विदेश मंत्रालय ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सैन्य कमांडर अब्दुल रऊफ असगर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध लगाने के मामले में चीन की अड़ंगेबाजी की आलोचना की है। भारत ने कहा है कि वे इन आतंकवादियों को न्याय के कटघरे में लाने की मुहिम जारी रखेगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने शुक्रवार को साप्ताहिक पत्रकारवार्ता में कहा कि अजगर पर प्रतिबंध लगाने के मामले को तकनीकी आधार बनाकर टाला जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई में विश्व समुदाय एक स्वर में बोलना चाहिए और वह इस मामले में ऐसा करने में असमर्थ रहा है।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 15 सदस्यीय समिति में असगर पर प्रतिबंध पर चर्चा के दौरान चीन ने अपना मत रखने से पहले विचार के लिए समय मांगा था। चीन के इस रवैये के कारण सर्वसम्मति से होने वाली प्रक्रिया में भारत और अमेरिका की ओर लाए गए प्रस्ताव पर निर्णय टल गया था।
रऊफ असगर जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर का भाई है। जैश संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित संगठन है। असगर 1998 में भारतीय एयरलाइंस आईसी 814 के अपहरण, 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकवादी हमले, 2014 में कठुआ में भारतीय सेना के शिविर और 2016 में पठानकोट में वायुसेना के बेस पर हुए आतंकी हमले में सक्रिय रूप से शामिल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने गत 9 अगस्त को इस मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में हुई खुली चर्चा में कहा था कि आतंकियों से निपटने में दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए। बिना कोई औचित्य बताए होल्ड और ब्लॉक करने की प्रथा समाप्त होनी चाहिए। यह अत्यंत खेदजनक है कि दुनिया के कुछ सबसे कुख्यात आतंकवादियों से संबंधित वास्तविक और साक्ष्य आधारित प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। दोहरे मानकों और निरंतर राजनीतिकरण ने प्रतिबंध व्यवस्था की विश्वसनीयता को अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया है।
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