी एक तरफ.. मगर उन लोगों से बात करना जिन पर यह आफत गुजरी, दिल दहलाने वाला है। झुर्रियों से अटे चेहरे, धुंधलाती आखें और उस घटनाक्रम को याद कर रुंध जाने वाले गले... बुजुर्गों का अचानक फफककर रो पड़ना दबाए गए इतिहास का बांध टूट जाने जैसा है

by WEB DESK
Aug 16, 2022, 03:00 pm IST
in भारत
चंद्रकला कपूर

चंद्रकला कपूर

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विभाजन काल की परिस्थिति, साम्राज्यवादी शक्तियों के हित और राजनीतिक हसरतों की कहानी एक तरफ.. मगर उन लोगों से बात करना जिन पर यह आफत गुजरी, दिल दहलाने वाला है। झुर्रियों से अटे चेहरे, धुंधलाती आखें और उस घटनाक्रम को याद कर रुंध जाने वाले गले… बुजुर्गों का अचानक फफककर रो पड़ना दबाए गए इतिहास का बांध टूट जाने जैसा है।
यह हिंदू नरसंहार का वह भीषण मामला है जिसकी दुनिया में कभी चर्चा तक नहीं होती। पाञ्चजन्य ने इसी पीड़ा को समाज के सामने लाने की ठानी है। हमारे संवाददाता दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों, गांवों में महीनों से भटक रहे हैं, गलियों की खाक छान रहे हैं, तब जाकर उन लोगों तक पहुुंच पा रहे हैं, जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भारत आए। बचपन में बंटवारे को अपनी आंखों से देखने वालों के बयान थर्राहट से भर देने वाले हैं। इनकी आपबीती किसी को भी रुला देती है। आज ये सभी 75-100 वर्ष के हैं, लेकिन इतने दिन बाद भी उनके मन में अपनी मिट्टी छोड़ने की कसक है। मुस्लिम गुंडागर्दी के सामने बेबस रह जाने की फांस है। अपनी मां,बहन बेटियों के साथ बलात्कारों को देखने, उनके कुंओं में छलांगें लगाने या जिहादियों द्वारा झपट लिए जाने की पहाड़ जैसी पीड़ा है।

ये दर्दनाक कहानियां लंबी और त्रासद हैं, जिन्हें हमने अपने यूट्यूब चैनल @panchjanya पर अपलोड किया है। इस विशेषांक में ऐसे ही लोगों के दर्द और संघर्ष की कहानियों को बहुत संक्षेप में उड़ेला गया है। यदि आपके आसपास भी विभाजन से पीड़ित लोग हों, तो हमें उनका वीडियो बनाकर vkv.panchjanya@gmail.com पर भेज सकते हैं। 3

इस अंक के लिए अरुण कुमार सिंह, अश्वनी मिश्र, दिनेश मानसेरा,राजेश प्रभु सालगांवकर और राज चावला ने भुक्तभोगियों से बातचीत की, तो शशिमोहन रावत, मंगल सिंह नेगी, जनार्दन सिन्हा और राजपाल रावत ने कंपोजिंग और साज-सज्जा में सहयोग दिया। शरतचंद्र बारीक वीडियोग्राफी में मदद कर रहे हैं।


चंद्रकला कपूर

हजारा, पेशावर

सब कुछ लूट लिया

एक शाम की बात है। मुझे छोड़कर घर के सभी लोग गुरुद्वारे गए हुए थे। अचानक मोहल्ले में धुआं उठने लगा और शोर मचा कि दुकानों में आग लगाई गई है। इसी बीच हमारे परिवार के सभी लोग गुरुद्वारे से घर आ गए। कहने लगे कि सामान बांधो। सुबह यहां से निकलना ही पड़ेगा। यहां रहना खतरे से खाली नहीं है। सब सामान बांध ही रहे थे कि मुसलमानों का झुंड आया और लूटपाट करने लगा। फिर हिंदू और सिखों को चुन-चुन कर मारा जाने लगा। वह रात बहुत ही भयावह थी। एक-एक पल काटना भारी पड़ रहा था।

मोहल्ले के लोग कई दिनों तक डर के माहौल में रहे, फिर घर-बार छोड़कर रावलपिंडी पहुंचे। कुछ दिन यहां रहने के बाद हम दूसरी जगह चलते बने। और दुख सहते धीरे-धीरे जालंधर आ पाए। जब भी गांव का मंजर याद करते हैं तो दिल दहल उठता है। घर के साथ जीवन भर की सारी कमाई छोड़कर खाली हाथ पाकिस्तान से भारत आए। बहुत मेहनत करके सब खड़ा किया था। वह दर्द आज भी मन को सालता है।

बंटवारे के समय मेरी शादी हो चुकी थी। उस समय हमारी दो लड़की और एक लड़का था। मेरा बड़ा और संपन्न परिवार था, लेकिन बंटवारे ने हम सबको दूर कर दिया। कई साल तक एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे। हर तरीके से संकट था। कई बार जीवन बोझिल लगने लगता था।

आज जब उन दिनों को याद करती हूं तो दिल भारी हो जाता है। हिन्दू और सिख समाज ने बड़ी पीड़ा झेली उस समय। पता नहीं कितनों को मार दिया, काट दिया। कोई हमारी सुनने वाला नहीं था।

Topics: सब कुछ लूट लियाहिंदू नरसंहारहिन्दू और सिख समाज
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