मोबाइल फोन पर समय को सीमित करने के लिए अनेक डॉक्टरों, मनोचिकित्सकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के सुझाव मौजूद हैं। उनमें से कुछ अवश्य ही उपयोगी महसूस होंगे।
किसी भी दूसरी लत की तरह मोबाइल फोन के इस्तेमाल की लत भी ऐसी है कि हम रोज सुबह उठकर सोचते हैं कि अब बस, इससे मुक्ति पानी है। लेकिन बात जब अपने इरादों पर अमल करने की आती है तो हम कुछ कर नहीं पाते। यह समस्या बड़ों में तो है ही, बच्चों में उनसे भी ज्यादा गंभीर हो गई है। नतीजतन कामकाज तो कामकाज, सामाजिकता और स्वास्थ्य पर भी गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। तो आखिर करें क्या?
मोबाइल फोन पर समय को सीमित करने के लिए अनेक डॉक्टरों, मनोचिकित्सकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के सुझाव मौजूद हैं। उनमें से कुछ अवश्य ही उपयोगी महसूस होंगे।
पहली बात। मोबाइल स्क्रीन पर लगाए जाने वाले समय को पहले से तय कर दें। बाकी समय मोबाइल का प्रयोग फोन कॉल करने और सुनने के लिए ही करें, स्क्रीन पर कुछ देखने के लिए नहीं, हो सके तो उसे भी सीमित कर दें। शुरुआत सुबह सोकर उठने तथा रात को सोने के समय को निर्धारित करने से की जाए।
आप जितनी देर जागेंगे, मोबाइल स्क्रीन के उपयोग की संभावना उतनी ही होगी। बेहतर हो कि जल्दी सोएं; रात अधिकतम 11 बजे तक, और संभव हो तो दस बजे तक। स्क्रीन के लिए सुबह एक घंटे, दोपहर में आधे घंटे और शाम को एक घंटे की अवधि तय कर दी जाए तो यह आपकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी। यानी कि कुल मिलाकर ढाई घंटे। कोशिश करें कि यह अवधि दो घंटे हो सके।
अपनी सामाजिकता के दायरे को बढ़ाएं। मित्रों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और सहकर्मियों के साथ ज्यादा समय बिताना शुरू करें। परिवार के सब लोग मिलकर साथ बैठें, शतरंज, ताश, कैरम, लूडो या ऐसा ही कोई खेल खेलें। नतीजे में मोबाइल का स्क्रीन टाइम घटेगा और रिश्ते गहरे होंगे।
एंड्रॉइड फोन पर ‘डिजिटल वेलबीइंग’ फीचर के माध्यम से हर एप्प पर खर्च किए जाने वाले समय को तय किया जा सकता है। (ऐसे करें- सेटिंग्स- डिजिटल वेलबीइंग एंड पेरेन्टल कंट्रोल्स) इस अवधि से आगे जाते ही एप्प का प्रयोग बंद हो जाता है। इस सेटिंग को बदला भी जा सकता है। आइफोन पर भी इससे मिलता-जुलता फीचर मौजूद है।
सोने जाते समय फोन को बिस्तर पर रखना बंद कर दें। वरना आप जिज्ञासावश किसी एप्प को खोल ही लेंगे और फिर सिलसिला बंद नहीं होगा। रात को कुछ देखने-पढ़ने की आदत है तो बेहतर होगा कि सोने से पहले कोई किताब पढ़ें। इससे नींद भी अच्छी आएगी।
अपनी सामाजिकता के दायरे को बढ़ाएं। मित्रों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और सहकर्मियों के साथ ज्यादा समय बिताना शुरू करें। परिवार के सब लोग मिलकर साथ बैठें, शतरंज, ताश, कैरम, लूडो या ऐसा ही कोई खेल खेलें। नतीजे में मोबाइल का स्क्रीन टाइम घटेगा और रिश्ते गहरे होंगे।
कुछ अध्ययनों का निष्कर्ष है कि मोबाइल स्क्रीन के रंग हमें लुभाते हैं और हम अनायास ही उसे खोल लेते हैं। क्यों न मोबाइल पर ऐसी थीम चुनें जो सीधी-सादी हों। ग्रेस्केल नाम के फीचर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं जो एंड्रॉइड फोन की सेटिंग्स में डिजिटल वेलबीइंग खंड में मिलता है (ऐसे करें: सेटिंग्स- डिजिटल वेलबीइंग एंड पेरेन्टल कंट्रोल्स- पेरेन्टल कंट्रोल्स- विंड डाउन- सेट ए शिड्यूल- टॉगल आन टु टर्न आन द कलर फिल्टर)। ग्रेस्केल मोबाइल की स्क्रीन को सिर्फ काले, सफेद और मटमैले रंगों तक सीमित कर देता है। तब स्क्रीन बार-बार आपका ध्यान नहीं खींचती।
एक रणनीति के तौर पर अपने शौक को समय देना शुरू करें, जैसे- चित्र बनाना, संगीत सीखना, किताबें पढ़ना, कोई वाद्य बजाना, नृत्य करना, फोटोग्राफी करना आदि। इसी तरह, सुबह-शाम के समय को खेलकूद, तैराकी और योग जैसी शारीरिक गतिविधियों के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। ऐसा करने के फायदे ही फायदे हैं।
क्या आपका फोन हमेशा आपकी आंखों के सामने रहता है? अगर ऐसा है तो न चाहते हुए भी आप उसे बीच-बीच में उठा ही लेंगे। क्यों न उसे अपनी आंखों से थोड़ा दूर रखें? जैसे अपने बैग में या फिर महिलाओं के मामले में उनके पर्स में। घर के किसी खास कमरे में सबके फोन रखने की एक जगह संभव हो, तो आजमाया जा सकता है। अंग्रेजी में कहावत है न कि आउट आफ साइट, आउट आॅफ माइंड (जो आँखों से दूर होता है वह हमें याद आना बंद हो जाता है)।
हर फोन में आने वाले नोटिफिकेशन यानी कि सूचनाओं को सीमित किया जा सकता है। ऐसे एप्स की नोटिफिकेशन बंद कर दीजिए जो बहुत ज्यादा जरूरी न हों या बार-बार तंग करते हों, जैसे कि व्हाट्सऐप्प, यूट्यूब और इन्स्टाग्राम। एंड्रोइड फोन में यह ऐसे करें (सेटिंग्स-नोटिफिकेशंस एंड स्टेटस बार- मैनेज नोटिफिकेशंस-एप्प नोटिफिकेशंस) आप चाहें तो ज्यादातर एप्प की नोटिफिकेशंस को चालू या बंद कर सकते हैं। अगर तय कर लें तो इन उपायों को अपनाना मुश्किल नहीं होगा।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में ‘निदेशक-स्थानीय भाषाएं
और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं।)
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