इन दिनों अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हिंदू देवी-देवताओं को अपमानित किया जा रहा है। विरोध करने पर हिंदुओं को ही कठघरे में खड़ा किया जा रहा। वहीं हिंदुओं का गला काटने वाले जिहादियों को कोई कुछ नहीं कह रहा। अब यह रस्मी विरोध नहीं चलने वाला
देश में जिहादियों का हिंसा का जो नंगा नाच चल रहा है, उसके लिए नुपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। जगह-जगह हिंसा हो रही है। हिंदुओं की निर्ममता से हत्या की जा रही है। लेकिन इस पर बहस नहीं हो रही कि जिहादी ऐसा करके क्या कानून-व्यवस्था, सत्ता और हिंदुओं के स्वाभिमान को चुनौती नहीं दे रहे? फैक्ट चेक के नाम पर फर्जी खबरें गढ़ने वाले जुबैर की गिरफ्तारी के बाद वही वर्ग शोर मचा चुका है, जिसने नूपुर शर्मा के सिर को तन से जुदा होने का मौन एवं प्रत्यक्ष समर्थन किया था। कुल मिलाकर यह निर्धारित कर दिया गया कि आप एक मजहब विशेष के विषय में उनकी किताब पर भी कुछ नहीं कह सकते और इसे सहिष्णुता के ठेकेदारों ने स्थापित किया।
सहिष्णुता के यही ठेकेदार कनाडा में रह रही भारतीय मूल की फिल्मकार लीना मणिमेकलाई की फिल्म के उस पोस्टर को कलात्मक अभिव्यक्ति बता रहे हैं, जिसमें हिंदुओं की आराध्य देवी मां काली को टोरंटो की सड़कों पर घूमते हुए दिखाया गाा है। साथ ही, उनके हाथ में सिगरेट है और वे ‘एलजीबीटी’ का झंडा भी उठाए हुए हैं। जैसे ही यह पोस्टर सोशल मीडिया पर आया, हिंदुओं का क्रोध और आक्रोश फूट पड़ा।
यह आक्रोश इस कारण भी था कि अभी हाल ही में सबने देखा कि कैसे नूपुर शर्मा के एक बयान पर देश को जलाने की कोशिश की गई। नूपुर शर्मा ने जो भी कहा, उसके लिए उन्हें उकसाया गया। उनका बयान तथ्यों पर आधारित था, लेकिन अब नूपुर का समर्थन करने वालों के ही सिर काटे जा रहे है और पुलिस द्वारा उन अपराधों को सामान्य आपराधिक घटना मान कर कहीं न कहीं दबाया जा रहा है, जैसा अमरावती में दिखा। हत्या के क्रूरतम मामलों में पुलिस की लीपापोती और राज्य सरकार की संवेदनहीनता को देखते हुए केंद्र सरकार को इन सभी मामलों की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपनी पड़ी।
अभिव्यक्ति की यह कैसी आजादी?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब क्या केवल हिंदू देवी-देवताओं का अपमान ही रह गया है? लीना मणिकेलाई की फिल्म के पोस्टर को देखकर तो यही लगता है। मुसलमान मोहम्मद के नाम पर इतना उबाल खा रहे हैं कि सरेआम हिंदुओं का गला काट दे रहे हैं। इसके बावजूद सेकुलर-लिबरल नेताओं, वामपंथी गिरोह से लेकर अदालत तक एक ही व्यक्ति को जिम्मेदार ठहरा रही है। अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में क्या हिंदुओं के देवी-देवताओं के अपमान की छूट दी जा सकती है? इस पर कोई कुछ क्यों नहीं बोलता? हमें यह भी देखना होगा कि जो लोग ऐसी फिल्में या वृत्तचित्र बनाते हैं, उनकी मानसिकता कैसी है? वे क्या सोचते हैं? क्या वे हिंदू होने का अर्थ जानते भी हैं? या फिर वे नाम के लिए ही हिंदू हैं?
लीना मणिकेलाई जिस वर्ग से आती हैं, उसे शहरी नक्सलियों में सम्मिलित किया जा सकता है, क्योंकि वे हर उस व्यक्ति का समर्थन करती हैं, जो भारत के विरोध में है। वे हर ऐसे सोच का समर्थन करती हैं, जो भारत का विरोध करता है। वे उस जुबैर के समर्थन में भाजपा को यह कहते हुए कोसती हैं कि क्या वह नई जेलें बना रही है या पूरे देश को ही जेल बनाने की उसकी योजना है? सत्ता के द्वारा रोज हो रही मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों को रोका जाना चाहिए!
फिर वे एक ऐसे ट्वीट को रीट्वीट करती हैं, जिसमें लिखा गया है कि फासीवादी भारत सरकार ने कितने लोगों को जेल भेजा है और उसमें उनमें तीस्ता, उमर खालिद, वरवर राव, दिश रवि, शरजील इमाम जैसे लोग शामिल हैं। तो जिसकी आनलाइन उपस्थिति में ऐसा सोच झलक रहा है, वह हिंदू मान्यताओं के प्रति कितनी निष्ठावान होगी, इसे आसानी से समझा जा सकता है? परन्तु एक बात समझ नहीं आती है कि लीना उस जुबैर के पक्ष में कैसे आ सकती हैं, जिसने जान-बूझकर वीडियो को संपादित किया और उसमें से वह हिस्सा हटा दिया, जिसमें नूपुर को उकसाया जा रहा है। फिर उसे इस मंशा के साथ ट्वीट किया और लोगों को भड़काया, जिससे लोग विरोध करें, सड़क पर उतरें!
