स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में बनी पहली संसद में यह संकल्प मानवता के पुजारी, देश की एकता औरअखंडता के लिए विघटनकारी शक्तियों से निर्द्वंद जूझने वाले देशभक्त करुणामई व्यक्तित्व के धनी डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने व्यक्त किया था। तत्समय बंगाल में पड़े भीषण अकाल के पीड़ितों की सहायता के लिए धन संकलन का आवाहन कर लाखों लोगों की जान बचाने वाले मानवता के उपासक का जन्म कोलकाता के ऐसे धर्मनिष्ठ परिवार में हुआ था जिनके यहां नित्य विधि विधान से माँ काली की पूजा की जाती तथा सनातन धर्म की परंपराओं और मान्यताओं के प्रति श्रद्धा की भावना विकसित करने और अपनी पीढ़ियों को संस्कारवान बनाने का कार्य निरंतर होता रहता था। पितामह श्री गंगा प्रसाद मुखर्जी ख्यातनाम चिकित्सक थे।
माता जोगमाया देवी और आशुतोष मुखर्जी (कोलकाता हाई कोर्ट के जज )के यहां 6 जुलाई 1901 के यहां जन्मे बालक श्यामा प्रसाद ने 1917 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। 1921 में बी. ए. ,1923 में एम.ए., 1924 में बी .एल.तथा 1926 में लिंकन्स इन लंदन में अध्ययन कर 1927 में बैरिस्टर बने।
वे जब केवल 8 वर्ष के थे उसी समय उनके पिता के मित्र जो कि पेशे से वकील थे ने 2 जुलाई 1909 को सुबह-सुबह आकर खबर दी कि मदनलाल ढींगरा ने सर करजन पर गोली चला कर हत्या कर दी। इस पर आशुतोष मुखर्जी ने कहा था-
“वकील साहब !इस प्रकार की घटनाएं एक न एक दिन तो होनी ही थी ।किसी भी राष्ट्र को शक्ति के बल पर अधिक समय तक पराधीन नहीं रखा जा सकता। अभी देखना क्रांति की यह आग और तेजी से फैलनी है।”
पिताश्री और उनके मित्र की यह चर्चा बालक श्यामा प्रसाद ने सुन ली और वकील साहब के चले जाने के बाद पूज्य पिता जी से पूछ लिया कि यह रिवॉल्यूशनरी कौन होते हैं? वे अंग्रेजों की हत्याएं क्यों कर रहे हैं? पिता ने इन बातों से दूर रहने और पढ़ाई में लगे रहने के लिए कह दिया। प्रखर बुद्धि के धनी बाल मन पर पड़े प्रभाव का प्रकटन शिक्षा के पश्चात सार्वजनिक और जीवन में हुआ। 33 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बने सन 1938 तक इस पद पर रहते हुए विभिन्न रचनात्मक कार्य किए। उन्होनें कोलकाता एशियाटिक सोसाइटी में सक्रिय रूप से भागीदारी के साथ-साथ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य इंटर यूनिवर्सिटी आफ बोर्ड के चेयरमैन के पदों पर भी काम किया। उन्होंने एक राष्ट्रवादी शिक्षाविद के रूप में दिशा दर्शन का कार्य किया। लीव्स फ्राम डायरी,प्लेज फार एन इन्टीग्रेटेड इण्डिया, बंगाल का अकाल, सम एडवाइज टु सेव इण्डिया, ए फेज ऑफ इण्डियन स्ट्रगल, जागृत हिन्दुस्थान एवं ए डायरी आऑफ सर आशुतोष मुखर्जी पुस्तकें लिखीं
1937 से राजनीतिक जीवन में प्रवेश कर कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए कुछ समय बाद त्यागपत्र दिया । हिंदू महासभा मैं सम्मिलित हुए, 1944 में अध्यक्ष बने। नेहरू मंत्रिमंडल में अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री बने मतभेदों के कारण 6 अप्रैल 1950 को त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श करने के बाद डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी ,प्रोफेसर बलराज मधोक और पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में भारतीय जन संघ की नींव रखी गई।
1947 में स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर कांग्रेसी मंत्री के रूप में वित्त मंत्रालय का कार्य संभाला था। इस दौरान उन्होंने चितरंजन में रेल कारखाना , विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना ,बिहार में खाद बनाने के कारखानों की स्थापना की।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत विभाजन के विरोधी थे। जम्मू कश्मीर के अलग संविधान और अलग प्रधान के विरोध में उन्होंने कहा था “मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कर आऊंगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना बलिदान कर दूंगा ”
“एक देश दो निशान, एक देश दो विधान, नहीं चलेंगे’ नहीं चलेंगे” ।
अगस्त 1952 में आयोजित की गई रैली में यह संकल्प दोहराया । उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को परमिट लेना पड़ता ।डॉक्टर मुखर्जी इस बात के विरोध में थे ।अपने ही देश में यह पाबंदी उन्हें स्वीकार नहीं थी। उन्होंने कश्मीर में बिना परमिट प्रवेश किया, गिरफ्तार हो गए, नजरबंद किया गया ।23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। नव भारत के निर्माता, क्रांतिकारी ,शिक्षाविद ,मानवता के पुजारी ,राष्ट्रीय एकता के लिए जन्मे सच्चे देशभक्त का शत शत वंदन।
लेखक – शिवकुमार शर्मा
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