हिन्दू धर्म एवं हिन्दू धर्म के प्रतीकों का लगातार अपमान करने वाले आल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को दिल्ली की एक अदालत ने जमानत देते हुए टिप्पणी की कि हिन्दू धर्म बहुत सहिष्णु है और इसका पालन करने वाले लोग भी सहिष्णु हैं, वह अपने देवी देवताओं के नाम पर संस्थानों के नाम रखते हैं।
अब यहाँ पर न्यायिक सक्रियता या कहें न्यायाधीशों के व्यक्तिगत मतों की सक्रियता पर फिर से प्रश्न खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि सहिष्णु होने का अर्थ क्या होता है? क्या यह अर्थ होता है कि जो लोग छलपूर्वक या शरारतपूर्ण तरीके से जानबूझकर हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने के लिए, उनका अपमान करने के उद्देश्य से अपमानजनक तस्वीरें साझा करते हैं, क्या हिन्दू धर्म के अनुयायी अपनी शिकायत भी दर्ज नहीं करा सकते, क्योंकि उनका धर्म उदार है और कोई भी उसका अपमान कर सकता है?
उदार होने का अर्थ अपमान करना या अपमान झेलना कैसे हो गया है? और क्या अब किसी धर्म का सहिष्णु या असहिष्णु होना ही यह निर्धारित करेगा कि अपराध की गंभीरता कितनी है? यह प्रश्न आनंद रंगनाथन ने भी पूछा कि क्या अब अपराध की गंभीरता का निर्धारण यह तथ्य करेगा कि कौन सा धर्म कितना सहिष्णु है?
सहिष्णु और उदार कह-कह कर हिन्दुओं और हिन्दू धर्म का विकृतीकरण कर दिया गया
भारत में हिन्दू धर्म को लेकर ही हर क्षेत्र में प्रयोग किये गए हैं, फिर चाहे वह फिल्मों का क्षेत्र हो, धारावाहिक हो, हाल ही में ओटीटी की सीरीज और फ़िल्में हों, साहित्य हो या फिर विज्ञापन तक! सभी को यह लगता है कि हिन्दू धर्म पर कुछ भी बोला जा सकता है, और उदार होने की आड़ ली जाती है। यदि हिन्दू धर्म उदार है तो उस उदारता का आदर किया जाना चाहिए या फिर उस उदारता का उपहास उड़ाते हुए हिन्दू धर्म का अपमान करना चाहिए।
समस्या यह है कि फ़िल्में और साहित्य जिन्हें कभी समाज का दर्पण कहा जाता था, इन्होंने वामपंथी विचारधारा के चलते हिन्दू धर्म पर ही प्रहार किये और उन्हें अवधारणात्मक रूप से गलत बताया। और यह सब किया गया सहिष्णुता की चादर के नीचे! अपने मनगढ़ंत प्रयोग किये और फिर उन्हें रचनात्मक स्वतंत्रता का प्रतीक बताकर यह कहा गया कि हिन्दू धर्म तो उदार है, वह अपनी कमियों को खुलकर स्वीकारता है। परन्तु धर्म में कैसी कमी? धर्म के पालन में कमी आ सकती है, कोई रीति कालान्तर में परस्पर दो या तीन समुदायों की संस्कृति के संपर्क में आकर अपने मूल रूप से विचलित हो सकती है, परन्तु धर्म में कैसे सुधार करने का दावा वह लोग कर सकते हैं, जिनका धर्म से कोई लेना देना ही नहीं!
