विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूक्रेन संघर्ष के बारे में भारत की विदेश नीति को महाभारत युद्ध में भगवान कृष्ण के शांति प्रयासों जैसे बताया, जिसमें वार्ता और कूटनीति के जरिए समस्या का समाधान करने की कोशिश की गई थी।
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लिखी गई एक पुस्तक ‘मोदी के 20 वर्ष’ पर आयोजित चर्चा में जयशंकर ने देश-विदेश के मुद्दों पर पूछे गए सवालों का उत्तर दिया।
विदेश मंत्री ने कहा कि यूक्रेन का मुद्दा बहुत जटिल है तथा महाभारत युद्ध की तरह सही गलत तय करने में बहुत दुविधा है।
उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध की बहुत कोशिश की थी। यूक्रेन युद्ध के संबंध में भारत की विदेश नीति भी यही रही कि बातचीत और कूटनीति के जरिए मामले को सुलझाया जाए।
जयशंकर ने कहा कि महाभारत युद्ध की तरह ही विदेश नीति के संदर्भ में भी ऐसे अवसर आते हैं जब यह तय करना मुश्किल होता है कि क्या सही है, क्या गलत, किसमें हित है और किसमें अहित और कब सक्रिय होना, कब मौन रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि फिलहाल विश्व प्रजा के हित में है कि यूक्रेन संघर्ष को फैलने से रोका जाए। संघर्ष का विस्तार दुनिया के हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन संकट के कारण दुनिया में ऊर्जा और खाद्य संकट पैदा हो रहा है। उर्वरकों के दाम बढ़ रहे हैं। इसका असर खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा।
विदेश मंत्री ने कहा कि यूक्रेन संघर्ष के बारे में जो राष्ट्रीय हित में होगा, उसी के अनुरूप सरकार फैसले करेगी।
विदेश मंत्री ने नूपुर शर्मा प्रकरण पर पूछे गए एक सवाल के उत्तर में कहा कि खाड़ी सहित विभिन्न देश इस मामले में हमारे स्पष्टीकरण से संतुष्ट थे। विभिन्न देशों में हमारे राजदूतों ने साफ किया था कि इस घटनाक्रम पर हमें खेद है तथा संबंधित टिप्पणियां सरकार की राय का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। पूरे मामले में भारतीय जनता पार्टी ने भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी। जिसे विभिन्न देशों ने स्वीकार किया।
जयशंकर ने कहा कि दुनिया के देश जानते हैं कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार का क्या मत है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने कार्यकाल में खाड़ी देशों के साथ संबंध सुधारने के लिए सक्रिय प्रयास किए हैं। इस संबंध में उन्होंने मोदी की हाल की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा का जिक्र किया।
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