हत्या के बाद जिहादियों ने वीडियो बनाकर वायरल किया। परंतु मीडिया के एक वर्ग, नेताओं और सोशल मीडिया पर उनकी लॉबी ने इस मामले की गंभीरता को कम करने और जिहादियों को आड़ देने के लिए शब्दों का जाल बुना
उदयपुर में दिनदहाड़े कन्हैयालाल साहू की हत्या ने पूरे देश में ही नहीं, विदेशों में भी हड़कंप मचा दिया है। अब इस जिहादी घटना को कई प्रकार से हल्का करने या इसकी गंभीरता और देश के लिए इससे खतरे को कमतर दिखाने के षड्यंत्र आरम्भ हो गए हैं।
मीडिया का शब्दों से खेल
मीडिया के एक बड़े वर्ग ने इस जिहादी घटना को अत्यंत सामान्य घटना बता दिया। टाइम्स आफ इंडिया ने लिखा कि ‘दो ग्राहकों ने उदयपुर में एक दर्जी का गला काट दिया क्योंकि उसने नुपूर शर्मा का समर्थन किया था!’ अर्थात जो जिहादी हमला था, उसे ग्राहक कहकर घटना को बेहद सामान्य बता दिया। पूरे का पूरा लुटियन मीडिया, इसे सेकुलर अपराध घोषित करने में लग गया जैसे इस हत्या में जिहादी मानसिकता का हाथ है ही नहीं।
द हिंदू ने शीर्षक दिया ‘टेलर बिहेडेड इन उदयपुर फॉर सोशल मीडिया पोस्ट बैकिंग नुपूर शर्मा’। अर्थात सोशल मीडिया पर नुपूर को समर्थन देने के कारण दर्जी का सिर काट दिया गया! खबर में नाम अवश्य है, परन्तु नुपूर का समर्थन करने के कारण कौन किसी की हत्या कर सकता है, यह स्पष्ट होते हुए भी द हिन्दू ने अपनी खबर में खेला कर दिया।
यह खेला बहुत ही अजीब और रोचक होता है, विशेषकर शब्दों के माध्यम से हिन्दुओं के साथ अब तक जो खेला किया जाता रहा, वह शानदार रहा है। इसका लाभ वामपंथी लेखकों से लेकर पत्रकारों और फिल्मकारों ने भी उठाया है। तभी काल्पनिक खलनायक को टीका आदि लगाकर हिन्दू दिखा दिया जाता है और नायक कहीं न कहीं सेकुलर होता है या फिर ‘भाईजान’ होता है।
बजरंगी भाईजान फिल्म में चिकन वाला गाना पूरी तरह राजनीतिक था, और उसका उद्देश्य गौमांस विरोधी आन्दोलन को निष्प्रभावी करना था, ऐसा कबीर खान ने स्वयं एक साक्षात्कार में बोला था। जबकि गौमांस और मुर्गे का मांस, मांस होते हुए भी अलग हैं। ऐसे ही उदयपुर में जो हत्या हुई है, वह ह्त्या होते हुए भी साधारण हत्या नहीं है। वह जिहाद से सम्बन्धित है, कट्टर इस्लामिक जिहाद, जिसका निशाना उदार स्वर रखने वाले मुस्लिम भी होते हैं।
भटकाने का नेताओं का खेल
इस घटना के जिहादी रूप को हल्का करने के लिए पहले तो नेताओं ने हाथ आगे बढ़ाया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने इस जिहादी घटना को ‘धर्म’ के नाम पर हिन्दुओं के सिर मढ़ने का पाप किया और लिखा कि उदयपुर में हुई जघन्य हत्या से मैं बेहद स्तब्ध हूं। धर्म के नाम पर बर्बरता बर्दाश्त नहीं की जा सकती। इस हैवानियत से आतंक फैलाने वालों को तुरंत सख़्त सजा मिले। हम सभी को साथ मिलकर नफरत को हराना है। मेरी सभी से अपील है, कृपया शांति और भाईचारा बनाए रखें।
ऐसी तमाम चीजें उस कट्टरपंथी जिहादी सच्चाई पर पर्दा डाल रही हैं, जो हमारे समक्ष उदयपुर की घटना के उपरान्त मुंह फाड़कर अपने जघन्यतम रूप में खड़ी हैं और यह जिहादी हिंसा किसी एक धर्म के विरुद्ध न होकर समस्त मानवता के विरुद्ध है, जैसा हम अफगानिस्तान में देख रहे हैं, जैसा हम अफ्रीका के देशों में देख रहे हैं जहां आए दिन जिहादी आतंक अपना चरम रूप दिखा रहा है।
उदयपुर में यह घटना स्वयं अपराधियों ने वीडियो पर रिकॉर्ड करके दिखाई तो भी राहुल गांधी को यह दिखाई नहीं दिया कि यह ‘कट्टर मजहबी जिहाद’ है, जिसके शिकार आरिफ मोहम्मद खान भी हुए थे जब उन्होंने शाहबानो मामले में कांग्रेस और कट्टरपंथियों का विरोध किया था। यह वही कट्टरपंथी जिहाद है जो कश्मीर में एक युवा अभिनेत्री को मात्र इसलिए मार डालता है क्योंकि वह अपना एक यूट्यूब चैनल चलाती थी। उसके अब्बा भी बेचारे यही पूछ रहे हैं कि यह कैसा जिहाद?
