उत्तराखंड हाई कोर्ट ने नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के निकाह कराने की घटनाएं सामने आने पर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस भेज कर जवाब मांगा है। एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान ये आदेश दिया है। नैनीताल हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की संयुक्त बेंच के सम्मुख यूथ बार एसोसिशन ऑफ इंडिया एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें कोर्ट को जानकारी दी है कि कुछ कोर्ट, मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र न्यूनतम 18 साल या उससे भी कम आयु के विवाहित जोड़े को मान्यता देते हुए उन्हें पुलिस संरक्षण के आदेश भी दे रहे हैं क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ ऐसे निकाह की अनुमति देता है।
याचिका में कम आयु में लड़कियों और उनके बच्चे पैदा करने से उन्ही के स्वास्थ्य प्रभावित होने के विषय का भी जिक्र किया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि एक तरफ सरकार नाबालिग लड़कियों के संरक्षण के लिए पॉक्सो जैसे कानून लाती है। दूसरी तरफ 18 साल से कम की लड़कियों के निकाह की अनुमति देना इस अधिनियम का उल्लंघन है। लिहाजा सरकार ऐसी शादी या निकाह को अमान्य घोषित करे और ऐसी परिस्थिति में बनाए शारीरिक संबंधों को दुराचार की श्रेणी में रखे और आरोपी के खिलाफ पॉक्सो के तहत कार्रवाई करे।
जनहित याचिका को स्वीकार करते हुए बेंच ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने एक अध्यादेश लाकर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल किए जाने की बात कही है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ इन कानूनों को नहीं मान रहा। मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर ही मुस्लिम समुदाय अपने हक में फैसले करवा पाने में सफल हो रहा है।
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