जुबैर की इस हरकत के कारण भारत में ही आग नहीं लगी, बल्कि मध्य-पूर्व में रहने वाले भारतीयों के लिए भी समस्याएं खड़ी हुईं। साथ ही, बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध हमले एक बार पुन: आरम्भ हो गए। अर्बन नक्सल गैंग का यही तरीका है कि हिंदुओं और उनके आराध्यों पर हमला करो, उन्हें नीचा दिखाओ। लीना मणिकेलाई ने ठीक यही किया है। इसमें न तो कुछ नया है और न ही कुछ विशेष।
संग्रहालय ने मांगी माफी
मां काली के अपमान को लेकर भारतीय दूतावास ने सख्त रुख दिखाया। ओटावा स्थित भारतीय दूतावास ने सोमवार (4 जुलाई, 2022) को एक बयान जारी कर इस कृत्य की आलोचना की। दूतावास ने कहा कि उसे हिंदू समुदाय के नेताओं की ओर से एक फिल्म के पोस्टर में हिंदू देवी-देवताओं को अपमानजनक तरीके से दिखाए जाने की शिकायतें मिली हैं। इस फिल्म का प्रदर्शन टोरंटो स्थित ‘आगा खान म्यूजियम’ में ‘अंडर द टेंट’ परियोजना के अंतर्गत किया जा रहा है। टोरंटो में हमारे कांसुलेट जनरल ने इस मामले को आयोजकों के समक्ष रखा है।
दूतावास की प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि सूचना मिली है कि कई हिंदू समूहों ने कनाडा सरकार से भी कार्रवाई करने के लिए कहा है। हम कनाडाई अधिकारियों से और आयोजकों से अनुरोध करते हैं कि ऐसे भड़काऊ पोस्टर हटाए जाएं।
इस पर अगले दिन 5 जुलाई को आगाखान संग्रहालय ने माफी मांगते हुए बयान जारी कर कहा कि उसे इस बात से बहुत दु:ख हुआ है कि सोशल मीडिया पोस्ट के कारण हिंदू और अन्य पंथ के लोगों को बुरा लगा। बयान में वही बातें थीं कि ‘इस अभियान की सबसे मूल बात है विविध धार्मिक अभिव्यक्तियों और विविध धार्मिक मतों का आदर करना।’ लेकिन यदि धार्मिक-पांथिक भावनाओं का आदर करना उनके ‘अंडर द टेंट’ अभियान का मुख्य उद्देश्य है तो क्या उन्हें यह नहीं पता था कि इस पोस्टर के क्या परिणाम होंगे? या यह पता होगा कि हिंदू समाज अधिक से अधिक अपना विरोध प्रदर्शन करेगा या शिकायतें दर्ज कराएगा। वह हिंसा की उस सीमा तक नहीं जाएगा, जिस सीमा तक मुस्लिम समुदाय चला जाता है, जो सिर तन से जुदा के नारे लगाता है। यही कारण है कि हिंदू समाज की अतिशय उदारता का लाभ उठाकर इस प्रकार की फिल्में बनाई जाती हैं।
हिंदुओं के आराध्यों के अपमान का यह न तो पहला मामला है और न ही अंतिम। हिंदू इसका विरोध कर रहे हैं तो एक बड़े वर्ग को यह समस्या है कि आखिर क्यों हिंदू विरोध कर रहे हैं? हिंदू चुपचाप यह अपमान सह क्यों नहीं लेते? हिंदू सांस्कृतिक रूप से मर क्यों नही जाते?
महुआ मोइत्रा से तृणमूल ने किया किनारा
जब पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा से एक आयोजन में इसी बात को लेकर प्रश्न किया गया तो उन्होंने कहा, ‘यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने देवी-देवताओं को कैसे देखते हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप भूटान या सिक्किम जाएंगे तो पूजा के लिए देवी-देवताओं पर मदिरा चढ़ाई जाती है तो उत्तर भारत में ऐसा करना धार्मिक भावनाओं के खिलाफ हो सकता है। मां काली मेरे लिए मांस और मदिरा ग्रहण करने वाली देवी हैं!’
इस बयान के बाद एक बार फिर से यह प्रश्न खड़ा हो गया कि क्या राजनेताओं के लिए एक मजहब ही महत्वपूर्ण है? क्या वे तभी सम्मानजनक तरीके से बोलेंगे, जब इस्लाम का अपमान होगा? हालांकि यह सही है कि तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में मां काली के प्रति भावनाओं को ध्यान में रखते हुए महुआ मोइत्रा के बयान से किनारा कर लिया। लेकिन सयानी घोष का नाम कैसे कोई भूल सकता है, जिसे तृणमूल कांग्रेस ने टिकट दिया था और जिसने शिवलिंग को कंडोम पहनाते हुए फोटो साझा की थी।
हिंदुओं के आराध्यों के अपमान का यह न तो पहला मामला है और न ही अंतिम। हिंदू इसका विरोध कर रहे हैं तो एक बड़े वर्ग को यह समस्या है कि आखिर क्यों हिंदू विरोध कर रहे हैं? हिंदू चुपचाप यह अपमान सह क्यों नहीं लेते? हिंदू सांस्कृतिक रूप से मर क्यों नही जाते?
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