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‘खानदान’ की भेंट चढ़ा देश

श्रीलंका इन दिनों अभूतपूर्व आर्थिक संकट से जूझ रहा है। सरकार की नीतियों से लोग इतने गुस्से में हैं कि उन्होंने राष्ट्रपति आवास पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति देश छोड़ चुके हैं

by आलोक बंसल
Jul 22, 2022, 11:38 am IST
in विश्व
कोलंबो स्थित राष्ट्रपति भवन के बाहर श्रीलंका के लोग

कोलंबो स्थित राष्ट्रपति भवन के बाहर श्रीलंका के लोग

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गत दिनों श्रीलंका में एक ट्रक चालक की फिलिंग स्टेशन पर पांच दिन तक कतार में इंतजार करने के बाद मौत हो गई। इस तरह की यह दसवीं मौत थी। प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे पहले ही स्वीकार कर चुके हैं कि अर्थव्यवस्था ढह चुकी है और देश तेल खरीदने में असमर्थ है। ईंधन की भारी कमी को देखते हुए 19 जून से सरकारी कार्यालयों और स्कूलों को पहले ही बंद कर दिया गया था। पूरा देश खाद्यान्न की कमी से जूझ रहा है और विक्रमसिंघे के अनुसार, श्रीलंका की लगभग 20 प्रतिशत आबादी को आने वाले समय में एक जून का खाना भी शायद नसीब नहीं होगा। श्रीलंका की सेना बंजर भूमि पर खाद्य फसल उपजाने के लिए खेती कर रही है और सरकारी कर्मचारियों को भी खेती से जुड़ने के लिए छुट्टी दी जा रही है। सरकार आईएमएफ की विस्तारित निधि सुविधा (ईएफएफ) के माध्यम से कम से कम 23 करोड़, 95 लाख रु. का उधार लेने के लिए बातचीत कर रही है, ताकि अपने नागरिकों की मुश्किलों को कम कर सके और देश उस आर्थिक बदहाली से उबर सके जिससे वह आज बुरी तरह से घिरा हुआ है।

पिछले तीन महीने से श्रीलंका की जो तस्वीरें सुर्खियों में दिख रही हैं उससे पूरी दुनिया हैरत में है। भीड़ ने उस महिंदा राजपक्षे के घर में आग लगा दी, जिन्होंने गृहयुद्ध पर जीत हासिल की थी और जिन्हें 2020 में श्रीलंका के संसदीय चुनावों में प्रचंड बहुमत मिला था।  उन्हें इस्तीफा देने और एक नौसैनिक अड्डे में शरण लेने के लिए मजबूर किया गया। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो चुका है और वह समय पर ऋण का भुगतान तक नहीं कर पा रहा है।

भारत के लिए श्रीलंका में स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के लोग सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक संबंधों से जुड़े हुए हैं और इस संबंध के सूत्र प्राचीन काल से जुड़े हैं। सार्क देशों में श्रीलंका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। श्रीलंका में सबसे बड़े निवेशकों में से एक भारत है

क्यों हुई बदतर स्थिति
हमें यहां यह समझना होगा कि आखिर श्रीलंका की स्थिति बद से बदतर कैसे होती चली गई, जबकि वह दक्षिण एशिया में मानव विकास सूचकांक पर सबसे बेहतर पायदान पर था और जहां भारत के मुकाबले प्रति व्यक्ति आय 50 प्रतिशत अधिक थी। 1983 से 2009 तक श्रीलंका भयानक गृहयुद्ध में उलझा रहा, जिसे जीतने का श्रेय तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को जाता है जिनके नेतृत्व में श्रीलंकाई सेना ने 16 मई, 2009 को लिट्टे को हरा दिया। इसके परिणामस्वरूप राजपक्षे के लिए भारी समर्थन बनने लगा। युद्ध के बाद अर्थव्यवस्था तेजी से बेहतर होने लगी और 2005 से 2011 तक श्रीलंका ने अपनी आय दोगुनी कर ली। अर्थव्यवस्था में मुख्य योगदान पर्यटन, चाय, रबर और परिधान क्षेत्रों का रहा। इसके परिणामस्वरूप राजपक्षे (महिंदा और उनका परिवार) ने देश पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और बड़ी ढांचागत परियोजनाओं पर पैसा खर्च करने लगे जो आर्थिक रूप से अव्यावहारिक थे। इसका नतीजा हुआ कि राजपक्षे बड़ा कर्ज उठाने लगे और जब 2015 में उन्हें सत्ता से बाहर किया गया, तब तक कर्ज सकल घरेलू उत्पाद के 80 प्रतिशत पर पहुंच चुका था। 2016 में आईएमएफ ने श्रीलंका की मदद की। हालांकि, 2019 में राजपक्षे की वापसी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत लेकर नहीं आई थी।

विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाले क्षेत्रों में से एक पर्यटन 21 अप्रैल, 2019 को ईस्टर के दौरान हुए बम विस्फोटों से बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसके बाद कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन से बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। इस बीच श्रीलंका ने कृषि क्षेत्र को पूरी तरह से जैविक करने का विकल्प चुना। वैसे यह था तो एक सराहनीय कदम, पर दुर्भाग्य से यह विनाशकारी फैसला साबित हुआ। अप्रैल, 2021 में गैर-जैविक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसने पूरे कृषि क्षेत्र को प्रभावित किया और पैदावार में भारी गिरावट आ गई। चावल का उत्पादन 20 प्रतिशत गिर गया, चाय निर्यात में 60 प्रतिशत की गिरावट आई और रबर, नारियल, लगभग सभी फसलों में भारी कमी दर्ज हुई। परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों में वृद्धि होने लगी और व्यापार घाटा बढ़ने लगा।

आर्थिक आपातकाल
श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घट रहा था जिसके मद्देनजर राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने सितंबर, 2021 में आयात में कटौती करते हुए एक आर्थिक आपातकाल की घोषणा की। इसने सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा कमाने वाले क्षेत्र- परिधान उद्योग को प्रभावित किया, जो कच्चे माल के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर था। नतीजतन, निर्यात लगभग बंद हो गया जिससे समस्याएं और बढ़ गईं। 12 अप्रैल, 2022 को श्रीलंका ने घोषणा की कि वह अपने ऋण का भुगतान करने में असमर्थ है। अब कच्चे या अन्य पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। इसके परिणाम लंबे समय तक की बिजली कटौती और र्इंधन के लिए लगी लंबी कतारों में दिखे।

दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संपर्क को फिर से स्थापित करने के लिए प्राचीन ‘राम सेतु’ का पुनर्निर्माण किया जाए। इससे व्यापार और पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि यह दोनों देशों के लिए इस तरह के संकट के समय में परस्पर मदद पहुंचाने वाला मजबूत संबल बन सकेगा।

खाद्य पदार्थों और ईंधन की कमी, मुद्रा का अवमूल्यन, विकराल होती महंगाई और बिजली की किल्लत के कारण लोगों का गुस्सा सरकार के खिलाफ उबलने लगा, क्योंकि बिजली का क्षेत्र राजपक्षे परिवार के सदस्यों के अधीन था। परिणामी हिंसा ने प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने भी बड़ी संख्या में पार्टी से इस्तीफा दे दिया। विपक्षी नेता जिम्मेदारी उठाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे, लिहाजा अनुभवी पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने फिर से प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। 16 मई को अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने देश की वित्तीय स्थिति को ‘बेहद अनिश्चित’ बताया। उन्होंने देश को आगाह किया कि राष्ट्र के पास केवल एक दिन की ईंधन आपूर्ति शेष है, इसलिए बिजली की कमी बढ़ेगी। इस प्रकार के अस्थिर वातावरण में कोई देश किसी भी बाहरी शक्ति की गिद्ध दृष्टि का शिकार हो सकता है।

स्थिरता आवश्यक
भारत के लिए श्रीलंका में स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों के लोग सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक संबंधों से जुड़े हुए हैं और इस संबंध के सूत्र प्राचीन काल से जुड़े हैं। सार्क देशों में श्रीलंका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। श्रीलंका में सबसे बड़े निवेशकों में से भारत एक है। श्रीलंका जाने वाले पर्यटकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की है श्रीलंकाई नागरिक भी भारत आने में दिलचस्पी रखते हैं। कूटनीतिक तौर पर श्रीलंका भारत की हिंद महासागर रणनीति और भारत के पड़ोस में बाहरी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए महत्वपूर्ण है।

दुर्भाग्य से, श्रीलंका को ईंधन आयात करने और खाद्य पदार्थ, दवाइयां और अन्य आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराने के लिए 39 अरब, 94 करोड़ रुपए प्रदान करने की भारतीय उदारता के बावजूद, वह श्रीलंका को संकट से पूरी तरह उबारने में सक्षम नहीं है। पहला कारण यह है कि भारत की निकटता के बावजूद श्रीलंका और भारत के बीच जमीनी संपर्क नहीं है। भारत और श्रीलंका के बीच एक जमीनी पुल होता तो तेल और गैस पाइपलाइनों के साथ दो बिजली ग्रिड का संपर्क श्रीलंका के साथ बनाया जा सकता था। अगर पाक जलडमरूमध्य के आर-पार परिवहन सेवाएं मौजूद होतीं, तो स्थिति आज इतनी गंभीर नहीं होती, क्योंकि भारत हालात बिगड़ने से बहुत पहले ईंधन, खाद्यान्न और बिजली संबंधी सहायता पहुंचा देता।

इसलिए यह आवश्यक है कि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संपर्क को फिर से स्थापित करने के लिए प्राचीन ‘राम सेतु’ का पुनर्निर्माण किया जाए। इससे व्यापार और पर्यटन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात है कि यह दोनों देशों के लिए इस तरह के संकट के समय में परस्पर मदद पहुंचाने वाला मजबूत संबल बन सकेगा। इसलिए इस पर विचार अवश्य करना चाहिए।
 (लेखक ‘इंडिया फाउंडेशन’ के निदेशक और ‘एशियाई यूरेशियन
ह्यूमन राइट्स फोरम’ के महासचिव हैं)

Topics: Clear Policy Necessaryप्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघेश्रीलंका का विदेशी मुद्रागिद्ध दृष्टि का शिकारPopulation Balance
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