परन्तु राहुल गांधी जैसे लोग त्रिपुरा में जो हिंसा हुई ही नहीं, उसे हिन्दुओं द्वारा मुस्लिमों पर की गई हिंसा बताते हैं! त्रिपुरा में पिछले वर्ष ऐसे ही लोगों ने हिंसा भड़काई थी। अचानक से ही राहुल गांधी का एक ट्वीट आया था कि ‘त्रिपुरा में हमारे मुसलमान भाइयों पर क्रूरता हो रही है। हिन्दू के नाम पर नफरत व हिंसा करने वाले हिन्दू नहीं, ढोंगी हैं। सरकार कब तक अंधी-बहरी होने का नाटक करती रहेगी?’
जहां पर कुछ नहीं था, वहां भी हिन्दुओं को दोषी ठहराकर देश-विदेश में हिन्दुओं को बदनाम किया और जहां जिहादी हिंसा स्पष्ट है, उसे ‘धर्म और बर्बरता’ जैसे शब्दों के पीछे छिपाकर बचा रहे हैं और ‘धर्म’ के नाम उभरने वाली छवि को ही दोषी ठहरा रहे हैं!
एक हिन्दू के अपराध के बहाने समस्त हिन्दू समाज को दोषी ठहराने वाले अरविन्द केजरीवाल भी उदयपुर वाले मामले में एकदम शांत हैं। उन्होंने संभल कर लिखा कि उदयपुर की वारदात बेहद भयानक और वीभत्स है। ऐसे नृशंस कृत्य की सभ्य समाज में कोई जगह नहीं हैं। हम इसकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। इस वारदात को अंजाम देने वाले अपराधियों को कड़ी सजा दी जाए!
मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी का विरोध करने वाले और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी जिहादी आतंक को कवर फायर देते हुए ट्वीट किया था ‘उदयपुर में जो उन्मादी हत्या हुई है, उसकी जितनी निंदा हो वो कम है। आज समाज के हर एक व्यक्ति को आगे आना होगा और देश के भाईचारे को नफरत की भेंट चढ़ने से बचाना होगा। उन्होंने लिखा कि उन्मादी हत्या हुई, परन्तु यह उन्माद फैलाया किसने? जिसने यह उन्माद फैलाया था, उसका समर्थन तो वह एक दिन पहले ही कर चुके थे?
धारणा बदलने का खेल
हिन्दुओं को बार-बार अपमानित करने वाली यह लॉबी और किसी एक व्यक्ति के कुकृत्य के आधार पर हिन्दुओं को असहिष्णु प्रमाणित करने वाली यह पूरी लॉबी किस प्रकार जिहादी आतंक को सीमित करने के प्रयास में लगी है, वह सियासत डेली पोर्टल के शीर्षक से ही पता लग जाता है। उसने लिखा है कि
उदयपुर हॉरर : टेलर का सिर काटने पर दो गिरफ्तार, कर्फ्यू लगा!
यही सियासत डेली तब कैसे रिपोर्ट करता है जब हिंसा कथित रूप से मुस्लिमों के विरुद्ध हो!
यही पूरी लॉबी है, जो बार-बार मुस्लिम कट्टपंथियों की भीड़ द्वारा कथित रूप से ईशनिंदा अर्थात पैगम्बर की बेअदबी के लिए मासूम लोगों की जान लिये जाने पर कहती है कि भीड़ की कोई पहचान नहीं होती, यह उन्मादी भीड़ होती है! फिर उन्मादी लोगों का चरित्र तब हिन्दू क्यों हो जाता है, जब कथित पीड़ित मुस्लिम हों?
यह पूरा शब्दों का खेल है!
इस पूरी की पूरी लॉबी ने शब्दों का ऐसा जाल बुना कि जिहादी आतंक पर किसी की दृष्टि ही न जाए।
इतना ही नहीं, एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें महात्मा बुद्ध की तस्वीर बनी है और लिखा है कि
‘इंसान को मारकर धर्म की रक्षा करने से अच्छा है कि धर्म को मारकर इंसान की रक्षा के जाए, क्योंकि इंसानियत ही धर्म है!’
ऐसी तमाम चीजें उस कट्टरपंथी जिहादी सच्चाई पर पर्दा डाल रही हैं, जो हमारे समक्ष उदयपुर की घटना के उपरान्त मुंह फाड़कर अपने जघन्यतम रूप में खड़ी हैं और यह जिहादी हिंसा किसी एक धर्म के विरुद्ध न होकर समस्त मानवता के विरुद्ध है, जैसा हम अफगानिस्तान में देख रहे हैं, जैसा हम अफ्रीका के देशों में देख रहे हैं जहां आए दिन जिहादी आतंक अपना चरम रूप दिखा रहा है।
फिर भी, भारत ही एकमात्र ऐसा देश होगा, जहां सिर पर बैठे जिहादी आतंक को सामान्य अपराध बनाकर वामपंथी मीडिया, साहित्य एवं विपक्षी दलों द्वारा देश की मासूम जनता को उस जिहाद के सम्मुख फेंका जा रहा है, और यह सब बहुत बड़े माध्यम से नहीं अपितु मात्र कुछ शब्दों की हेराफेरी से हो रहा है!
क्योंकि उन्हें पता है शब्दों का नैरेटिव और नैरेटिव के शब्द!
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