एक गाना था “प्रिय प्राणेश्वरी, यदि आप हमें आदेश करें!” इस गाने में धर्मनिष्ठ हिन्दू होने का उपहास उड़ाया गया है, इसके साथ ही हिन्दी फिल्मों के कई गाने ऐसे हैं, जिनमे हिन्दुओं के लिए सबसे खतरनाक शब्द अर्थात “काफ़िर” का महिमामंडन किया गया है, उसे रोमांटिसाइज़ किया गया है।
हिन्दी फिल्मों के गानों में इकबाल के कौमी तराने जैसी ही कट्टरता कभी-कभी दिखाई देती है, जिसमें हिन्दू रीति रिवाजों के पति हीनता दिखाई देती है। अभी तक लोग इस बात का संज्ञान नहीं लेते थे, और यदि लेते भी थे तो एक बड़ी लॉबी हावी रहती थी, जिसका फिल्मों में वर्चस्व था। वह हिन्दू-विरोधी गानों, हिन्दू विरोधी कहानियों का समर्थन करती थी।
आमिर खान की पीके फिल्म में हिन्दुओं के आराध्यों का जमकर अपमान किया गया था, परन्तु सहिष्णुता के नाम पर एक बड़े वर्ग ने इसका समर्थन किया था कि हिन्दू धर्म अपने प्रति उदार है। यहाँ तक कि दिल्ली उच्च न्यायालय तक ने कह दिया था कि फिल्म में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। परन्तु कोई भी उसके ऐसे दृश्यों को नहीं भूल सकता है जिनके मूल में हिन्दू धर्म और उसकी परम्पराओं का अनादर था।
फिल्मों में अंतहीन उदाहरण हैं, जो हिन्दू धर्म के अपमान को बताते हैं, परन्तु जब भी विवाद हुए तो उसे या तो कलात्मक स्वतंत्रता बताया गया, या फिर हिन्दू धर्म में कथित सुधार की बात की गयी, फिर भी यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि जो हिन्दू धर्म में कथित सुधार की बात करते हैं, उनकी योग्यता क्या है?
यहाँ तक कि अभी हाल तक में राधा रानी पर अत्यंत अपमानजनक गाना “मधुबन में राधिका नाचे रे” फिल्माया गया था और राधा नाम का प्रयोग एक बार डांसर के लिए प्रयोग किया गया था। हालांकि बाद में सारेगामा ने माफी मांगते हुए गाने के बोल बदल दिए थे, परन्तु ऐसा एक बार तो नहीं हुआ है। “सेक्सी राधा” शब्द तक गानों में प्रयोग किए गए थे। प्रभु श्री कृष्ण पर तो अंतहीन आपत्तिजनक बातें फिल्मों के माध्यम से कहीं गयी हैं, और यह सब कथित सहिष्णुता के नाम पर हुआ है।
जैसे ही किसी ने विरोध करना चाहा तो उसे यह कहकर शांत करा दिया गया कि “हिन्दू धर्म सहिष्णु है, इसमें सुधार का स्कोप है, और वह अपनी आलोचना सहन कर लेता है!” फिर से प्रश्न उठता है कि क्या सहिष्णुता का अर्थ अपमान है ?
कला और साहित्य के क्षेत्र में कथित सहिष्णुता
कला और साहित्य के क्षेत्र में सहिष्णुता के नाम पर न जाने कितने प्रयोग किए गए। पाकिस्तान की नींव डालने वाले अल्लामा इकबाल ने अपनी पहचान को अरब से जोड़ कर बताया था, और अपनी शिकवा नज़्म में अपने खुदा से यह शिकवा किया था, कि जिन मुसलमानों ने आपके लिए इतना खून बहाया और काफिरों को भी मारा, उनकी स्थिति आज ऐसी क्यों है। परन्तु वह इकबाल साहित्य में क्रांतिकारी बने रहे और सोमनाथ पर लिखने वाले कन्हैया लाल मुंशी का नाम लेने वाला भी साहित्य में नहीं है।
यहाँ तक कि भारतीय लोक संस्कृति और हिन्दू धर्म के आधार पर बिना विकृत किए उपन्यास लिखने वाले नरेंद्र कोहली को यह लॉबी कलाकार या साहित्यकार नहीं मानती है, परन्तु उसके लिए एमएफहुसैन बहुत बड़े कलाकार हैं, क्योंकि वह हिन्दू देवी को नंगा चित्रित करते हैं।
कलात्मक स्वतंत्रता का नाम लेकर और कथित सहिष्णुता की आड़ लेकर हिन्दू धर्म से घृणा करने वाले लोगों ने माँ काली को सीएए आन्दोलन में बुर्के और हिजाब में दिखा दिया था। कठुआ में बच्ची के साथ जो दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई थी, उसके आधार पर कभी शिवलिंग तो कभी त्रिशूल आदि पर कंडोम चढाकर दिखाए गए। यह सब हुआ, क्योंकि कथित रूप से यह कहा जाता है कि हिन्दू धर्म सहिष्णु है!
