राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन द्वारा उत्तर-पूर्व राज्यों के युवाओं के कौशल को बढ़ावा देने से उनकी प्रतिभा में आया निखार। अब यहां के युवा अपने लिए ही नहीं, बल्कि अन्यों के लिए भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहे
प्रकृति ने हमारे देश के पूर्वोत्तर राज्यों को संपन्नता प्रदान की है। इन राज्यों में सात बहन और एक भाई सिक्किम शामिल है। ये राज्य प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज हैं। मानो इस क्षेत्र को प्रकृति ने अपने हाथों से संवारा हो। यहां की जैव विविधता इस क्षेत्र को अलग ही आभा प्रदान करती है। यहां पारंपरिक रहन-सहन, रीति-रिवाज और स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को आज भी सहेज कर रखा गया है।
प्रकृति के इस विशेष उपहार के बावजूद भी यह क्षेत्र देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले आर्थिक विकास के मामले में पिछड़ा हुआ था। कारण, विकास के लिए समय रहते बुनियादी सुविधाएं विकसित ही नहीं की गर्इं। किसी क्षेत्र का आर्थिक विकास तभी संभव है, जब वहां सड़कें अच्छी हों, ताकि आवाजाही में लोगों को सहूलियत हो। राष्ट्रीय राजमार्ग जो तेजी से उस राज्य को दूसरे राज्यों से जोड़ सके। इसके अलावा, बिजली की उपलब्धता हो, जिससे उद्योग धंधे चल सकें। जिस क्षेत्र में ये बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध होंगी, वहां विकास को गति मिलेगी।
पूर्वोत्तर राज्यों को पहचान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सात बहनों’ के नाम से जाने जाने वाले उत्तर-पूर्व के राज्यों को नई पहचान दी है। केंद्र सरकार की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ ने पूर्वोत्तर क्षेत्र की समग्र विकास प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया है। 2014 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था तभी मजबूत हो सकती है, जब बिना किसी भेदभाव के संतुलित तरीके से हर राज्य में विकास कार्य किया जाए। इसके बाद जो उन्नति होगी, वह चिरस्थायी होगी। इस सोच को अमल में लाते हुए प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर सहित पूर्वी क्षेत्र में भी विकास की गति को रफ्तार देना शुरू किया। इस प्रयास के पीछे सोच यही है कि ये राज्य भी विकास के क्रम में राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया के साथ कदमताल करते हुए आर्थिक रूप से तरक्की करें और संपन्न बनें।
यदि प्राथमिक स्तर पर ही बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा उपलब्ध कराई जाए तो इससे बच्चों के शिक्षा पूरी करने के साथ ही हाथ में हुनर भी होगा, जो उन्हें रोजगार दिलाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यानी व्यावसायिक शिक्षा से न केवल कुशल श्रम शक्ति बढ़ेगी, बल्कि रोजगार क्षमता को भी विकसित किया जा सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी दिशा में बड़ा प्रयास है
‘रोजगार’ शब्द मेरे हृदय के सबसे करीब है। 1980 के दशक की शुरुआत में जब मैं माध्यमिक स्कूल में था, तब मुझे ‘व्यावसायिक प्रशिक्षण’ के बारे में पता चला। उस समय असम राज्य रोजगार एवं शिल्पकार प्रशिक्षण विभाग ने केंद्र सरकार के अंतर्गत गुवाहाटी में व्यावसायिक पुनर्वास केंद्र (वीआरसी) खोला। यह व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान विशेष रूप से दिव्यांगों के लिए था। यह प्रशिक्षण संस्थान, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई), गुवाहाटी के साथ मिलकर काम करता था। मुझे पूरा विश्वास था कि ‘व्यावसायिक प्रशिक्षण’ से रोजगार मिल सकता है।
व्यावसायिक प्रशिक्षण से कौशल विकास
अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई के बाद जब मैंने नौकरी की तलाश शुरू की, तब मुझे समझ में आया कि व्यावसायिक प्रशिक्षण लेने वाले युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की भरमार है। इस तरह का प्रशिक्षण हासिल करने के बाद युवाओं में कौशल विकास के आयाम विकसित हो जाते हैं। इस कारण रोजगार के क्षेत्र में उनकी मांग बढ़ जाती है। 1990 के दशक के मध्य में जब मैंने स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की, तब तक भारत आर्थिक सुधारों की राह पर चल चुका था। यह वह वक्त था, जब देश में लाइसेंस और परमिट सिस्टम धीरे- धीरे खत्म हो रहा था। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति का युग शुरू हो रहा था। तरक्की के नए आयाम और आर्थिक विकास दर हासिल करने की उम्मीद में हम नई सहस्राब्दी में प्रवेश कर गए। कुल मिलाकर, आर्थिक विकास ने गति तो पकड़ी, लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद देश के आर्थिक विकास का एक नया अध्याय शुरू हुआ।
