भारत ने अपने तमाम पड़ोसियों के साथ जिस तरह से पड़ोसी धर्म निभाया है, कोई देश उसकी बराबरी नहीं कर सकता। पिछले साल अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद, वहां लोकतंत्र बहाली की मांग पर अपने दूतावास को बंद करने वाला भारत बदलते वक्त के अनुसार, एक बार फिर अफगानी लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए काबुल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है
भारत कूटनीतिक स्तर पर काबुल के नजदीक आया है। इतना ही नहीं, नई दिल्ली वहां मानवीय सहायता पहुंचाने में हमेशा से बाकियों से पहले जुटी है। भारत ने अपने तमाम पड़ोसियों के साथ जिस तरह से पड़ोसी धर्म निभाया है, कोई देश उसकी बराबरी नहीं कर सकता। पिछले साल अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद, वहां लोकतंत्र बहाली की मांग पर अपने दूतावास को बंद करने वाला भारत बदलते वक्त के अनुसार, एक बार फिर अफगानी लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए काबुल में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है।
लेकिन कम्युनिस्ट चीन को यह बात बुरी तरह चुभी है। उसने पाकिस्तान के साथ मिलकर अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते असर को कम करने की गरज से सीपीईसी परियोजना के जरिए वहां तक पांव पसारने की कुटिल योजना पर काम शुरू किया है। ताजा समाचार है कि शुरू में ग्वादर को काबुल से जोड़कर अफगानिस्तान की राजधानी में अपनी मौजूदगी बढ़ाई जाए और भारत का मुकाबला किया जाए।
इस बाबत चीन के अधिकारियों ने 19 जुलाई, 2022 को पाकिस्तान से मंत्रणा भी की है। अफगानिस्तान में भारत की सालों से चली आ रही उपस्थिति से चीन और पाकिस्तान हमेशा ही कसमसाते रहे हैं और यह प्रयास करते रहे हैं कि कैसे भी अफगानिस्तान के संदर्भों से भारत को दूर रख सकें। लेकिन वहां पहले की, और मौजूदा तालिबान सरकार इस तथ्य को नकार नहीं सकती कि भारत ने अफगानिस्तान में ढेरों पैसा निवेश करके वहां ढांचागत से लेकर अन्य निर्माण कार्य कराए हैं।
लेकिन भारत के इन सकारात्मक प्रयासों को निष्प्रभावी बनाने की गरज से चीन और पाकिस्तान ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सपनीली परियोजना सीपीईसी को अफगानिस्तान तक ले जाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। चीन के अफगान मामलों के विशेष दूत ने पाकिस्तान के विदेश सचिव से इस बारे में विस्तार से बात की है।
पाकिस्तान के दैनिक ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की खबर है कि अफगानिस्तान में चीन के विशेष दूत यूई श्याओयोंग तथा पाकिस्तान के विदेश सचिव सोहेल महमूद ने इस्लामाबाद में इस बारे में एक बैठक की है। इस बातचीत के बाद बयान जारी करके कहा गया है कि दोनों देशों ने क्षेत्रीय संपर्क की गरज से सीपीईसी को बढ़ाते हुए अफगानिस्तान तक ले जाने पर बात की। पाकिस्तान के विदेश सचिव ने अपने बयान में यह बात भी चिपका दी कि अफगानिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार को फिर से जारी कर दिया जाए और वहां बैंकिंग की सुविधाओं को दुबारा बहाल करने की इजाजत दी जाए।
इस बात की खबरें पहले आ चुकी हैं कि चीन पाकिस्तान में सैन्य बेस बनाने में जुटा हुआ है। अब सीपीईसी को लेकर नए सिरे से रणनीति बनाई जा रही है। चीन की इस परियोजना को दुनिया शक की निगाहों से देखती आ रही है। क्योंकि श्रीलंका की वर्तमान कंगाली में चीन की इस परियोजना का बड़ा हाथ रहा है। इसी परियोजना के तहत अब चीन ग्वादर बंदरगाह को काबुल से जोड़कर वहां अपना दखल बढ़ाने को बेचैन है, क्योंकि भारत काबुल के नजदीक जो आता जा रहा है। पिछले दिनों भारत ने तालिबान हुकूमत के साथ संपर्क बढ़ाया है और वहां अपने दूतावास में फिर से कामकाज शुरू किया है।
चीन ये जानता है कि भारत उसकी सीपीईसी परियोजना का प्रबल विरोधी है; भारत को इसे पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर से गुजारने पर कड़ी आपत्ति है। लेकिन चीन की नजर अफगानिस्तान के अकूत प्राकृतिक संसाधनों पर है। वह बारास्ता अफगानिस्तान मध्य एशिया के दूसरे देशों तक अपनी पहुंच बनाने को बेताब है।
बेशक, चीनी दूत की पाकिस्तानी विदेश सचिव से बातचीत को अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता होते हुए भी भारत के बढ़ते असर से इन दोनों देशों की चिंता को जोड़ा जा रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन की कोशिश है कि वह अफगानिस्तान में मौजूद कोयला, सोना, तांबा, कोबाल्ट पर कब्जा करे। चीन की नजर वहां के लीथियम और निओबियम के विशाल भंडार पर भी है। लीथियम लैपटॉप और मोबाइल की बैटरी बनाने में प्रयोग होता है।
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि दरअसल चीन और पाकिस्तान की यह मंशा थी कि तालिबान सत्ता को भारत के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाए। पाकिस्तान सरकार ने इसके लिए कोशिश भी की थी, लेकिन अब तालिबान साफ कर चुका है कि उसे भारत के अपने यहां किए कामों का पता है और वह चाहता है भारत आगे भी वे काम करता रहे। तालिबान ने भारत से कई बार अपने संबंध सामान्य बनाने की इच्छा जताई है।
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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