दुनिया के कई देशों में सक्रिय आतंकी गतिविधियों में बच्चों की बढ़ती संलिप्तता पर भारत ने संयुक्त राष्ट्र की बैठक में विशेष ध्यान दिलाया है। भारत की ओर से स्पष्ट कहा गया है कि वर्तमान हालात खतरनाक चलन की तरफ इशारा कर रहे हैं जिस पर तमाम देशों को ध्यान देने की जरूरत है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत ने सदस्य देशों से आतंकवाद फैलाने वालों और उनके प्रायोजकों को जिम्मेदार ठहराने और सुरक्षा परिषद के बाल संरक्षण दायित्वों की पूर्ति के लिए अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने का आग्रह भी किया। भारत के संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि ने विशेष बल आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों में छोटे बच्चों की संलिप्तता के बढ़ते चलन के प्रति चिंता व्यक्त की है। भारत के स्थायी प्रतिनिधि आर. रवींद्र ने आतंकवाद से बच्चों को जोड़ा जाना ‘खतरनाक और चिंताजनक’ बताते हुए सभी सदस्यों का ध्यान आकर्षित किया।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाते हुए आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों को कठघरे में खड़ा करने का आह्वान किया। बच्चों एवं सशस्त्र संघर्ष पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की उच्च स्तरीय वार्ता के दौरान अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के स्थायी मिशन के राजदूत आर. रवींद्र ने कहा कि गत करीब दो वर्ष कोरोना की वजह से स्कूल बंद थे। ऐसे समय में अपनी साजिश रचते हुए आतंकवादी गुटों ने छोटे बच्चों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। जिहादियों ने अपनी हिंसक सोच के प्रसार के लिए ऑनलाइन मंचों का दुरुपयोग किया। रवीन्द्र ने कहा कि जिहादी गुट बच्चों को बरगला कर उनका आतंकी गतिविधियों अथवा आतंकवाद के गुनहगारों को बचाने के लिए मानव ढाल के रूप इस्तेमाल करते हैं।
उल्लेखनीय है कि सुरक्षा परिषद में एक सप्ताह पहले ‘बच्चे तथा सशस्त्र संघर्ष’ पर रिपोर्ट जारी हुई थी। इसी विषय पर अब ये चर्चा आयोजित की गई थी जिसमें भारत के प्रतिनिधि ने पूरी गंभीरता से विषय को रखते हुए समस्या के व्याप के बारे में सदस्य देशों को सतर्क किया। उक्त रिपोर्ट स्पष्ट लिखा है कि 25 प्रतिशत यानी करीब 2,257 बच्चों की मौत बारूदी सुरंगों, विस्फोटक उपकरणों और युद्ध के बाद बचे विस्फोटक अवशेषों की चपेट में आने से हुई है।
भारत ने इस रिपोर्ट पर गंभीर चिंता जताई और कहा कि इसमें जिन हालात की चर्चा की गई है, वे सशस्त्र संघर्ष के हालात नहीं हैं। लेकिन हमें ज्यादा सतर्क रहना होगा, क्योंकि ऐसी कोशिशें एजेंडे का राजनीतिकरण करेंगी। इससे ध्यान भटकेगा और अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा व सशस्त्र संघर्ष में बच्चों के लिए पैदा हुए वास्तविक खतरों से भी हमारा ध्यान हट जाएगा।
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