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सूफियों की शांति की पहल

ऑल इंडिया सज्जादनशीं सूफी काउंसिल ने दिल्ली में एक अंतरआस्था संवाद का आयोजन किया जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल शामिल हुए। इस संवाद में पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने पर सहमति बनी। डोवाल ने कहा कि सूफी एवं उदारवादी मुसलमानों को कट्टरपंथ के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए

by आशीष कुमार अंशु
Aug 9, 2022, 08:21 am IST
in भारत, दिल्ली
नई दिल्ली में कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में आयोजित सांप्रदायिक सौहार्द्र पर अंतरआस्था सम्मेलन के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को संबोधित करते ऑल इंडिया सूफी सज्जादनशीं काउंसिल के अध्यक्ष सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती।

नई दिल्ली में कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में आयोजित सांप्रदायिक सौहार्द्र पर अंतरआस्था सम्मेलन के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को संबोधित करते ऑल इंडिया सूफी सज्जादनशीं काउंसिल के अध्यक्ष सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती।

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दिल्ली स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में एक अंतरआस्था संवाद में जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल शामिल हुए तो देश भर में यह संदेश गया कि अब पीएफआई पर लगने वाले प्रतिबंध के कयास पर यहां अंतिम मुहर लग गई है। अंतरआस्था संवाद में प्रतिबंध पर आम सहमति भी बन गई थी। प्रतिबंध के रास्ते में कुल मिलाकर बाधा या संकट जैसी कोई बात नहीं थी

30 जुलाई को दिल्ली स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में एक अंतरआस्था संवाद में जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल शामिल हुए तो देश भर में यह संदेश गया कि अब पीएफआई पर लगने वाले प्रतिबंध के कयास पर यहां अंतिम मुहर लग गई है। अंतरआस्था संवाद में प्रतिबंध पर आम सहमति भी बन गई थी। प्रतिबंध के रास्ते में कुल मिलाकर बाधा या संकट जैसी कोई बात नहीं थी। प्रतिबंध की बात पर आने से पहले थोड़ा इस आयोजन और आयोजकों से परिचय करते हैं। इस अंतरआस्था संवाद का आयोजन अजमेर की संस्था ऑल इंडिया सज्जादनशीं सूफी काउंसिल ने किया था।

संस्था की तरफ से दिए गए निमंत्रण पत्र में साफ लिखा था कि कार्यक्रम में विभिन्न धर्मों-मजहबों के प्रमुख, सूफी और संत मौजूद रहेंगे। इन सबकी उपस्थिति में देश में शांति, एकता और सद्भाव के लिए एक संकल्प पारित किया जाएगा। 30 जुलाई के कार्यक्रम के लिए जैसा लिखा गया था, उसके अनुरूप ही हुआ। आयोजन में वैसे तो कई सम्मानित वक्ता बुलाए गए थे लेकिन हर आदमी की निगाह दो लोगों के वक्तव्यों पर टिकी थी। एक इस कार्यक्रम के आयोजक अखिल भारतीय सूफी सज्जादनशीं परिषद के अध्यक्ष सैयद नसरुद्दीन चिश्ती और दूसरे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल।

अजीत डोवाल की कार्यक्रम में उपस्थिति को पीएफआई को देश से खत्म करने की दिशा में केन्द्र सरकार की पहल के रूप में देखा जा रहा था। उन्होंने काउंसिल के मंच से कहा कि ‘‘देश तेज रफ्तार से तरक्की कर रहा है। इसका जो लाभ होगा, वह हर मजहब और हर धर्म, हर हिन्दुस्तानी को मिलेगा। लेकिन ऐसे समय में कई ताकतें नकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश कर रहीं हैं, जिससे इस देश की तरक्की में बाधा आती है। चंद लोग जो मजहब के नाम पर, विचारधारा के नाम पर हिंसा करने का, समाज में वैमनस्यता फैलाने का, समाज के बीच अंतर विरोध पैदा करने की कोशिश करते हैं, उसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है। इसका असर देश पर भी होता है और देश के बाहर भी होता है।’’

उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए आगे बताया कि इसकी बड़ी वजह है कि इस देश में उदारवादी अपना विरोध प्रकट नहीं करते। उनका संकेत इस्लाम के अंदर सूफी मत को मानने वाले मुसलमानों की तरफ था। जब कट्टरपंथी मुसलमान अपनी आवाज बुलंद कर रहे होते हैं तो ऐसे समय में जो मुसलमान खुद को सूफी और उदारवादी कहते हैं, उन्हें अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए लेकिन वे खामोश ही रहते हैं।अजीत डोवाल ने अपने भाषण में इस बात का भी उल्लेख किया कि आज हम यह लड़ाई अपने लिए कम लड़ रहे हैं और आने वाली नस्लों के लिए अधिक लड़ रहे हैं। हम उनको कैसा हिन्दुस्तान देकर जाएंगे।

पीएफआई पर पाबंदी के पक्ष में सूफी
परिषद के अध्यक्ष सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने अपने बयान में अजीत डोवाल से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि अंतरआस्था संवाद के इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश में सांप्रदायिक तत्वों के सामने ढाल बनना है। हम कट्टरपंथी विचारधारा के खिलाफ हैं। चंद कट्टरपंथी लोग इस्लाम के नाम पर या किसी विचारधारा के नाम पर विवाद खड़ा करते हैं, उसका असर पूरे देश पर पड़ता है। हम लोग ऐसी ताकतों के खिलाफ हैं।

