राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रोत्साहित करने के क्रम में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय देश के शिक्षा और कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में कौशल केंद्रों (स्किल हब) की स्थापना कर रहा है।
देश के युवाओं को कौशल प्रदान के लिए भारत सरकार एक ऐसा नया समाधान लाई है जो उन्हें आजीविका कमाने और आरामदेह जीवन जीने में सक्षम बनाएगा। इरादा देश भर के छात्रों का समग्र विकास है। इसलिए, केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने कौशल विकास और उद्यमिता के लिए संशोधित राष्ट्रीय नीति लागू की है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को प्रोत्साहित करने के क्रम में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय देश के शिक्षा और कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में कौशल केंद्रों (स्किल हब) की स्थापना कर रहा है। इन कौशल केंद्रों से व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा में लाने, बुनियादी ढांचे में साझेदारी को संभव बनाने और छात्रों द्वारा अपनी चुनी हुई शैक्षणिक-व्यावसायिक गतिविधियों को जारी रखने के सुपरिभाषित मार्ग विकसित करने की व्यवस्था संभव हो सकेगी। यह पहल चरणबद्ध तरीके से औपचारिक शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा को व्यापक आधार पर एक-दूसरे के नजदीक लाना सुनिश्चित करेगी। ‘कौशल केंद्र पहल’ (स्किल हब इनिशिएटिव) का केंद्रीय उद्देश्य शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत करना है।
इसके अलावा, छात्रों के बीच उनके स्कूली जीवन से ही उद्यमिता के प्रसार के लिए राष्ट्रीय उद्यमिता और लघु व्यवसाय विकास संस्थान ने सीबीएसई की नौवीं से 12वीं कक्षाओं के लिए उद्यमिता पर पुस्तकें लिखवाई हैं।
जनसांख्यिकीय लाभार्जन
देश के 65 प्रतिशत युवाओं के कामकाजी आयु वर्ग में होने के साथ भारत आजीविका के अवसरों का केंद्र बनने के लिए पूरी तरह तैयार है। इस जनसांख्यिकीय लाभ को अर्जित करने का यदि कोई तरीका है, तो वह युवाओं का कौशल विकास ही है ताकि इससे न केवल उनका व्यक्तिगत विकास हो बल्कि वे भारत को आर्थिक विकास का इंजन बनाने में भी मददगार हो सकें। इसीलिए, स्किल इंडिया विभिन्न कौशल प्रदान करते हुए देश के युवाओं का सशक्तीकरण करता है जिससे कामकाजी माहौल में उनकी सेवा देने की क्षमता और उत्पादकता बढ़ती है।
पहले दिन से सेवा योग्य
राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) के तहत स्किल इंडिया देश के 40 क्षेत्रों में तरह-तरह के पाठ्यक्रम प्रदान करता है जो उद्योग और सरकार दोनों द्वारा मान्यता प्राप्त मानकों के अनुरूप हैं। ये पाठ्यक्रम युवाओं को काम के व्यावहारिक वितरण पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करते हैं और उनकी तकनीकी विशेषज्ञता को बढ़ाने में मदद करते हैं जिससे वे सेवा अवसर पाने के पहले दिन से काम के लिए तैयार हों। यह न केवल युवाओं के लिए बल्कि निजी कंपनियों के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि उन्हें युवा रंगरूटों के प्रशिक्षण में निवेश नहीं करना पड़ता।
इस नीति के विकास की प्रक्रिया में मोदी सरकार ने शिक्षा के विशाल क्षेत्र में विशेषज्ञों के साथ चौबीसों घंटे काम करके सभी मंत्रालयों / विभागों की कौशल योजनाओं को शामिल करते हुए स्किल इंडिया मिशन का विकास किया है।
स्किल इंडिया मिशन के तहत- जिसका मुख्य उद्देश्य 2022 तक 40 करोड़ से अधिक युवाओं को बाजार-प्रासंगिक कौशलों में पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान करना है – 20 से अधिक केंद्रीय मंत्रालय/ विभाग राष्ट्रीय स्तर पर लाखों लोगों का कौशल स्तर बढ़ाने के लिए कौशल विकास योजनाओं/ कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं। इस अग्रणी योजना के माध्यम से अब तक 5.561 करोड़ व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय स्किल इंडिया मिशन के तहत प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, जन शिक्षण संस्थान, राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना और शिल्पकार प्रशिक्षण योजना आदि के माध्यम से देश भर में संचालित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों में युवाओं का कौशल बढ़ा रहा है।
उच्च माध्यमिक विद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा का सामान्य शैक्षणिक शिक्षा के साथ एकीकरण करना है जिससे छात्रों की सेवायोजनीयता और उद्यमिता क्षमताओं को बढ़ाने और काम के माहौल से उन्हें परिचित करवाने के अलावा उनमें विभिन्न करियर विकल्पों के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके। इससे वे अपनी योग्यता, क्षमता और आकांक्षाओं के अनुसार करियर का चुनाव कर सकेंगे। इस योजना में सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल शामिल किए गए हैं।
कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के अलावा देश के युवा अन्य मंत्रालयों की तीन प्रमुख कौशल विकास योजनाओं (दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, ग्रामीण विकास मंत्रालय के ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थानों तथा आवासन एवं नगरीय मामले मंत्रालय की दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय नगरीय आजीविका मिशन) के माध्यम से भी कौशल प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। ये सभी कार्यक्रम इस संबंध में अधिकारप्राप्त समिति द्वारा तय किए गए सामान्य मानदंडों के अनुसार चलाए जाते हैं। क्षेत्र के नियामक के रूप में राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद स्थापित की गई है और इसने देश में कौशल प्रशिक्षण के मानकीकरण के लिए राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) तैयार किया है।
राज्यों में कौशल विश्वविद्यालय
मंत्रालय की राज्यों में कौशल विश्वविद्यालय स्थापित करने की कोई योजना नहीं है। अलबत्ता, सामान्य शिक्षा के साथ एकीकृत और समग्र तरीके से कौशल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को कौशल विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा है। ऐसा होने पर शिक्षा और कौशल के सभी रूपों में गतिशीलता और आगे बढ़ने के रास्ते सुनिश्चित किए जा सकेंगे। हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों की ही तरह अन्य राज्य सरकारें भी इन विश्वविद्यालयों की स्थापना स्वयं राज्य अधिनियम के माध्यम से कर सकती हैं।
शिक्षा मंत्रालय का स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ‘समग्र शिक्षा’ अभियान के तहत स्कूली शिक्षा में व्यावसायिक शिक्षा के घटक को लागू कर रहा है। इस केंद्र-प्रायोजित एकीकृत योजना, ‘समग्र शिक्षा’ का उद्देश्य सभी माध्यमिक/उच्च माध्यमिक विद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा का सामान्य शैक्षणिक शिक्षा के साथ एकीकरण करना है जिससे छात्रों की सेवायोजनीयता और उद्यमिता क्षमताओं को बढ़ाने और काम के माहौल से उन्हें परिचित करवाने के अलावा उनमें विभिन्न करियर विकल्पों के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके। इससे वे अपनी योग्यता, क्षमता और आकांक्षाओं के अनुसार करियर का चुनाव कर सकेंगे। इस योजना में सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल शामिल किए गए हैं।
योजना में शामिल स्कूलों में कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को समग्र शिक्षा के व्यावसायिक शिक्षा घटक के तहत एनएसक्यूएफ के अनुरूप व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रदान किए जाते हैं। सेवायोजनीयता कौशल मॉड्यूल को इन व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का अनिवार्य हिस्सा बनाया गया है। इसमें संचार कौशल, स्व-प्रबंधन कौशल, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी कौशल, उद्यमिता कौशल और हरित कौशल शामिल हैं।
व्यावसायिक शिक्षा का रोजगार सृजन में उपयोग
व्यावसायिक शिक्षा कक्षा 9 से 12 तक के छात्रों को प्रदान की जाती है। माध्यमिक स्तर यानी नौवीं और 10वीं कक्षा में छात्रों को व्यावसायिक मॉड्यूल की पेशकश एक अतिरिक्त विषय के रूप में की जाती है। सीनियर सेकेंडरी स्तर पर, यानी 11वीं और 12वीं कक्षा में, व्यावसायिक पाठ्यक्रम अनिवार्य (द्वितीयक) विषय के रूप में होते हैं। राज्य सरकारों को यह भी सलाह दी गई है कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को अन्य शैक्षणिक विषयों के समान माना जाए और विषयों की योजना में समान दर्जा दिया जाए।
स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा पूरी करने के बाद, छात्रों के पास आईटीआई/पॉलिटेक्निक अथवा बी. वोक. जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम को चुनने का विकल्प होता है। वे अपनी आकांक्षाओं और जरूरतों के आधार पर आगे के अकादमिक पाठ्यक्रमों या स्वरोजगार का विकल्प भी चुन सकते हैं। समग्र शिक्षा के तहत सामान्य शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के एकीकरण की मौजूदा व्यवस्था छात्रों को उनकी रुचि और आकांक्षाओं के अनुसार व्यावसायिक मार्ग चुनने का विकल्प भी प्रदान करती है।
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