शराब बेचने का लाइसेंस हासिल करने वालों को टेंडर जारी होने के बाद भी बड़े पैमाने पर गैरवाजिब लाभ पहुंचाने का काम किया गया। इससे राजकोष को भारी नुकसान हुआ।
दिल्ली शराब में डूब रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सौजन्य से गली-नुक्कड़ों पर शराब की महासेल चल रही है। गली-गली लाउडस्पीकर पर प्रचार हो रहा है, कौन सी बोतल पर कितनी छूट है। केजरीवाल सरकार का यह शराब मोह असल में एक घोटाले से उपजा है। सिंडिकेट और शराब माफिया के इशारों पर नाचते हुए केजरीवाल सरकार ने दिल्ली आबकारी अधिनियम और दिल्ली आबकारी नियमावली की धज्जियां उड़ा दी हैं। शराब विक्रेताओं पर कुल 144 करोड़ रुपये लुटा दिए गए। उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की सिफारिश पर इस घोटाले की अब सीबीआई जांच होगी। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया पर तो इसकी सीधी आंच आ रही है, लेकिन बचेंगे केजरीवाल भी नहीं। क्योंकि इनमें से कुछ मसले कैबिनेट में तय हुए थे।
उपराज्यपाल की कार्रवाई
गत 8 जुलाई को दिल्ली के मुख्य सचिव ने उप राज्यपाल को रिपोर्ट भेजी। मुख्य सचिव द्वारा भेजी गई इस रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि पहली नजर में ही यह प्रतीत होता है कि नई आबकारी नीति को लागू करने में जीएनसीटी एक्ट-1991, ट्रांजेक्शन आफ बिजनेस रूल्स 1993, दिल्ली आबकारी अधिनियम 2009 और दिल्ली आबकारी नियमावली 2010 का उल्लंघन किया गया है। साथ ही टेंडर जारी होने के बाद 2021-22 में लाइसेंस हासिल करने वालों को कई तरह के गैरवाजिब लाभ पहुंचाने के लिए भी जान-बूझकर बड़े पैमाने पर तय नियमों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया है। आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं का सवाल था कि यह रिपोर्ट एलजी को क्यों भेजी गई। इस बारे में उप राज्यपाल कार्यालय का कहना है कि ट्रांजेक्शन आफ बिजनेस रूल्स 1993 के नियम संख्या 57 के तहत मुख्य सचिव ने यह रिपोर्ट उप राज्यपाल को भेजी है। इस नियम के तहत किसी भी राजकीय कार्य में नियमों का उल्लंघन या तय प्रक्रियाओं का पालन न होने की सूरत में मुख्य सचिव स्वयं उसका संज्ञान ले सकते हैं। साथ ही इसकी जानकारी उप राज्यपाल और मुख्यमंत्री को दे सकते हैं। मुख्य सचिव ने यह रिपोर्ट उप राज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री केजरीवाल को भी भेजी थी।
इस घोटाले के सामने आने के बाद का घटनाक्रम इशारा करता है कि आम आदमी पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। एक आशंका यह जाहिर की जा रही है कि जैसे अरविंद केजरीवाल ने अपने हर पुराने साथी को ठिकाने लगा दिया, उसी तरह मनीष सिसौदिया को भी अब किनारे लगाया जा रहा है। मनीष सिसौदिया भी दो दशक से केजरीवाल के साथ हैं और इतनी आसानी से हार नहीं मानते लगते।
क्या हैं आरोप
रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि शराब बेचने का लाइसेंस हासिल करने वालों को टेंडर जारी होने के बाद भी बड़े पैमाने पर गैरवाजिब लाभ पहुंचाने का काम किया गया। इससे राजकोष को भारी नुकसान हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक शराब ठेकेदारों की 144.36 करोड़ रुपये की लाइसेंस फीस बकाया थी जिसे माफ कर दिया गया। इस प्रकार 144.36 करोड़ रुपये का सीधा नुकसान पहुंचाया गया। रिपोर्ट में आबकारी विभाग का प्रभार देखने वाले उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया का सीधा नाम लिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक सिसौदिया ने कानूनी प्रावधानों और आबकारी नीति का उल्लंघन किया। साथ ही नई नीति को लागू करते हुए तय प्रक्रियाओं की भी धज्जियां उड़ाई गईं। इससे राजकोष को भारी नुकसान होने की आशंका है। यह रिपोर्ट साफ इशारा करती है कि दिल्ली सरकार ने नई आबकारी नीति के नाम पर बड़ा घोटाला किया है। इसी आशंका के चलते उप राज्यपाल ने इसकी सीबीआई से जांच की सिफारिश की है।
रिपोर्ट के मुताबिक शराब ठेकेदारों पर 144.36 करोड़ रुपये की लाइसेंस फीस बकाया थी जिसे माफ करके सरकार को सीधा नुकसान पहुंचाया गया। रिपोर्ट में आबकारी विभाग का प्रभार देखने वाले उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया का सीधे नाम लिया गया है। इसके मुताबिक सिसौदिया ने कानूनी प्रावधानों और आबकारी नीति का उल्लंघन किया
सिंगापुर जाने को इतने उतावले क्यों थे केजरीवाल!