और कौन भूल सकता है कि काली माँ पर महुआ मोइत्रा के बयान को ख़ारिज करने वाली तृणमूल कांग्रेस ने सयानी घोष को विधानसभा चुनावों में अपना उम्मीदवार बनाया था, जिन्होनें शिवलिंग पर कंडोम के साथ तस्वीर साझा की थी! हालांकि यह भी उन्होंने कहा था कि उनका अकाउंट हैक हो गया था, परन्तु ट्विटर यूजर्स ने उनके इस झूठ की पोल खोल दी थी!
जब भी बात होती ही तो यह कहा जाता है कि कबीर ने भी तो हिन्दू धर्म के लिए इतना बोला, परन्तु कबीर को हिन्दू धर्म ने कभी बुरा नहीं कहा, यही हिन्दू धर्म की उदारता है!
जब वह यह कहते हैं तो यह सबसे बड़ा छल है क्योंकि कबीर निर्गुण राम को मानते थे और वह हिन्दू और मुस्लिम दोनों की ही कुरीतियों पर समान रूप से प्रहार करते थे। वह ऐसा नहीं करते थे कि महादेव का अपमान ही करें मात्र और इस्लाम पर कुछ न कहें, वह देश में आग लगाने की बात नहीं करते थे, कबीर हिन्दू धर्म से द्वेष के कारण रचना नहीं करते थे, यही कारण है कि अभी भी हिन्दू ही अधिकाँश कबीरपंथी मिलेंगे, क्योंकि कबीर से हिन्दुओं ने निर्गुण राम को जाना।
काहे रे नलिनी तू कुम्हलानी,
तेरे ही नाल सरोवर पानी!
कबीर तो स्वयं को राम का कुत्ता भी कहते हैं
कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाऊँ।
गलै राम की जेवड़ी, जित खैंचे तित जाऊँ॥
ऐसे कबीर जब भक्ति भाव से हिन्दू समाज में व्याप्त कुरीतियों पर कहेंगे तो समाज उनकी बात सुनेगा, न कि जुबैर जैसा कोई आदमी जो जानबूझकर हिन्दू धर्म की भावनाओं को आहत करने के लिए ऐसी पोस्ट करता है, जो नुपुर शर्मा का वीडियो जानबूझकर सम्पादित करता है और लोगों को भड़काता है और जिसके कारण भारत के सम्बन्ध इस्लामिक देशों से खराब होने की कगार पर तो पहुँचते ही हैं, साथ ही वहां पर रहने वाले हिन्दुओं की जान भी खतरे में आ जाती है।
क्या ऐसे तत्वों को जमानत देते हुए यह आधार हो सकता है कि हिन्दू धर्म सहिष्णु है ?
लोग पूछ रहे हैं twitter पर कि क्या सहिष्णुता अपराध है? विवेक रंजन अग्निहोत्री ने भी कहा कि यही कारण है कि दुनिया में सबसे सहिष्णु लोग लगातार जीनोसाइड और तन से जुदा सिर के ही अधिकारी हैं और फिर उन्होंने कई दंगों के नाम लिखे, जैसे मोपला, डायरेक्ट एक्शन डे, कश्मीर, गोधरा, पंजाब, दिल्ली, उदयपुर
भारत के नागरिक एक बार फिर से माननीय न्यायालय की टिप्पणी से आहत हैं और प्रश्न पूछ रहे हैं कि क्या अपनी बात मनवाने के लिए असहिष्णु होना आवश्यक है? हिन्दू पूछ रहे हैं कि क्या उदारता का अर्थ वास्तव में अपमानित होना ही रह गया है? क्या न्यायालय से भी यही सुनने को मिलेगा कि हिन्दू धर्म उदार है सहिष्णु है!
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