नए संसद भवन के केंद्रीय कक्ष के ऊपर विशालकाय अशोक स्तंभ लगाया गया है, जिसका प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अनावरण किया है। इस अशोक स्तंभ को लेकर विपक्ष हमलावर हो रहा है। विपक्ष का आरोप है कि अशोक स्तंभ की डिजाइन से छेड़छाड़ की गई है। हालांकि मूर्तिकार इन आरोपों को नकार रहे हैं।
ऐसे हालात में यह जानना जरूरी है कि आखिर पूरे विवाद में कानून क्या कहता है। क्या भारत सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों में बदलाव कर सकती है या नहीं कर सकती। इस सवाल के जवाब में कानून के जानकारों का कहना है कि मामला भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 से जुड़ा हुआ है, जिसे 2007 में अपडेट किया गया था।
भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रीय प्रतीक को आधिकारिक मुहर के रूप में उपयोग करने के लिए अनुसूची में वर्णित किया गया है। भारत का जो राष्ट्रीय प्रतीक है वो सारनाथ के लायन कैपिटल ऑफ अशोक से प्रेरणा लेता है। एक्ट में यह भी कहा गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।
कानून के जानकारों का कहना है कि एक्ट में यह भी स्पष्ट है कि केंद्र सरकार जिसमें जरूरी समझती है उसमें परिवर्तन कर सकती है। राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में भी यह बात शामिल है। जानकारों का यह भी कहना है कि एक्ट के तहत पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को नहीं बदला जा सकता है। सिर्फ डिजाइन में बदलाव किया जा सकता है। हालांकि देश के संविधान के अनुसार सरकार किसी भी कानून में बदलाव कर सकती है। ऐसे में अगर सरकार चाहे तो इस एक्ट में भी संशोधन कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ एडवोकेट का भी कहना है कि 2005 एक्ट के तहत सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है।
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