बांग्लादेश में गंगा नदी की मुख्य धारा का नाम है पद्मा। इस नदी पर वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश के सबसे बड़े पुल का उद्घाटन किया था। लेकिन छोटे देशों पर अपने पैसों का रौब झाड़कर उन्हें अपने दबदबे में रखने की चीन की मंशा इस पुल के निर्माण का श्रेय खुद लेने की कोशिशों से एक बार फिर उजागर हुई है।
बांग्लादेश के सुप्रसिद्ध अखबार डेली स्टार की रिपोर्ट है कि ढाका में चीन के राजदूत ने काफी दिन पहले से ही ऐसी हवा बनाने की कोशिश करनी शुरू कर दी थी जैसे इस पुल को चीन के दिए पैसों से बनाया गया है। जबकि बांग्लादेश सरकार कई मौकों पर साफ कर चुकी है कि इस पर पूरा पैसा देश का लगा है, इसमें चीन की कोई आर्थिक मदद नहीं ली गई है।
भारत के पड़ोसी देश के विदेश विभाग ने अधिकृत बयान जारी करके कहा है कि पुल अपने में अनोखा है और इसे बनाने का पूरा श्रेय बांग्लादेश सरकार को जाता है। मंत्रालय ने जानबूझकर फैलाई गईं अफवाहों को दरकिनार करते हुए स्पष्ट किया है कि इस बहुउद्देशीय पुल में चीन की बीआरआई परियोजना या किसी विदेशी फंड से नहीं हुआ है।
दिलचस्प बात है कि 25 जून को प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा इस पुल के उद्घाटन से पहले, 22 जून को चीन सिल्क एंड रोड फोरम की तरफ से एक परिचर्चा आयोजित की गई जिसका विषय था—’पद्मा ब्रिज:बीआआई परियोजना के तहत बांग्लादेश—चीन सहयोग की एक मिसाल’। इसमें चीनी राजदूत ली जिमिंग मुख्य अतिथि के नाते आने वाले थे। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय को इसकी भनक लगते ही, मंत्रालय की तरफ से इस कदम के विरोध में एक बयान जारी किया कि इस पुल में चीन की बीआरआई का कोई पैसा नहीं लगा है, पुल पूरी तरह से हमारे पैसे से बना है। हुआ ये कि एक तरफ तो अपने राजदूत के ऐसे अजीब बर्ताव से बीजिंग की स्थिति शर्मनाक हुई, दूसरे परिचर्चा एक दिन के लिए टालनी पड़ी।
उस वक्त भी बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में साफ—साफ लिखा था कि ‘देश के सबसे लंबे पुल के लिए पूरी तरह से सरकार ने ही पैसा लगाया है। इसके निर्माण में किसी भी विदेशी धन का प्रयोग नहीं किया गया है’।
करीब 10 किलोमीटर लंबा ‘पद्मा ब्रिज’ बेशक उस देश का सबसे लंबा पुल है जो सड़क के रास्ते बांग्लादेश के दक्षिण-पश्चिमी इलाके को राजधानी ढाका तथा देश के अन्य भागों से जोड़ता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि यह पुल बीआरआई से नहीं जुड़ा है। बांग्लादेश ने इसे बनाने के लिए विदेशी पैसा नहीं लिया है।
उल्लेखनीय है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव कई अरब डॉलर की परियोजना है। यह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2013 में सत्ता में आने के बाद शुरू की थी। इसका बताया गया उद्देश्य है दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी इलाके, अफ्रीका तथा यूरोप को सड़क और समुद्री रास्तों के संजाल से जोड़ना। कुल मिलाकर इस परियोजना का मकसद है चीन का दुनिया भर के बाजार पर अपना एकाधिकार करना।
लेकिन चीन के राजदूत इस पुल को लेकर मीडिया में ऐसी हवा बनाने में जुटे थे कि जैसे इस पर चीन का पैसा लगा है, चीन ने ही इसे बनवाया है। इसी धुंधलके को छांटने के लिए बांग्लादेश के विदेश विभाग ने बयान में चीन की इस हरकत की तरफ भी इशारा किया। बयान में कहा गया, ‘…संज्ञान में आया है कि कुछ वर्गों में यह दर्शाने की कोशिश की जा रही है कि पद्मा बहु-उद्देशीय पुल का निर्माण विदेशी पैसे से किया गया है और यह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक हिस्सा है। यह बहु-उद्देश्यीय पुल पूरी तरह से बांग्लादेश की सरकार के पैसे से बना है और इसमें ‘किसी अन्य द्विपक्षीय या बहुपक्षीय वित्त पोषण एजेंसी से किसी भी विदेशी धन’ का प्रयोग नहीं किया गया है।
बांग्लादेश के इस बयान के दौरान चीनी दूतावास का प्रवक्ता ढाका में पत्रकारों का बताने लगा कि ‘हमें गर्व है कि एक चीनी निर्माण कंपनी पद्मा ब्रिज के निर्माण में शामिल थी। उसने बताया कि चीन रेलवे मेजर ब्रिज इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन कंपनी ने पहली बार चीन के बाहर (पद्मा नदी पर) पहला सबसे लंबा पुल बनाया है।
लेकिन बांग्लादेश में चीन के स्वार्थ पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि ढाका द्वारा यह स्पष्ट कर देने के बावजूद कि पुल पर पूरा पैसा बांग्लादेश का लगा है, लगता नहीं कि चीन अपने दुष्प्रचार को थाम देगा। बीजिंग किसी न किसी रूप में इसका श्रेय खुद लेने के रास्ते निकालता रहेगा और दुनिया के सामने अपनी आर्थिक कूटनीति का महिमामंडन करता रहेगा।
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