प्रधानमंत्री मोदी इस बात पर जोर देते हैं कि देश में विकास संतुलित होना चाहिए। इसी सोच को सामने रखते हुए पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास प्रक्रिया को तेज करने की दिशा में कदम उठाए गए। यह भी महसूस किया गया कि देश के युवाओं के पास गुण तो हैं, लेकिन इस गुण में कौशल की कमी है। यदि उनके गुण को कौशल से तराशा जाए तो रोजगार के साथ-साथ विकास के नए आयाम स्थापित किए जा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि युवाओं को व्यावसायिक शिक्षा दी जाए। इससे हमारे पास कामकाज में दक्ष युवा उपलब्ध होंगे।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण दक्षिण कोरिया है, जहां 96 प्रतिशत दक्ष कर्मचारी व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों से आते हैं। जर्मनी और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में यह दर क्रमश: 75 प्रतिशत और 52 प्रतिशत है। 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के अनुसार, भारत में यह दर 5 प्रतिशत से भी कम है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में व्यावसायिक प्रशिक्षण के क्षेत्र में कितनी संभावनाए हैं। यदि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति देनी है तो निश्चित ही वहां भी व्यावसायिक प्रशिक्षण की ओर ध्यान देना होगा।
पूर्वोदय का मंत्र
प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वोत्तर राज्यों के तेजी से विकास पर अत्यधिक जोर दिया है। इसके लिए उन्होंने ‘पूर्वोदय’ का मंत्र दिया है, जिसमें कई नीतिगत सुधार शामिल हैं, जो इस क्षेत्र में विकास की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होंगे। इसलिए पूर्वोत्तर के युवाओं को इस तरह से तैयार करना होगा कि उनकी सोच में वैज्ञानिक दृष्टि और तकनीक का समावेश हो। इसके लिए मशीन लर्निंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और समग्र विकास प्रक्रिया में भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखते हुए मानव पूंजी तैयार करनी होगी।
यदि प्राथमिक स्तर पर ही बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा उपलब्ध कराई जाए तो इससे जो बच्चा अपनी शिक्षा पूरी करेगा उसके हाथ में हुनर भी होगा, जो उसे रोजगार दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यानी व्यावसायिक शिक्षा से न केवल कुशल श्रम शक्ति बढ़ेगी, बल्कि रोजगार क्षमता को भी विकसित किया जा सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी दिशा में बड़ा प्रयास है। नई शिक्षा नीति (एनईपी) का उद्देश्य प्रारंभिक चरण में ही बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा उपलब्ध कराना है, ताकि उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़ने से रोका जा सके। एनईपी माध्यमिक शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के बीच तालमेल बिठाने का प्रयास करती है ताकि पूर्वोत्तर के राज्यों सहित देश के युवा ‘आत्मनिर्भर भारत’ के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए कुशल बन सकें।
अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए शैक्षिक सुधारों को लागू करने का काम करेगा और शिक्षा, शोध, विकास और उद्योग के बीच तालमेल के बेहतर करेगा। इसके लिए एनआरएफ को 5 साल के लिए 50,000 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया है। पूर्वोत्तर क्षेत्र युवाओं में कौशल को बढ़ावा देने की इस पहल से लाभान्वित होगा, जिसके परिणामस्वरूप यहां रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी। एनईपी का उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा को लागू करने में आ रही दिक्कतों को दूर करना है, जिससे क्रमबद्ध तरीके से सभी शैक्षणिक संस्थानों में व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ जोड़ा जा सके।
अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए शैक्षिक सुधारों को लागू करने का काम करेगा और शिक्षा, शोध, विकास और उद्योग के बीच तालमेल के बेहतर करेगा। इसके लिए एनआरएफ को 5 साल के लिए 50,000 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया है। पूर्वोत्तर क्षेत्र युवाओं में कौशल को बढ़ावा देने की इस पहल से लाभान्वित होगा, जिसके परिणामस्वरूप यहां रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी। एनईपी का उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा को लागू करने में आ रही दिक्कतों को दूर करना है, जिससे क्रमबद्ध तरीके से सभी शैक्षणिक संस्थानों में व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ जोड़ा जा सके।
स्कूली स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा को जोड़ कर शिक्षा को रोजगारपरक बनाया जा सकता है। इस तरह से शिक्षित व प्रशिक्षित युवा नौकरी मांगने की बजाए स्टार्टअप गतिविधियों से जुड़ कर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में सक्षम हो सकते हैं। इसलिए प्राथमिक और उच्च शिक्षा के दौरान कम से कम 50 प्रतिशत विद्यार्थियों को 2025 तक व्यावसायिक शिक्षा का अनुभव होना चाहिए। ‘
आत्मनिर्भर भारत’ की अवधारणा नवाचार के मौकों को भुनाने की दिशा में बड़ा प्रयास है। इसका उद्देश्य युवा उद्यमियों को स्टार्टअप के लिए प्रोत्साहित करना है। हाल के वर्षों में उत्तर-पूर्वी राज्यों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी, जैव विविधता, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा, नैनो प्रौद्योगिकी, पेट्रोकेमिकल शोधन, वनस्पति और खाद्य उद्योग और चाय तथा इसी तरह के नवाचारों में बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
रोजगार पैदा करने वालों पर जोर
21 मई को नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (एनईएचयू) के 27वें दीक्षांत समारोह में शिक्षा एवं कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि भारत अब डिग्री धारकों को ‘नौकरी चाहने वालों’ के रूप में नहीं बल्कि, ‘नौकरी देने वाले’ के रूप में देख रहा है। स्थानीय परिवेश में व्यावसायिक प्रशिक्षण युवाओं के कौशल विकास को इस तरह से तराश देता है कि वे पेशेवर की तरह काम करते हैं। इससे उनका काम करने का तरीका बदल जाता है। उनके काम में उत्पादकता का पुट आ जाता है। पूर्वी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में युवा आबादी की इस क्षमता को और ज्यादा बढ़ाने की आवश्यकता है।
आईआईटी गुवाहाटी में नॉर्थ ईस्ट रिसर्च कॉन्क्लेव का उद्घाटन करते हुए धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, ‘‘पूर्वोत्तर राज्यों में दो करोड़ से अधिक आबादी 3 साल के बच्चे से लेकर 23 साल के युवाओं की है। अगर यह मान लें कि कुछ बच्चे और युवा बाहर के राज्यों में पढ़ रहे हैं, तब भी एक तिहाई बच्चे अभी भी शिक्षा से वंचित हैं।’’ उन्होंने सभी बच्चों को शिक्षा से जोड़ने पर जोर दिया। वे चाहे स्कूल, कॉलेज या कौशल विकास संस्थान, कहीं से भी शिक्षा लें। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत केंद्र सरकार नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना करने जा रही है। एनआरएफ यह सुनिश्चित करेगा कि भारत में अनुसंधान गतिविधियों को किस तरह गति दी जाए।
साथ ही, एनआरएफ अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए शैक्षिक सुधारों को लागू करने का काम करेगा और शिक्षा, शोध, विकास और उद्योग के बीच तालमेल के बेहतर करेगा। इसके लिए एनआरएफ को 5 साल के लिए 50,000 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया है। पूर्वोत्तर क्षेत्र युवाओं में कौशल को बढ़ावा देने की इस पहल से लाभान्वित होगा, जिसके परिणामस्वरूप यहां रोजगार क्षमता में वृद्धि होगी। एनईपी का उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा को लागू करने में आ रही दिक्कतों को दूर करना है, जिससे क्रमबद्ध तरीके से सभी शैक्षणिक संस्थानों में व्यावसायिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ जोड़ा जा सके।
कम उम्र के बच्चों, जिसमें 8वीं से 12वीं कक्षा के बच्चे शामिल है, को शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा से आसानी से जोड़ा जा सकता है। इस तरह से जब ये बच्चे उच्च शिक्षा के लिए जाएंगे तो उनके पास व्यावसायिक दक्षता भी होगी। ऐसा होते ही युवाओं में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में ‘रोजगार के माध्यम से रोजगार’ के अवसर को बढ़ावा देने के लिए इसे प्राथमिकता के आधार पर चुना गया है। इसे पाने के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 को लागू करने की दिशा में भी काम करना शुरू कर दिया है।
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