पड़ोसी देश श्रीलंका के हालात दिनबदिन बदतर होते जा रहे हैं। सत्ता की अनुपस्थिति की वजह से मध्यम वर्ग और उसमें भी परिवार संभालने वाली महिलाओं की हालत सबसे ज्यादा खराब है। लोग भूखोें मर रहे हैं, खाने के लाले पड़े हुए हैं। घरों में राशन खत्म हो चुके हैं। कीमतें आसमान छू रही हैं। इनके दुख दूर करने को कोई नेता, कोई विधायक, कोई पुलिस मौजूद नहीं है।
इन बदतर हालात में भुखमरी की कगार पर पहुंचे परिवारों का पेट भरने वाली महिलाएं कैसे भी दो पैसे कमाने को बेचैन हैं। फलों और सब्जियों के दाम सातवें आसमान पर हैं, इतने कि आम इंसान इन्हें खरीदने का सपना भी नहीं देख सकता।
श्रीलंका की स्थिति इतनी बदतर हो चुकी है कि अर्थव्यवस्था धरातल पर पहुंच चुकी है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को अपना और परिवार का पेट पालने के लिए अपने शरीरों का सौदा करना पड़ रहा है। एक रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। बताया गया है कि कई स्थानों पर तो चावल या दवाइयां खरीदने के लिए भी लोगों के पास पैसे नहीं बचे हैं। ऐसी परिस्थितियों में उस देश में वेश्यावृत्ति बहुत बढ़ी गई है। कई जगह से महिलाओं को इस कारोबार में जानबूझकर धकेले जाने की खबर है।
श्रीलंका के दैनिक ‘द मॉर्निंग’ की रिपोर्ट है कि राजधानी कोलंबो में महिलाएं अपना और परिवार का पेट पालने के लिए ‘सेक्स वर्कर’ बनने को मजबूर हो गई हैं। यहां के स्पा सेंटर कामचलाउ वेश्यालयों में बदल गए हैं। इस चलन को रोकने वाला कोई नहीं है। कई जगहों पर जो महिलाएं खुद पाई पाई की मोहताज होकर खुद इस पेशे में उतर रही हैं। सवाल दो वक्त की रोटी का जो है।
यही वजह है कि श्रीलंका में यौन कारोबार पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। रिपोर्ट बताती है कि कपड़ा उद्योग में काम कर रहीं महिलाओं में नौकरी छिन जाने का इतना खौफ है कि कइयों ने वेश्यावृत्ति को ‘समानांतर काम’ की तरह अपनाना शुरू कर दिया है। इस ‘कारोबार’ से जुड़ी एक महिला का कहना है कि इस समय तो यही एक सबसे सही रास्ता दिख रहा है, इसलिए इसकी तरफ रुझान बढ़ा है। इस काम से पेट भरने लायक खाना तो मिलता है।
हैरानी की बात है, उस महिला के अनुसार, पहले वे एक महीने में जितना कमाती थी अब एक दिन में कमा रही है। एक और रिपोर्ट बताती है कि जनवरी 2022 से कोलंबो में वेश्यावृत्ति से जुड़ने वाली महिलाओं की संख्या में करीब तीस प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी देखने में आई है। उल्लेखनीय है कि श्रीलंका में वेश्यावृत्ति कानूनन प्रतिबंधित है। उसके बावजूद ऐसा चलन दिखना दुखद है।
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