काशी विश्वनाथ मंदिर-मस्जिद विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में बहस करते हुए मंदिर पक्ष की तरफ से कहा गया कि काशी विश्वेश्वर मंदिर अनादि काल, सतयुग पीरियड से अस्तित्व में है। कहा गया कि विश्वेश्वर मंदिर वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति नहीं हो सकती।
बहस किया गया कि वक्फ बोर्ड कानून 1995 के तहत इस कानून के अमल में आने के बाद सम्पत्ति का पंजीकरण जरूरी है। विवादित सम्पत्ति वक्फ कानून में पंजीकृत नहीं है। इस कारण वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति नहीं हो सकती। बहस में कहा गया कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था न कि मस्जिद बनाने का। कहा गया इस्लामिक कानून के मुताबिक विवादित सम्पत्ति पर मस्जिद नहीं बन सकती है।
अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणसी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से दाखिल याचिकाओं की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया कर रहे हैं। मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी का कहना है कि वक्फ कानून के प्रावधान केवल मुस्लिमो पर ही लागू होंगे। इस कानून में मुस्लिमो के आपसी विवाद ही तय किये जा सकते हैं। वक्फ कानून हिंदुओं पर लागू नहीं होता। रस्तोगी ने कहा यदि वक्फ बोर्ड और गैर मुस्लिम के बीच विवाद हो तो हिंदू पक्ष को नोटिस देना जरूरी है। प्रश्नगत मामले में वादियों को नोटिस नहीं दी गई है। इसलिए विवादित सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति नहीं मानी जा सकती। रस्तोगी ने कहा कि 1995 के वक्फ कानून लागू होने के बाद सम्पत्ति वक्फ बोर्ड में पंजीकृत हो या अपंजीकृत हो, दोनों स्थिति में दुबारा पंजीकृत करानी होगी। विवादित सम्पत्ति कभी भी वक्फ कानून में पंजीकृत नहीं हुई।
रस्तोगी ने कहा कि औरंगज़ेब ने मंदिर तोड़ने का आदेश दिया किन्तु मस्जिद बनाने का आदेश नहीं दिया। क्योंकि इस्लामिक कानून के अनुसार विवादित जमीन पर मस्जिद नहीं बन सकती। मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर अवैध रूप से स्थानीय मुसलमानों ने मस्जिद का निर्माण किया है। औरंगजेब ने मालिकाना हक नहीं लिया। सतयुग से स्वयंभू आदि विश्वेश्वर नाथ मंदिर है। पूरी सम्पत्ति मूर्ति में निहित है। सम्पत्ति पर मंदिर का ही स्वामित्व है। इसलिए 1995 का कानून इस मामले में लागू नहीं होगा। रस्तोगी ने कहा कि उप्र काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट 1983 मे मंदिर की परिभाषा दी गई है। इस कानून को सुप्रीम कोर्ट ने भी वैध करार दिया है। इसलिए अवैध रूप से बनी मस्जिद या वक्फ का कोई अस्तित्व नहीं है।
अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की तरफ से अधिवक्ता एस एफ ए नकवी ने कहा कि मंदिर पक्ष ने 1991 में वाद दायर किया था, जिसमें मस्जिद को स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि वक्फ कानून 1995 में ही स्पष्ट किया गया है कि यह कानून लागू होने पर पहले से पंजीकृत सम्पत्ति का दुबारा पंजीकरण कराना जरूरी नहीं है। उन्होंने धारा 43 का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि पहले से पंजीकृत सम्पत्ति डीम्ड पंजीकृत मानी जायेगी। नकवी ने काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट 1983 के बारे में कहा कि यह मंदिर के बेहतर प्रबंधन का कानून हैं। इसका मस्जिद से कोई सरोकार नहीं है। समय की कमी के कारण सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। अगली सुनवाई 26 जुलाई को होगी।
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