नवराष्ट्रवाद से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में हितेश शंकर ने वन्दे मातरम् आंदोलन, भक्ति आंदोलन आदि कई आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि ये आंदोलन बिना किसी अखबार के चले थे। आंदोलन या वाद होने के लिए पत्र की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह स्वत:स्फूर्त भाव से साधनों और उपायों पर पकड़ से ही आगे बढ़ते हैं।
समारोह के दूसरे दिन का सातवां सत्र पाञ्चजन्य की प्रखर पत्रकारिता के 75 वर्ष के नाम रहा। इसमें हितेश शंकर और गढ़वाल पोस्ट के संपादक सतीश शर्मा के बीच चर्चा की शुरुआत ऐसे विषय से हुई जो उलझा हुआ है। एक तरफ नई पीढ़ी के पाठकों की संख्या घट रही है तो दूसरी तरफ प्रिंट मीडिया को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चुनौती दे रहा है।
इस मुद्दे पर हितेश शंकर ने कहा कि कोरोना काल में प्रिंट मीडिया की स्थिति और खराब हो गई। वे मीडिया घराने खत्म होते जा रहे हैं, जो सॉफ्ट और हार्ड प्रिंट के बीच संतुलन बनाकर नहीं चले। इन परिस्थितियों में ‘पाञ्चजन्य’ के लिए खुद को स्थापित रख पाना मुश्किल काम है। इसके बावजूद पत्रिका की पहुंच बढ़ती जा रही है।
इसका कारण है ‘पाञ्चजन्य’ की खबरों की सत्यता, निष्पक्षता और साहस। राष्ट्रवादी तेवर और संघ के मुखपत्र के रूप में प्रचारित होने के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि संघ का आधिकारिक मुखपत्र नहीं होते हुए भी ‘पाञ्चजन्य’ संघ की वैचारिक गहनता को समझने वाली पत्रिका है। इसके पाठक इस तथ्य को समझते हैं।
नवराष्ट्रवाद से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में हितेश शंकर ने वन्दे मातरम् आंदोलन, भक्ति आंदोलन आदि कई आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि ये आंदोलन बिना किसी अखबार के चले थे। आंदोलन या वाद होने के लिए पत्र की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह स्वत:स्फूर्त भाव से साधनों और उपायों पर पकड़ से ही आगे बढ़ते हैं।
‘पाञ्चजन्य’ भगवान कृष्ण के शंख का नाम है, जो सत्य का उद्घोष करता है। सोशियल मीडिया पर इसके लाखों फॉलोअर हैं। इसलिए पत्रिका खबर की विश्वसनीयता और सत्य के परीक्षण के लिए फैक्ट चेक करना जरूरी मानती है।
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