कार्यक्रम में आम सहमति से यह निर्णय हुआ कि पीएफआई जैसे देश विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठन, देश में असहिष्णुता पैदा कर रहे हैं, समाज में विवाद हो, ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं। ऐसे संगठनों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और उन पर देश के कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए

सैयद चिश्ती ने देश भर में हो रही एक घटना के बाद दूसरी घटना और उसके बाद घटना की निंदा करने की औपचारिकता की तरफ संकेत करते हुए कहा कि जब भी कोई घटना होती है, हम उसकी निन्दा करते हैं। जबकि कट्टरपंथी संगठनों पर लगाम लगाने और उन्हें प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है। चाहे वह कोई भी कट्टरपंथी संगठन हो, यदि एजेन्सियों के पास उनके खिलाफ सबूत हैं तो उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

कार्यक्रम में आम सहमति से यह निर्णय हुआ कि पीएफआई जैसे देश विरोधी गतिविधियों में शामिल संगठन, देश में असहिष्णुता पैदा कर रहे हैं, समाज में विवाद हो, ऐसा माहौल तैयार कर रहे हैं। ऐसे संगठनों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और उन पर देश के कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए।
इस्लामिक स्कॉलर और कार्यक्रम में मौजूद इस्लाम के महत्वपूर्ण लोगों ने इस बात पर अपनी सहमति जताई। वहां सर्वसम्मति से पीएफआई पर प्रतिबंध का संकल्प पारित हुआ।

इस संवाद के समापन के बाद मीडिया में पीएफआई पर प्रतिबंध के कयास लगाए जा रहे थे। कुछ लोगों ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवाल का मास्टर स्ट्रोक भी लिखा। जिस सूफी काउंसिल के कार्यक्रमों में सरकार के मंत्री आते थे, पहली बार कोई सुरक्षा सलाहकार उसमें शामिल हुआ। फिर कुछ ऐतिहासिक होना ही था। एक सुखद अंत के साथ सिमी की तरह पीएफआई की कहानी का अंत लिख दिया गया। लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी।

नदवी ने बदला रुख
इस कहानी का एंटी क्लाइमेक्स लिखा सलमान नदवी ने। सलमान अचानक पीएफआई के पक्ष में खड़े हो गए हैं। पीएफआई के खिलाफ संवाद में संकल्प सबकी सहमति से पारित हुआ। उससे अब नदवी किनारा करते नजर आ रहे हैं।

उर्दू, अरबी और फारसी भाषा के जानकार प्रख्यात प्रोफसर सलमान नदवी 2014 में तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने आईएसआईएस के चीफ अबु बकर अल बगदादी की प्रशंसा में पत्र लिखा। नदवी बार-बार खुद को उदारवादी दिखाने की कोशिश करते हैं और रह-रह कर तालिबान के प्रति अपनी मुहब्बत भी छुपा नहीं पाते। ऐसा कट्टरपंथी रुझानों वाला मुसलमान पीएफआई जैसे चरमपंथी विचारधारा वाले संगठन पर प्रतिबंध की बात पर सहमत हुआ, इस पर विश्वास करना मुश्किल था लेकिन अब स्पष्ट कि सलमान नदवी जैसे विद्वानों का कट्टरपंथ और उदारवादी चेहरा आड-इवेन के नियम की पालना करता है। मतलब एक दिन उदारवादी और एक दिन कट्टरपंथी।

सलमान नदवी ने एक वीडियो जारी करके कहा है कि उन्होंने जिस कार्यक्रम में शिरकत की, उन्हें नहीं पता कि वहां पीएफआई पर प्रतिबंध की कोई बात हुई। ना उन्हें यह समझ आया कि वहां ऐसा कोई प्रस्ताव लाया गया। ना उन्होंने किसी पेपर परं हस्ताक्षर किए हैं। नदवी ने पीएफआई की तुलना आरएसएस और बजरंग दल से की है। नदवी का कहना है कि किसी एक व्यक्ति के अपराध की सजा पूरे संगठन को नहीं दे सकते।

परंतु नदवी यह भूल जाते हैं कि वे जिस संवाद की बात कर रहे हैं, उसके आयोजक नसीरुद्दीन चिश्ती ने मंच से कहा था कि सर तन से जुदा स्लोगन एंटी इस्लामिक है। यह एक तालिबानी सोच है। इसके खिलाफ लड़ाई बंद कमरों की जगह खुले में आकर लड़नी होगी। उसी सम्मेलन में सलमान नदवी की मौजूदगी में पीएफआई पर प्रतिबंध की बात पर सबकी सहमति बनी थी। अब सलमान नदवी अपनी उपस्थिति में लिए गए संकल्प से मुकर रहे हैं।

इस्लाम के अंदर मौजूद उदारवादी फिरके क्या इस तरह इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ पाएंगे? जहां आईएसआईएस और तालिबान के प्रशंसक भाईचारा और शांति के संवाद के लिए बने प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व कर रहे चेहरों में शामिल हों। यह प्रश्न गंभीर है।

Topics: नसीरुद्दीन चिश्तीपीएफआई पर पाबंदीकॉन्स्टीट्यूशन क्लबराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवालसूफियों की शांति
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