चीन फिर बौखलाया हुआ है, जबसे उसने सुना है कि जल्दी ही नैंसी पलोसी ताइवान का दौरा करने वाली हैं। कम्युनिस्ट सत्ता ने अपनी नाराजगी जताते हुए अमेरिका धमकी दे दी कि अगर नैंसी ताइवान गईं तो नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना। कारण, हांगकांग की तरह ताइवान को भी चीन अपनी बपौती समझता है और वहां किसी तरह की ‘बाहरी दखलंदाजी’ बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन बाद अमेरिकी सदन की अध्यक्ष नैंसी पलोसी ताइवान के दौरे पर जाने वाली हैं। मीडिया में इस खबर को देखकर चीन के तेवर चढ़ गए। उसने अमेरिका को धमकाने में जरा देर नहीं लगाई और ‘नतीजे भुगतने’ की धमकी दे दी। हालांकि इस हफ्ते शायद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच फोन पर बात भी होनी है। लेकिन इससे चीन के बयान का तीखापन कम नहीं हुआ।
अमेरिका और चीन में एक लंबे समय से तनाव खदबदा रहा है। दोनों पक्ष रह—रहकर एक दूसरे की नीतियों और वैश्विक राजनीति में भूमिका को लेकर बयान देते रहे हैं। नैंसी पलोसी के ताइवान दौरे का मुद्दा उसी की अगली कड़ी मानी जा रही है। नैंसी के दौरे पर चीन के इतने तीखे बयान के पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि भविष्य में नैंसी के अमेरिका की राष्ट्रपति बनने के आसार हैं।
अमेरिकी सूत्रों के अनुसार, जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद भी दोनों देशों के बीच संबंध पटरी पर नहीं आए हैं। ताइवान में मानवाधिकार और तकनीकी क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता ही दिखा है। चीन की इस बात के संकेत दूर तक जाते हैं कि यह 1997 के बाद पहली बार होगा जब कोई अमेरिकी सदन अध्यक्ष ताइवान जाएगा।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कल अपने वक्तव्य में कहा है कि हम स्पीकर पलोसी के ताइवान दौरे का विरोध करते हैं। अगर अमेरिका चीन को चुनौती देगा तो वह नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे। सदन में वरिष्ठ डेमोक्रेट नेता की तरफ से पलोसी के दौरे को लेकर कोई आधिकारिक वक्तव्य नहीं आया है। जबकि बाइडन जानते हैं कि पलोसी का ताइवान जाना बेशक चीन की वन चाइना पॉलिसी को बहुत ज्यादा चुभने वाला है।
हालांकि पिछले हफ्ते ही बाइडन ने अपने फौजी अधिकारियों के सामने कहा था कि ताइवान दौरे के लिए अभी सही समय नहीं आया है। उल्लेखनीय है कि चीन कई वर्ष से ताइवान को अपनी आक्रामकता से परेशान करता आ रहा है। चीन के बयान ही नहीं, उसके लड़ाकू विमान भी ताइवानी आसमान में घुसपैठ करके अपनी धमक दिखाते रह हैं। हालात यहां तक गंभीर हो चले थे कि पश्चिमी देश ये मानने लगे थे कि यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान चीन भी ताइवान का मोर्चा खोलने को तैयार बैठा है। इधर गत सप्ताह नैंसी पलोसी ने एक बयान में कहा था कि ताइवान के साथ खड़े होना अब जरूरी हो गया है।
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