उपराष्ट्रपति चुनाव में आज राज्यसभा के निर्वाचित और मनोनीत सदस्यों और लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों में से 725 सदस्यों ने वोट डाले। NDA के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को 725 मतों में से 528 मत हासिल हुए। जबकि विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 182 वोट मिले। लोकसभा महासचिव उत्पल के. सिंह ने इस बात की जानकारी दी।
उपराष्ट्रपति के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने अनुपस्थित रहने का निर्णय लिया था। लेकिन सांसद शिशिर अधिकारी और दिब्येंदु अधिकारी ने मतदान में हिस्सा लिया।
क्या सोनिया गांधी ने अल्वा को हारी हुई लड़ाई में झोंका
80 साल की मार्गरेट अल्वा चार बार राज्यसभा सदस्य रहीं, राजस्थान और उत्तराखंड समेत चार राज्यों की राज्यपाल रहीं, लोकसभा सदस्य रहीं, मंत्री रहीं। कांग्रेस ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की हारी हुई लड़ाई में झोंक दिया।
सोनिया गांधी पर तानाशाही का आरोप लगाया था
मार्गरेट अल्वा ने सोनिया गांधी पर पार्टी में तानाशाही का आरोप लगाया था। अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के दलाल क्रिश्चियन मिशेल के परिवार से नजदीकी का आरोप लगाया था। 2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अल्वा के बेटे को कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इस पर वह बहुत नाराज हुईं। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके बेटे की एकमात्र अयोग्यता यह थी कि वह उनका बेटा था। मार्गरेट ने खुलकर कहा कि विधानसभा चुनाव में टिकट बेचे गए हैं। पार्टी चुनाव हार गई। इसके बाद अल्वा को कांग्रेस महासचिव पद से बेदखल कर दिया गया।
अल्वा ने आत्मकथा क्रेज एंड कमिटमेंट में कई सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किए
दावा किया कि अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल और उसके पिता वोल्फगेंग मिशेल के साथ सोनिया गांधी के रिश्ते रहे हैं। यह घोटाला 2013-14 में सामने आया। देश के अति विशिष्ट (वीवीआईपी) लोगों के लिए 12 हेलीकॉप्टर की खरीद का यह सौदा 3600 करोड़ का था, जिसमें दस फीसद यानी 360 करोड़ रुपये की दलाली ली गई। इस घोटाले में बिचौलिये की भूमिका निभाने वाले क्रिश्चियन मिशेल को गिरफ्तार किया गया। 2019 में उसने प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में स्वीकार किया कि वह सोनिया गांधी को जानता है।
अल्वा ने मिशेल के पिता वोल्फगेंग को लपेटते हुए 1980 के टैंक घोटाले का भी उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि संजय गांधी ने तत्कालीन मंत्री सीपीएन सिंह के साथ मिलकर सेकेंड हैंड हथियार भारत को बेचने की कोशिश की। अल्वा का दावा है कि उन्होंने इस डील का विरोध किया था और इसी वजह से सीपीएन सिंह को रक्षा मंत्रालय से हटना पड़ा था।
राजीव गांधी को भी नहीं बख्शा। उन्होंने लिखा कि शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राजीव गांधी इस फैसले को पलटने के रास्ते तलाश रहे थे। अल्वा के मुताबिक उन्होंने राजीव गांधी को सलाह दी कि उन्हें मौलवियों के दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए। इस पर राजीव गांधी उन पर चिल्लाए और कहा कि तलाक लो, फिर मेरे पास वापस आओ। मैं तुम्हें बताऊंगा कि कहां जाना है। अल्वा ने लिखा कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि इस मुद्दे पर राजीव गांधी स्टैंड लेंगे, लेकिन वह कट्टरपंथियों के सामने झुक गए।
अल्वा ने आत्मकथा में यह भी लिखा कि व्यक्तिगत मतभेदों की वजह से सोनिया गांधी ने नरसिम्हा राव के देहांत के बाद उनके शव को अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस मुख्यालय में नहीं रखने दिया। तोपगाड़ी में सवार राव का शव कांग्रेस मुख्यालय लाया गया, लेकिन यहां उनके शव को अंदर लाने के लिए गेट तक नहीं खोला गया। राव के साथ मरणोपरांत जो व्यवहार हुआ, वह दुखद है. वह कांग्रेस अध्यक्ष थे और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें यथोचित सम्मान मिलना चाहिए था।
ममता बनर्जी ने मार्गरेट का समर्थन क्यों नहीं किया?
तृणमूल कांग्रेस ने वोटिंग से दूर रहने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि विपक्ष का उम्मीदवार तय करने से पहले एक बार भी कांग्रेस ने चर्चा नहीं की। लोकतंत्र की दुहाई देने वाली कांग्रेस पर उसके ही समर्थक बात न करने का आरोप लगा रहे हैं।
क्या भाजपा के हर निर्णय का विरोध करना ही लक्ष्य है
उपराष्ट्रपति के चुनाव में मारग्रेट अल्वा को उतार कर विपक्ष केवल इतना संदेश देना चाहता है कि वह सरकार, विशेषकर भाजपा के हर निर्णय का विरोध करेगा। संसद में राजग का बहुमत है। इसलिए धनखड़ की जीत पहले से ही सुनिश्चित मानी जा रही थी।
कौन हैं धनखड़
जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई, 1951 को गांव किठाना, जिला झुंझुनू (राजस्थान) में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई। जब वे कक्षा छठी में गए तो गांव से करीब पांच किलोमीटर दूर धरधाना के एक मध्य विद्यालय में उनका दाखिला करा दिया गया। गांव के अन्य छात्रों के साथ वे पैदल ही स्कूल जाते थे।
1962 में उन्होंने सैनिक स्कूल से मैट्रिक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज, जयपुर से भौतिकी में स्नातक किया। उसके बाद उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई करने के लिए दाखिला लिया और 1978-1979 में उन्हें एलएलबी की उपाधि मिली।
कुछ वर्ष उन्होंने वकालत की। इसके बाद उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया।
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