सिंगापुर जाने की उतावली को लेकर भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का केंद्र सरकार से टकराव हो गया। अगस्त माह में सिंगापुर में वर्ल्ड सिटी समिट का आयोजन होने जा रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री का दावा था कि उन्हें इस सम्मेलन में शामिल होने का न्योता मिला था। उन्हें दुनिया के सामने दिल्ली मॉडल (कौन सा?) पेश करना था। पर उनकी विदेश यात्रा के इस मंसूबे पर उप राज्यपाल ने अडंÞगा लगा दिया। उन्होंने विदेश दौरे की ये फाइल रोक ली। केंद्र सरकार ने उनके इस दौरे को मंजूरी नहीं दी। जब हकीकत खुली तो सामने आया कि यह भी एक घोटाले से कम नहीं है। वर्ल्ड सिटी समिट असल में दुनिया भर के बड़े शहरों के मेयरों का सम्मेलन होता है। लोग पूछ रहे हैं कि मेयर सम्मेलन में मुख्यमंत्री का क्या काम। केजरीवाल का दूसरा दावा भी सम्मेलन मे शामिल होने के तय नियमों के विपरीत है। इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रतिभागी को रजिस्ट्रेशन कराना होता है। शामिल होने की इच्छा जाहिर करनी पड़ती है। शुल्क आदि के साथ पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी होती है, फिर प्रतिभाग की अनुमति मिलती है। सम्मेलन की ओर से किसी को इस तरह न्योता नहीं भेजा जाता। मुख्यमंत्री केजरीवाल कह रहे हैं कि मैं जनता का चुना हुआ मुख्यमंत्री हूं, कोई अपराधी नहीं। मुझे इजाजत क्यों नहीं दी जा रही है। उन्होंने इस बाबत प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा। उधर, भाजपा सांसद मनोज तिवारी का कहना है कि मेयर सम्मेलन में केजरीवाल क्यों जाना चाहते हैं? उनके पास कोई विभाग नहीं है, फिर वह वहां जाकर बताएंगे क्या?
एक-दूसरे के निशाने पर सिसौदिया और केजरीवाल!
इस घोटाले के सामने आने के बाद का घटनाक्रम इशारा करता है कि आम आदमी पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है। एक आशंका यह जाहिर की जा रही है कि जैसे अरविंद केजरीवाल ने अपने हर पुराने साथी को ठिकाने लगा दिया, उसी तरह मनीष सिसौदिया को भी अब किनारे लगाया जा रहा है। मनीष सिसौदिया भी दो दशक से केजरीवाल के साथ हैं और इतनी आसानी से हार नहीं मानते लगते। दोनों के बयानों को भी देखेंगे तो पाएंगे कि क्या वास्तव में वे एक-दूसरे के जेल जाने की कामना कर रहे हैं। इस मामले पर पहली प्रतिक्रिया में ही केजरीवाल ने कहा कि हम जेल जाने से नहीं डरते। उनकी अगली लाइन पर गौर कीजिए। वह कहते हैं कि मैंने तो तीन-चार महीने पहले ही बता दिया था कि ये लोग मनीष सिसौदिया को जल्द गिरफ्तार करने वाले हैं। अब सवाल यह उठता है कि केजरीवाल अंतर्यामी या भविष्यद्रष्टा हैं? और यह भी कि यह केजरीवाल की यह आशंका थी या कामना? लेकिन मनीष सिसौदिया कहां कम हैं? उनके बयान पर गौर कीजिए। सिसौदिया ने ट्वीट किया कि जैसे-जैसे ‘आप’ का देशभर में प्रभाव बढ़ेगा, अभी और बहुत झूठे केस होंगे।
लेकिन अब कोई भी जेल केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को नहीं रोक सकती। इस ट्वीट में आप पाएंगे कि केजरीवाल के जेल जाने की आशंका (कामना) जाहिर की जा रही है जबकि घोटाले की लपेट में सीधे सिसौदिया हैं। तो क्या ये ट्वीट केजरीवाल के लिए एक धमकी नहीं है कि जेल जाने का नंबर तो तुम्हारा भी आ सकता है?
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